बुधवार, 14 जून 2023

माँ की तीसरी पुण्यतिथि


 


आज फिर से माँ का दिन है। लेकिन क्या कोई दिन ऐसा है जो माँ का दिन न हो? हर दिन बस माँ और माँ और माँ!! पीड़ा के हर इक पल में माँ अमृत की धारा! 

मैं स्पेन आ गई तो बहुत शुरू मे माँ चिट्ठी के रूप में मुझसे मिलने आती थी। यह उनके संपर्क में रहने का ऐसा माध्यम था कि जब मन होता उनके लिखे को हाथ से छू लिया और माँ का प्यार पा लिया! आज भी वही कर रही हूँ! माँ का आशीर्वाद और प्यार यहाँ से मिलता है! साझा कर रही हूँ उनकी चिट्ठी जिसके प्रत्येक शब्द में ममता कूट कूट कर भरी हुई है । कोई इस स्नेह से अछूता रह ही नहीं सकता  

कितना कुछ मन कहना सुनना चाहता है मगर राहें खो गईं हैं। मम्मा आपको मेरा प्यार पहुँचे। 🙏🙏

शनिवार, 10 जून 2023

मद्रिद में मालिनी अवस्थी



वहाँ ऑडिटोरियम में नीली वेशभूषा में आई गरिमामयी गायिका के स्वर उठने आरम्भ हुए, हल्की रूनझुन सी एक धीमी कविता की तरह उठते उठते हौले से मध्यम सुर का संगीत शुरू हो जाता है। ध्यान लगा कर सुन रहे श्रोता इस सुर तक आते आते इन चंद पलों में सम्पूर्ण समर्पण कर कल्पना लोक में प्रवेश चुके हैं। फिर तत्क्षण एक विशाल सैलाब, सुरों का, हमारे इर्द-गिर्द बिखर चुका है। आँखों के आगे…गाना चल रहा है, पीछे…मन में संगीत का मेला चलने लगा है, श्रवण इंद्रियों ने सुर का धागा थाम लिया है और पैर थिरकना चाहते हैं, बाँहें स्वर लहरी पर मचलना चाहती हैं, और आत्मा नृत्य करने को पूरी तरह तत्पर है। यह किसने जादू रच दिया है? किसकी वाणी से आत्मिक बंधन स्वतंत्र होकर अनंत को अनुभव करने लगे हैं? 500 लोगों का समूह एकरस हो किसके सुरों के आगे समर्पण कर चुका है? 
जी हाँ, मैं जिसकी बात कर रही हूँ, वे अद्भुत गायिका हैं पद्मश्री मालिनी अवस्थी, जो आवाज़ रूप में पूरे ऑडिटोरियम में गूंज रही हैं। कोई उस मुग्ध-कारिणी, सम्मोहिनी को जाकर बताए कि धीमे संगीत में या तेज में, उसे सुनने वाले तत्काल ह्रदय और संगीत के मध्य मधुर तारतम्य बिठा लेते हैं। कल्पना की उस सुखद अनुभूति को जीने लगते हैं जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता है। 

संगीत संध्या में मंत्रमुग्ध श्रोता उस जादू को समझने से परे , बस, उस उठती गिरती स्वर लहरी पर आनंदित हो ताली बजा रहे हैं, अपनी जगह पर बैठे बैठे पाँव हिला कर नृत्यरत होने का मौन ऐलान कर रहे हैं। क्या बड़े, क्या छोटे…  कोई उस भाव भरे सम्मोहन से बच नहीं पाया है। 

अवध में राम जन्म के सोहर लोकगीत से आरम्भ हो कर सीता जन्म पर जा पहुँचती है मालिनी के लोक संगीत की लहर। प्रेम की पराकाष्ठा खुसरो को गाती है  शिव को मसान में होली खेलते दिखाने का सजीव दृश्य रचती है, फिर तुरंत ही राग भैरवी का वितान तान देती है। दिल मेरा मुफ़्त का…गाते गाते हिंदी फ़िल्म संगीत के बेहद प्रसिद्ध राग भैरवी पर आधारित गीतों का चलता फिरता कारवाँ हमारे सामने से गुज़ारतीं हैं। सैंया मेरे लड़खैंया में कमसिन दूल्हन का दुख कहती है। ग़ज़ल की शानदार रवानी प्रस्तुत करती है। 
होरी खेले रघुवीरा अवध मा होरी खेले रघुवीरा की तान पर श्रोताओं को गाने को उकसातीं हैं। यह कैसा अकल्पनीय जादू है कि कोई उस से मुक्त होना ही न चाहता था! 

दो घंटे बिना रुके स्वर सागर में तैराने के पश्चात् भी  किसी को विराम नहीं चाहिए था। लगता था कि यह मधुर स्वर की रिमझिम ध्वनि कभी न रूके! बस ऐसे ही यह मधुर बरसात चलती रहें और हम इसके  सदा सर्वदा साक्षी रहें। इसीलिए जब वे बाहर आईं तो भीड़ ने उस सहज सौम्य मुस्कान धारी अद्भुत मालिनी को घेर लिया, उनके साथ तस्वीरें लीं, बातें कीं, मानो उनके साथ के ये कुछ पल अनमोल निधि की तरह सुरक्षित कर अपने पास रख लें। कल्पना लोक से बाहर निकलने का रास्ता खोजना किसी असंभव कोशिश का सबसे प्यारा क्षण होता है। 
- पूजा अनिल 

(9 जून 2023 को स्पेन के मद्रिद शहर में भारतीय राजदूतावास एवं ICCR द्वारा पद्मश्री मालिनी अवस्थी का लाइव संगीत कार्यक्रम आयोजित किया गया। सौभाग्य से मैं भी इस कार्यक्रम को देख पाई। उस भव्य कार्यक्रम के बारे में लिखे बिना न रहा गया। मुझे हैरानी हुई कि पूरे दो घंटे के कार्यक्रम के दौरान मालिनी अवस्थी लगातार एक के बाद एक गीत सुनातीं रही और इस दौरान उन्होंने एक बार भी जल नहीं ग्रहण किया। कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें भी पोस्ट के साथ लगा रही हूँ। )