कभी भविष्य में और कभी अतीत में
जीने की विवशता से
मुक्ति पाना आसान नहीं होता,
पर समय की इस तेज धारा में,
मैं ' आज' और ' अभी' के
जीने की विवशता से
मुक्ति पाना आसान नहीं होता,
पर समय की इस तेज धारा में,
मैं ' आज' और ' अभी' के
संयोग से मिले
' इसी पल'' में जी रही हूँ ।
मैं देख रही हूँ हर ' एक क्षण' को
अपने सामने ' मचलते हुये'
और उसी पल
फिसल कर ' चले जाते हुये' ।
जब तक लिखती हूँ ' यह´ शब्द
इसकी जगह ले लेता है नया कोई शब्द,
और मैं इस बार आने देती हूँ
प्रत्येक नवीन शब्द को
अपनी स्वतंत्र गति से,
मेरे विचारों की
बनावट से मुक्त,
मेरे पुरानेपन की
संवेदनाओं से भी मुक्त।
ठीक वैसा ही जैसा
होना चाहिए एक नहर को
जैसे होना चाहिए आकाश को
जैसा होना चाहिए जीवन को...
हाँ... ठीक वैसा ही,
' इसी पल'' में जी रही हूँ ।
मैं देख रही हूँ हर ' एक क्षण' को
अपने सामने ' मचलते हुये'
और उसी पल
फिसल कर ' चले जाते हुये' ।
जब तक लिखती हूँ ' यह´ शब्द
इसकी जगह ले लेता है नया कोई शब्द,
और मैं इस बार आने देती हूँ
प्रत्येक नवीन शब्द को
अपनी स्वतंत्र गति से,
मेरे विचारों की
बनावट से मुक्त,
मेरे पुरानेपन की
संवेदनाओं से भी मुक्त।
ठीक वैसा ही जैसा
होना चाहिए एक नहर को
जैसे होना चाहिए आकाश को
जैसा होना चाहिए जीवन को...
हाँ... ठीक वैसा ही,
निर्बंध..
मुक्त हर ' अतीत' और ' भविष्य' से।
मुक्त हर ' अतीत' और ' भविष्य' से।
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