बुधवार, 15 जून 2022

माँ की दूसरी पुण्यतिथि

 


तपते रेगिस्तान सा जीवन, 
जीवन की छांव तुम थी, 
गहरा सागर है यह दुनिया, 
दुनिया की नाव तुम थी। 
देखो न, सब कहते हैं कि मैं हूँ यहाँ, 
क्योंकि तुम थी। 
अब भी होना चाहिये था तुम्हें, 
सुख इसीलिये था, क्योंकि तुम थीं। 
दो साल बीत गये बिछड़ कर तुमसे! 
रोता है मन भी, नयन भी, तुम्हें याद करके
बहुत से भी बहुत अधिक याद आती हो तुम! 
ऐसे चले जाने की तुम्हें क्या जल्दी थी?
भावभीनी श्रद्धॉंजलि मम्मा! 😭😭🙏🏻🙏🏻

1 टिप्पणी:

  1. मर्मस्पर्शी रचना!
    माँ का आशीर्वाद सदा साथ रहता है बच्चों के
    नमन!

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