बुधवार, 5 दिसंबर 2018

नज़्म

नज़्म 
कुछ ठहर जाओ 
कुछ देर को और ठहर जाओ। 
इक छोटी सी बात 
आज ज़रा सुन जाओ। 
वो जो जादू भरा मोहब्बतों का दौर था, 
अनगिन हसीं लम्हों से सजा नायाब और पुरजोर था। 
ज़रा देर को और उसे लौटा लाओ,
कुछ देर तो ठहर जाओ। 
सुनो, आईना आज तुमसे पूछ रहा, 
तेरी नज़रों में जब मेरी छाया बसी,
तब निगाहों की कैफ़ियत क्या थी? 
हमकदम बनकर जो हम तुम थे चले, 
तब इन हाथों की खासियत क्या थी? 
रौनकें देखीं थीं जब बागों में हमने 
तब उन बहारों की रंगत क्या थी? 
मैं जो आंसूं की शक़्ल में ढल गई,
उस पल मेरी अहमियत क्या थी? 
सारी तहरीरें इक तरफ रख दो, 
बस ये बता दो कि हम ही से 
वो चाहत क्या थी? 
दौर जो जादू भरा बीत गया, 
उसके एहसास में वो गर्मास क्या थी? 
अब,
इस याद का आलम देखो,
हम यहां हैं मगर यहीं पर नहीं। 
मेरी हर बात पर जो निसार थी जां,
हर कहीं होगी मगर यहीं पर नहीं।  
मैं जो फ़रियाद करूँ कि फिर से लौट आओ, 
तुम मुझे फिर से ठुकरा देना। 
जो ये कहूं कि मेरे पास तुम बैठ जाओ, 
तुम हाथ छुड़ा के चुपके से चल देना। 
गर आँसूं बन गाल पर फिसलने लगूँ,
मुझसे नज़रें फिर यूँ ही फेर लेना। 
मैं फिर भी मोहब्बत से सराबोर रहूंगी
और हर बार तुमसे यही कहूँगी,
मुझसे जी न चुराओ, 
इन उँगलियों को यूँ न छुड़ा कर जाओ, 
मेरे ख्यालों में कुछ देर तो और कसमसाओ,
मेरे वजूद में ज़रा और घुल जाओ, 
कुछ ठहर जाओ,
कुछ देर तो ठहर जाओ।