बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

अंतिम स्पर्श

सोचती हूँ 
स्वयं को एक तस्वीर में ढाल  
दोहरा जीवन जी लूँ !

अक्सर ऐसा होता आया है 
लोग मांग लेते हैं तस्वीर 
अपने कमरे सजाने के लिए 
या दिल के खेल खेलने के लिए 
कभी कभी तो सिर्फ अपने 
कम्प्यूटर स्क्रीन सजाने के लिए 
एक तरह से आदत भी है मुझे 
तस्वीर में मुस्कुराने की 
कोई देखेगा तो 
अजनबी नहीं लगेगी मेरी तस्वीर 

सोचती हूँ 
इनकार नहीं करुँगी किसी को 
जब कोई चूमना चाहेगा मेरी तस्वीर 
अपनी वासना में भरपूर 
ना ही रोकूंगी 
किसी के प्रेम का आवेश 
जब मेरे सामने स्वीकार करेगा वो 
यूँ भी तो मैं नहीं जानती 
जाने कितनी बार उसने 
अपनी भड़ास निकाली होगी मुझ पर !
जाने कितनी बार अपने जेहन में 
किया होगा 
किसी ने मेरा बलात्कार ! 

सोचती हूँ 
एक रोज़ 
मैं पत्थर सी हो जाउंगी 
दिल से, दिमाग से ,

कठोर ऐसी कि किसी 
कोमल छुअन से भी 
रहूं अविचलित ,
भंगुर भी ऐसी कि 
घन हथौड़े केआघात से 
खंड खंड जाऊं बिखर !

उस रोज़ तुम आना और 
मेरी राख समुन्दर के हवाले कर देना 
मैं याद रखूंगी 
बस वही अंतिम और पावन स्पर्श!

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