कोई सुबह धूम धूम
दस्तक देता है
और शाम ढले
छोड़ जाता है सूनापन
जैसे बरसाती नदी
झूम कर उमड़ पड़ती है
अचानक
और सूख जाती है
अचानक
कितना रुलाता है
बातों का सूख जाना
कितना उदास है
प्रतीक्षा का टूट जाना
और
जाने कितनी निराशा लपेटे है
प्रेम का लेन देन
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