गुरुवार, 20 जुलाई 2023

प्रेम का स्पर्श

 मैं कितनी देर दरख्त के नीचे खड़ी रही, यहाँ तक कि उसके पत्ते मुझे पहचानने लगे। 

मैंने कितनी बार तुम्हारा नाम लिया, यहाँ तक कि तुम्हारे नाम से पहचानी जाने लगी! 

मैं पत्ता बन कर तुम्हारे आने की प्रतीक्षा नहीं कर सकती इसलिये सम्पूर्ण दरख्त बन कर खड़ी हूँ। 

मैं केवल तुम्हारा नाम नहीं हो सकती इसलिये ज़र्रे ज़र्रे में प्रेम का नरम नाज़ुक स्पर्श बन बस गई हूँ। 

-पूजानिल

बुधवार, 19 जुलाई 2023

उम्र से बढ़कर

 इन्सान

बड़ा होता है, 

बड़ी होती हैं 

उसकी उम्मीदें, 

छोटी हो जाती है 

मासूमियत।

- पूजा अनिल