रविवार, 9 अप्रैल 2023

Small poem

 हाँ, मैंने तो पेट भर लिया अपना ही ग़म खाकर,

भूखे तुम भी रहना मत, खौफ़ खुदा का खा लेना।

-पूजा अनिल 

सोमवार, 3 अप्रैल 2023

मनोरोग के साथ सामंजस्य

 


मनोरोग के साथ सामंजस्य 

- पूजा अनिल 

आजकल विश्व में बहुत सारे लोगों को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पीड़ा से गुजरना पड़ता है। जैसे कि डिप्रेशन यानि अवसाद। दुख की बात है कि हमारे आस-पास हर बार मानसिक रोगी बढ़ते जा रहे हैं। इनमें से कई बार रोगी को ठीक से पहचान कर सही इलाज मिल जाता है और बहुत बार नहीं भी मिल पाता है । जब समय पर सही इलाज न मिले तो रोगी के साथ पूरा परिवार एक अनिश्चित काल तक तकलीफ़ से दो चार होता रहता है। परिवार के दैनिक कार्य भी अत्यंत प्रभावित होते हैं। 

मानसिक रोग की सही समय पर पहचान हो जाना एक महत्वपूर्ण कदम होता है। कभी कभार इसमें एक अच्छी बात यह होती है कि रोगी स्वयं अपने रोग से ग्रस्त होने को स्वीकार कर लेते हैं तब निदान की पहली सीढ़ी तो पार हो ही जाती है। डॉक्टर का काम भी आसान हो जाता है। 

रोग और अपने विचारों का Confession कर लेने से रोगी का मन हल्का हो जाता है। मित्र और परिवार भी रोगी की बात सुन लेते हैं, समझ लेते हैं। किंतु तब अक्सर यह समझ नहीं आता कि उसे ऐसी क्या सलाह दें कि रोगी का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होने में मददगार साबित हो?

बहुत बार लोग रोगी को सीधे सलाह देते हैं कि स्वयं से प्रेम करो। या अपना ध्यान रखना आदि। किंतु एक रोगी किस तरह यह कर पाएगा यह कोई नहीं समझा पाता। डॉक्टर द्वारा दिये जाने वाले उपचार को फ़ॉलो करते हुए, परिवार में जो लोग रोगी का ध्यान रखते हैं, उनके लिए कुछ साधारण और सरल तरीक़े लिख रही हूँ जिनसे रोगी का मन कुछ समय तक एकाग्र रखने में सहायता मिल सकती है। 

 मेरे विचार से सृजनात्मक रचना कर्म मनोरोगी के लिए बेहद कारगर साबित होता है ।आप रोगी को कोई उत्साहजनक संगीत सुनने को प्रेरित करे, नृत्य करने को कहें, गीत गाने को कहें, कोई वाद्य यंत्र बजाने के लिए प्रेरित करें, चित्र बनाने को प्रेरित करें । उसके साथ मिलकर किसी मंडला में रंग भरने की प्रक्रिया शुरू कर दें। शहर में समंदर हो तो रोगी को वहाँ ले जाएँ, अपनी निगरानी में उसके साथ किनारे पर बैठे हुए लहरों को आते जाते निहारो। पहाड़ हो तो पहाड़ पर चढ़ें, या पार्क में टहलने ले जाएँ। इनमें से कोई एक कार्य भी यदि नित्य प्रति तय समय पर दोहराया जाए तो यह एक तरह से मेडिटेशन का काम करेगा, जिससे रोगी का मन धीरे-धीरे शांत होता चला जाएगा। इसके अलावा घर में ही कुछ स्वादिष्ट मनपसंद भोजन बना कर या उससे ही बनवा कर स्वाद लें। कोई अच्छी साहित्यिक किताब ले आयें और रोगी को पढ़ने के लिए कहें। उसे कोई कविता सुनाएँ  या लिखने के लिए प्रेरित करें। आस-पास के बच्चों से बातें करने के लिए प्रेरित करें, उनके साथ खेलने को कहें, आप भी खुद उसके साथ रहें। उसे बाग़वानी करवाएँ या कढ़ाई बुनाई। समय और ऊर्जा की माँग करने वाले इन कार्यों से आपकी दिनचर्या में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा, जिसे स्वीकार कर लेना आपके कार्य को सरल करेगा। यदा कदा परिवार एवं मित्रों से मदद माँगिए, ताकि आप स्वयं भी स्वस्थ रहें। 

 इनमें से जो कार्य  रोगी को पसंद है, आप कुछ समय तक वही रचनात्मक कार्य दोहराते रहें। निश्चित ही कुछ समय बाद आपको रोगी के स्वास्थ्य में सुधार दिखाई देगा। हाँ, पूर्ण उपचार तो एक चिकित्सक की देख-रेख में ही मिलेगा। इसलिए आप लगातार अपने चिकित्सक के संपर्क में रहें और समय समय पर रोगी के बारे में  उसे पूरी जानकारी देते रहें। याद रखें कि रोग शारीरिक हो अथवा मानसिक, रोग केवल रोग होता है, जिसका उचित उपचार करवाया जाना आवश्यक है। मैं यह मानती हूँ कि एक मनोरोगी का ध्यान रखना, यह अपने आप में एक चेलैंज से कम नहीं है। आपको अभूतपूर्व धैर्य की आवश्यकता होगी। अतः उसके लिए स्वयं को तैयार रखें । 
-पूजा अनिल 
डिस्क्लेमर - मैंने ये बातें जीवन के अनुभव से कही हैं। न मैं डॉक्टर हूँ न ही मनोचिकित्सक, अत: योग्य डॉक्टर के इलाज के साथ-साथ ही इनका पालन करें। 

बुधवार, 15 मार्च 2023

वो कौन थे

 शहर में लंबी सड़क थी, 

रौनक़ से भरपूर 

सड़क पर कदमों के निशान थे 

या कौन जाने 

निशाने पर बिछी सड़क थी? 

किसी रोज़ एक चित्रकार ने वहाँ 

रंगों से आग का चित्र बनाया था! 

अगले दिन सड़क पर 

अकस्मात् शोले गिरे थे ! 

कितनों का दिल जला था वहाँ, 

कितनों के निशान मिटे थे,  

आग बुझाने में कितनों के 

आँसू असफल रहे थे! 

सारी रौनक़ बुझ गई, 

चलते कदम ठहर गए, 

ज़िंदा लोग फ़ना हो गए,

सारे रंग धुँआ हो गए, 

कलाकार को पूरी दुनिया में 

जासूस तलाशने लग गए ! 

कला दिखा दिल ख़ुश करने वाले 

सरे राह बदनाम हो गए! 

-पूजा अनिल

मनप्रिया

जब सोच लो पूरी तरह 

दुनिया को इस छोर से उस छोर तक, 

तब भीतर के सारे झंझावात 

लहराते समुन्दर बन जाएँगे, 

आँखों से बरसेंगे बचे खुचे बादल 

और अचानक ही साफ़ हो जाएगा, 

सब तरफ़, सब कुछ, 

सोनार धूप खिलने लगेगी,

उस पल में ये सुनहरी भोर सी लड़की 

मन में रहस्यमय मुस्कुरा देगी,

कहेगी, ओ! मन के ओटे पर झूमती,

घूंघर श्यामा बनसखी! 

सौम्य अधखुले नेत्रों वाली,

आत्मविस्तृत कंठमणि!

मैं जन्मों से पहचानती हूँ जिसे

हाँ, वही तो हो तुम छन छन ध्वनि ! 

-पूजा अनिल

बुधवार, 15 जून 2022

माँ की दूसरी पुण्यतिथि

 


तपते रेगिस्तान सा जीवन, 
जीवन की छांव तुम थी, 
गहरा सागर है यह दुनिया, 
दुनिया की नाव तुम थी। 
देखो न, सब कहते हैं कि मैं हूँ यहाँ, 
क्योंकि तुम थी। 
अब भी होना चाहिये था तुम्हें, 
सुख इसीलिये था, क्योंकि तुम थीं। 
दो साल बीत गये बिछड़ कर तुमसे! 
रोता है मन भी, नयन भी, तुम्हें याद करके
बहुत से भी बहुत अधिक याद आती हो तुम! 
ऐसे चले जाने की तुम्हें क्या जल्दी थी?
भावभीनी श्रद्धॉंजलि मम्मा! 😭😭🙏🏻🙏🏻

बुधवार, 25 मई 2022

मैंने स्पेनिश कैसे सीखी?

 मुझसे कई बार लोग पूछते हैं की मैंने स्पेनिश कैसे सीखी? पूछने वालों में भारतीय भी हैं और स्पेनिश भी। 

साल 1999 में जब मैंने पहली बार स्पेन की धरती पर कदम रखे तो थोड़ी बहुत स्पेनिश सीखी थी एक नौजवान से जो स्पेनिश, इटैलियन और रशियन भाषाएँ जनता था। लेकिन मजेदार यह कि वहाँ सीखा हुआ अक्षर ज्ञान और शब्द ज्ञान तो स्पेन में काम आया किन्तु वाक्य बनाना टेढ़ी खीर साबित हुआ। 

स्पेन में उस समय अंग्रेजी नाम मात्र ही चलती थी। कहीं भी बाहर कदम रखो तो भाषा ज्ञान ज़रूरी था। ऐसे में पहले पहल पतिदेव से बने बनाये वाक्यांश सीखती फिर ही निकलती थी घर से। सबसे दुरूह होता था फल सब्जियां खरीदने अकेले जाना। उसे आसान किया मेरी जेठानी ने। भला हो उसका कि उसने मदद की। वो सब्जियों के, फलों के नाम बता देती और दूकानदार से क्या कह कर माँगना है वह भी समझा देती। 

इस तरह लगभग शुरूआती पंद्रह बीस दिन निपट गए। लेकिन अपने राम को तो हमेशा यहीं स्पेन में रहना था, इस काम चलाऊ मन्त्र से भला कब तक खुद को सेव किया जा सकता था? और फिर साप्ताहांत पर जब कई स्पेनिश मित्र मिलते तो उनसे बातचीत कैसे की जाए? 

पतिदेव से सलाह मशविरा किया तो उन्होंने सलाह दी कि टी वी देखना शुरू कर दो और पत्रिकाएं पढ़ना शुरू कर दो। पत्रिकाएं पढ़ना तो मन माफ़िक काम था लेकिन टी वी नाम का उस समय का बड़ा सा डब्बा उर्फ़ इडियट बॉक्स कतई ना सुहाता था गुड़िया रानी को! पर उस समय सबसे बेहतरीन ऑप्शन यही था। अतः बिना देर किये आजमाया गया यह नुस्खा। 

दिन में और रात में समाचार सुने जाते और  दोपहर में और शाम को सारे काम निपटाने के बाद टी वी पर चल रही बड़ी बड़ी हस्तियों की बहस बाजी सुनी जाती। सामाजिक मुद्दों पर होने वाले कार्यक्रम में घर बैठे मैं भी शामिल हो जाती, यानि अपनी भी अदृश्य उपस्थिति रहती वहाँ टी वी के जरिये। 

इस से फायदा यह हुआ कि शब्दों को एक दूसरे से पृथक करना सीखा।  यहां यह बताना प्रासंगिक है कि स्पेनिश लोग तीव्र गति से बात करना अपनी शान समझते हैं और यह भी अपनी शान में शामिल करना नहीं भूलते कि उनकी भाषा खूब समृद्ध है शब्दकोष और व्याकरण की दृष्टि से भी। 

हाँ तो हम भी फर्राटेदार स्पेनिश बोलने की और अग्रसर हो रहे थे। शब्द ज्ञान अपने आस पास के लोगों से पूछ पूछ कर बढ़ता गया। कुछ मदद उन दुकानदारों ने भी की जो काम चलाऊ अंग्रेजी बोल लेते थे। पढ़ने के लिए कुछ पत्रिकाएं भी मिल गईं।  जिनसे हमने कई वाक्य बनाना और शब्द ज्ञान प्राप्त किया। संज्ञा, सर्वनाम और क्रिया में भेद करना समझा। विशेषण और समानार्थक/विलोम शब्द सीखे। इसी के जरिये कई स्पेनिश हस्तियों को नाम और चेहरों से भी जाना पहचाना। 

इस सब में लगभग तीन महीने बीत गए। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद की ज्ञान पिपासा बलवती थी। अब समस्या थी उच्चारण दोष दूर करना और व्याकरण का सही सही प्रयोग करना। आखिर किस तरह सीखा जाए? उसका बड़ा मजेदार किस्सा है।  रोज़ ही सुबह उठकर ताज़ी सब्जी लेने जाने का नियम था मेरा। घर के आस पास की गलियां और वहाँ की दुकानों से इसी तरह परिचय हुआ था। 

रोज़ ही आते जाते देखती थी कि वहाँ एक अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन सीखने की अकादमी थी। इच्छा तो खूब होती थी कि किसी रोज़ भीतर जाकर स्पेनिश भाषा सीखने के लिए पूछ आऊं।  पर बाहर बोर्ड पर स्पेनिश भाषा सिखाने का विवरण ही न था। सो हर रोज़ अपनी इच्छा स्थगित कर देती। उस पर समस्या यह भी थी कि मैं अपनी बात कहूँगी किस तरह? बोलना तो अब तक टूटा फूटा ही आता था न ! 

लेकिन जब तीन महीने बाद मेरा शब्दकोष और आत्मविश्वास बढ़ गया तो एक दिन पतिदेव से बात की, उनसे हिम्मत उधार ली और अगले दिन उस अकादमी में भीतर कदम रख ही दिए। शाम का समय था। शायद उसी समय कोई कक्षा ख़तम हुई होगी, कुछ स्टूडेंट्स उसी समय बाहर निकले थे। कुछ संकोच के साथ ऑफिस में प्रवेश किया। मन ही मन, याद किये हुए वाक्य एक बार पुनः  दोहराये। 

भीतर एक सुन्दर सी स्पेनिश युवती अपने पूरे स्त्रियोचित श्रृंगार के साथ हंसमुख रूप में ऑफिस चेयर पर विराजमान थी। उसने मेरा स्वागत किया। मैंने भी स्पेनिश में अभिवादन किया। उसे बताया कि  मैं भारत से आई हूँ और अब स्पेनिश सीखना चाहती हूँ। झटपट बिना देर किये उस से अपनी  स्पेनिश सीखने की इच्छा ज़ाहिर कर दी। 

भारत से कुछ प्यारा सा जुड़ाव है यहां के लोगों का। जैसे ही उसने भारत का नाम सुना कुछ और आदर, कुछ और ही ख़ुशी से बात की मुझसे। मैं तो धीमी गति से बात कर रही थी लेकिन वह जेट गति से स्पेनिश में बात करने लगी।  तब मुझे उस से निवेदन करना पड़ा कि ज़रा स्पीड कम कीजिये। एक बार तो उसने बहुत ही प्रेरणा दायक बात कही कि मैं काफी अच्छी स्पेनिश बोल लेती हूँ फिर कक्षा की ज़रूरत क्या है! कुछ लाली उभर आई अपनी तारीफ सुन, फिर मैंने कहा आपकी तरह तेजी से नहीं बोल पाती, इसलिए सीखना है।  तब उसने कहा उस अकादमी में स्पेनिश नहीं सिखाई जाती है अतः कोई स्पेनिश टीचर है ही नहीं। मैं मन ही मन निराश हो गई।  

फिर अपनी धीमी गति वाली स्पेनिश में ही मैंने उस से पूछा कि क्या वह किसी अन्य स्पेनिश टीचर को जानती है जो मुझे बोलना सिखा सके? मेरी इस बात पर वह फिर अपने सुन्दर चेहरे पर बड़ी सी पिंक (उसका सबसे पसंदीदा लिपस्टिक का रंग/शेड यही था) मुस्कान ले आई और मुझसे कहा कि वैसे तो वह स्पेनिश नहीं सिखाती पर जब अकादमी में  सब कक्षाएं ख़तम हो जाएँगी  तब शाम को वह मुझे अलग से कक्षा देगी। 

अँधा क्या चाहे, दो आँखें ही ना! मेरी मुराद पूरी हुई। सप्ताह में तीन दिन एक एक घंटे की कक्षा देने के लिए वो राजी हो गई। फीस बताई उसने। शाम के सात बजे का समय बताया उसने। (यहां कक्षाएं प्रति घंटा के हिसाब से ही चलती हैं) मैंने स्वीकार किया और अगले ही दिन से उस से स्पेनिश सीखना शुरू कर दिया। उसने मेरे लिए टेक्स्ट बुक्स में से कुछ पन्ने प्रिंट निकाल कर बच्चों की तरह एक एक कहानी अथवा पैराग्राफ पढ़ाते  हुए, सवाल जवाब करते हुए आगे बढ़ती गई। जो कुछ मैंने तब तक सीखा था, उसे संवर्धित करती गई वो । व्याकरण ज्ञान दिया उसने। और इस तरह अगले तीन महीने मैंने स्पेनिश बोलने की प्रैक्टिस उसकी कक्षा में की। इस तरह छः महीने में स्पेनिश भाषा सीखने का उपक्रम संभव हुआ। फिर तो खूब प्रयोग में आई यह भाषा। अब तो हिंदी और स्पेनिश भाषा में परस्पर अनुवाद करना भी पसंद है मुझे। 

अपने अनुभव से कहती हूँ कि छः महीने में जिस तरह मैंने स्पेनिश भाषा सीखी उसी तरह आप भी अच्छी तरह से स्पेनिश सीख सकते हैं।  बस एक सतत लगन रखना और विश्वास रखना कि आप  निश्चित तौर पर सीख सकते हैं। सीखना कभी ख़तम नहीं होता, अतः अब भी कुछ न कुछ सीखती ही रहती हूँ इस भाषा में। 
Poojanil (26 sept 2018)






मंगलवार, 24 मई 2022

अनुभव - जवान बने रहने का एक राज़

 अनुभव -

कुछ दिन पहले मैं डॉक्टर के केबिन के बाहर अपने बुलाये जाने की प्रतीक्षा कर रही थी। मुझसे पहले ही एक बुजुर्ग महिला भी प्रतीक्षा कर रही थी। यूँ ही सामान्य सी बातें चल निकलीं उस से। वह उस डॉक्टर की तारीफ कर रही थी कि हर तरह की एलर्जी का इलाज करने के लिए यह बहुत ही अच्छी डॉक्टर है। वह पहले कई बार आ चुकी थी, मैं पहली बार गई थी उसके पास। मुझे मौसमी ऐलर्जी लग रही थी, जो कि मौसम के साथ ही अपने आप ठीक भी हो गई। 

बातों बातों में उसने बताया कि वह 80 साल की है। सुनकर मुझे हैरानी हुई, क्योंकि वह अधिकतम पैंसठ- छासठ  साल की स्वस्थ, सक्षम और सजग महिला लग रही थी। मैंने कहा आप अस्सी साल के नहीं लगते हो, किस तरह इतना सुडौल और खूबसूरत बनाये रखा है खुद को? उसने कहा मैं खूब ध्यान रखती हूँ अपना। खूब पानी पीती हूँ और रोज़ ताजा बना खाना खाती हूँ। प्रतिदिन पैदल करने जाती हूँ और घर के अधिकतर काम भी अपने हाथों से करती हूँ। आगे उसने कहा आजकल लोग बहुत जल्दी अपनी त्वचा ख़राब कर बैठते हैं और उनके पास समय  भी नहीं अपना ध्यान रखने का। 
मैं उनकी बात से सहमत थी। 

प्रेरणादायक बात यह कि एक अस्सी वर्ष की महिला, खुश और तारो ताजा  दिखती बुजुर्ग स्त्री स्वयं  ही निपट अकेली हॉस्पिटल आई थी, वो भी लोकल बस में। किसी तरह की कोई शिकायत नहीं कि पति साथ नहीं आया और ना ही बच्चों से  कोई उम्मीद कि वे उसके साथ आएंगे। जबकि घर में सभी हैं, इसका ज़िक्र किया उन्होंने। 

उस से बात करके मुझे महसूस हुआ  जवान बने रहने का एक राज़ यह भी है कि स्वयं को सक्षम बनाया जाए और जहां तक संभव हो किसी और के भरोसे न रहा जाए। किसी का मोहताज होना अर्थात स्वयं को कमजोर करना। जबकि स्वयं पहल करके अपने काम करना अर्थात स्वयं को मजबूत बनाना, अपने आप को शक्ति प्रदान करना। फिर चाहे कोई भी उम्र हो आप सदैव स्वावलम्बी रहेंगे, खुश प्रसन्न रहेंगे। 
 (28 Feb 2018) Poojanil