देखो, बारिशों में कभी मत रोना
भीगेगी देह भी
भीगेगी रूह भी
तब धूप भी न होगी
कि मन की नमी सोख ले!
और सुनो, मत रोना गर्मियों में
आंसूं और पसीना
एक से दिखेंगे
कोई आँख में छिपी
दर्द की लकीर
पकड़ ही न पायेगा।
बहुत मन करे तो रो लेना
पतझड़ में
किसी डाल से गिरते
सूखे पत्ते पर गिरा देना
अपना एक आंसूं
जी उठेगा वो
नवजीवन की आस में।
भीगेगी देह भी
भीगेगी रूह भी
तब धूप भी न होगी
कि मन की नमी सोख ले!
और सुनो, मत रोना गर्मियों में
आंसूं और पसीना
एक से दिखेंगे
कोई आँख में छिपी
दर्द की लकीर
पकड़ ही न पायेगा।
बहुत मन करे तो रो लेना
पतझड़ में
किसी डाल से गिरते
सूखे पत्ते पर गिरा देना
अपना एक आंसूं
जी उठेगा वो
नवजीवन की आस में।
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