मुझसे कई बार लोग पूछते हैं की मैंने स्पेनिश कैसे सीखी? पूछने वालों में भारतीय भी हैं और स्पेनिश भी।
साल 1999 में जब मैंने पहली बार स्पेन की धरती पर कदम रखे तो थोड़ी बहुत स्पेनिश सीखी थी एक नौजवान से जो स्पेनिश, इटैलियन और रशियन भाषाएँ जनता था। लेकिन मजेदार यह कि वहाँ सीखा हुआ अक्षर ज्ञान और शब्द ज्ञान तो स्पेन में काम आया किन्तु वाक्य बनाना टेढ़ी खीर साबित हुआ।
स्पेन में उस समय अंग्रेजी नाम मात्र ही चलती थी। कहीं भी बाहर कदम रखो तो भाषा ज्ञान ज़रूरी था। ऐसे में पहले पहल पतिदेव से बने बनाये वाक्यांश सीखती फिर ही निकलती थी घर से। सबसे दुरूह होता था फल सब्जियां खरीदने अकेले जाना। उसे आसान किया मेरी जेठानी ने। भला हो उसका कि उसने मदद की। वो सब्जियों के, फलों के नाम बता देती और दूकानदार से क्या कह कर माँगना है वह भी समझा देती।
इस तरह लगभग शुरूआती पंद्रह बीस दिन निपट गए। लेकिन अपने राम को तो हमेशा यहीं स्पेन में रहना था, इस काम चलाऊ मन्त्र से भला कब तक खुद को सेव किया जा सकता था? और फिर साप्ताहांत पर जब कई स्पेनिश मित्र मिलते तो उनसे बातचीत कैसे की जाए?
पतिदेव से सलाह मशविरा किया तो उन्होंने सलाह दी कि टी वी देखना शुरू कर दो और पत्रिकाएं पढ़ना शुरू कर दो। पत्रिकाएं पढ़ना तो मन माफ़िक काम था लेकिन टी वी नाम का उस समय का बड़ा सा डब्बा उर्फ़ इडियट बॉक्स कतई ना सुहाता था गुड़िया रानी को! पर उस समय सबसे बेहतरीन ऑप्शन यही था। अतः बिना देर किये आजमाया गया यह नुस्खा।
दिन में और रात में समाचार सुने जाते और दोपहर में और शाम को सारे काम निपटाने के बाद टी वी पर चल रही बड़ी बड़ी हस्तियों की बहस बाजी सुनी जाती। सामाजिक मुद्दों पर होने वाले कार्यक्रम में घर बैठे मैं भी शामिल हो जाती, यानि अपनी भी अदृश्य उपस्थिति रहती वहाँ टी वी के जरिये।
इस से फायदा यह हुआ कि शब्दों को एक दूसरे से पृथक करना सीखा। यहां यह बताना प्रासंगिक है कि स्पेनिश लोग तीव्र गति से बात करना अपनी शान समझते हैं और यह भी अपनी शान में शामिल करना नहीं भूलते कि उनकी भाषा खूब समृद्ध है शब्दकोष और व्याकरण की दृष्टि से भी।
हाँ तो हम भी फर्राटेदार स्पेनिश बोलने की और अग्रसर हो रहे थे। शब्द ज्ञान अपने आस पास के लोगों से पूछ पूछ कर बढ़ता गया। कुछ मदद उन दुकानदारों ने भी की जो काम चलाऊ अंग्रेजी बोल लेते थे। पढ़ने के लिए कुछ पत्रिकाएं भी मिल गईं। जिनसे हमने कई वाक्य बनाना और शब्द ज्ञान प्राप्त किया। संज्ञा, सर्वनाम और क्रिया में भेद करना समझा। विशेषण और समानार्थक/विलोम शब्द सीखे। इसी के जरिये कई स्पेनिश हस्तियों को नाम और चेहरों से भी जाना पहचाना।
इस सब में लगभग तीन महीने बीत गए। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद की ज्ञान पिपासा बलवती थी। अब समस्या थी उच्चारण दोष दूर करना और व्याकरण का सही सही प्रयोग करना। आखिर किस तरह सीखा जाए? उसका बड़ा मजेदार किस्सा है। रोज़ ही सुबह उठकर ताज़ी सब्जी लेने जाने का नियम था मेरा। घर के आस पास की गलियां और वहाँ की दुकानों से इसी तरह परिचय हुआ था।
रोज़ ही आते जाते देखती थी कि वहाँ एक अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन सीखने की अकादमी थी। इच्छा तो खूब होती थी कि किसी रोज़ भीतर जाकर स्पेनिश भाषा सीखने के लिए पूछ आऊं। पर बाहर बोर्ड पर स्पेनिश भाषा सिखाने का विवरण ही न था। सो हर रोज़ अपनी इच्छा स्थगित कर देती। उस पर समस्या यह भी थी कि मैं अपनी बात कहूँगी किस तरह? बोलना तो अब तक टूटा फूटा ही आता था न !
लेकिन जब तीन महीने बाद मेरा शब्दकोष और आत्मविश्वास बढ़ गया तो एक दिन पतिदेव से बात की, उनसे हिम्मत उधार ली और अगले दिन उस अकादमी में भीतर कदम रख ही दिए। शाम का समय था। शायद उसी समय कोई कक्षा ख़तम हुई होगी, कुछ स्टूडेंट्स उसी समय बाहर निकले थे। कुछ संकोच के साथ ऑफिस में प्रवेश किया। मन ही मन, याद किये हुए वाक्य एक बार पुनः दोहराये।
भीतर एक सुन्दर सी स्पेनिश युवती अपने पूरे स्त्रियोचित श्रृंगार के साथ हंसमुख रूप में ऑफिस चेयर पर विराजमान थी। उसने मेरा स्वागत किया। मैंने भी स्पेनिश में अभिवादन किया। उसे बताया कि मैं भारत से आई हूँ और अब स्पेनिश सीखना चाहती हूँ। झटपट बिना देर किये उस से अपनी स्पेनिश सीखने की इच्छा ज़ाहिर कर दी।
भारत से कुछ प्यारा सा जुड़ाव है यहां के लोगों का। जैसे ही उसने भारत का नाम सुना कुछ और आदर, कुछ और ही ख़ुशी से बात की मुझसे। मैं तो धीमी गति से बात कर रही थी लेकिन वह जेट गति से स्पेनिश में बात करने लगी। तब मुझे उस से निवेदन करना पड़ा कि ज़रा स्पीड कम कीजिये। एक बार तो उसने बहुत ही प्रेरणा दायक बात कही कि मैं काफी अच्छी स्पेनिश बोल लेती हूँ फिर कक्षा की ज़रूरत क्या है! कुछ लाली उभर आई अपनी तारीफ सुन, फिर मैंने कहा आपकी तरह तेजी से नहीं बोल पाती, इसलिए सीखना है। तब उसने कहा उस अकादमी में स्पेनिश नहीं सिखाई जाती है अतः कोई स्पेनिश टीचर है ही नहीं। मैं मन ही मन निराश हो गई।
फिर अपनी धीमी गति वाली स्पेनिश में ही मैंने उस से पूछा कि क्या वह किसी अन्य स्पेनिश टीचर को जानती है जो मुझे बोलना सिखा सके? मेरी इस बात पर वह फिर अपने सुन्दर चेहरे पर बड़ी सी पिंक (उसका सबसे पसंदीदा लिपस्टिक का रंग/शेड यही था) मुस्कान ले आई और मुझसे कहा कि वैसे तो वह स्पेनिश नहीं सिखाती पर जब अकादमी में सब कक्षाएं ख़तम हो जाएँगी तब शाम को वह मुझे अलग से कक्षा देगी।
अँधा क्या चाहे, दो आँखें ही ना! मेरी मुराद पूरी हुई। सप्ताह में तीन दिन एक एक घंटे की कक्षा देने के लिए वो राजी हो गई। फीस बताई उसने। शाम के सात बजे का समय बताया उसने। (यहां कक्षाएं प्रति घंटा के हिसाब से ही चलती हैं) मैंने स्वीकार किया और अगले ही दिन से उस से स्पेनिश सीखना शुरू कर दिया। उसने मेरे लिए टेक्स्ट बुक्स में से कुछ पन्ने प्रिंट निकाल कर बच्चों की तरह एक एक कहानी अथवा पैराग्राफ पढ़ाते हुए, सवाल जवाब करते हुए आगे बढ़ती गई। जो कुछ मैंने तब तक सीखा था, उसे संवर्धित करती गई वो । व्याकरण ज्ञान दिया उसने। और इस तरह अगले तीन महीने मैंने स्पेनिश बोलने की प्रैक्टिस उसकी कक्षा में की। इस तरह छः महीने में स्पेनिश भाषा सीखने का उपक्रम संभव हुआ। फिर तो खूब प्रयोग में आई यह भाषा। अब तो हिंदी और स्पेनिश भाषा में परस्पर अनुवाद करना भी पसंद है मुझे।
अपने अनुभव से कहती हूँ कि छः महीने में जिस तरह मैंने स्पेनिश भाषा सीखी उसी तरह आप भी अच्छी तरह से स्पेनिश सीख सकते हैं। बस एक सतत लगन रखना और विश्वास रखना कि आप निश्चित तौर पर सीख सकते हैं। सीखना कभी ख़तम नहीं होता, अतः अब भी कुछ न कुछ सीखती ही रहती हूँ इस भाषा में।
Poojanil (26 sept 2018)
बहुत प्रेरक प्रसंग। कहते हैं भाषा को सीखने की क्षमता भी बुद्धिलब्धि (IQ) का एक अति महत्वपूर्ण पैमाना है। फिर तो कुछ रचनाओं के स्पैनिश अनुवाद का आनंद लिया जा सकता है। बधाई और आभार!!!
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