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मंगलवार, 24 मई 2022

अनुभव - जवान बने रहने का एक राज़

 अनुभव -

कुछ दिन पहले मैं डॉक्टर के केबिन के बाहर अपने बुलाये जाने की प्रतीक्षा कर रही थी। मुझसे पहले ही एक बुजुर्ग महिला भी प्रतीक्षा कर रही थी। यूँ ही सामान्य सी बातें चल निकलीं उस से। वह उस डॉक्टर की तारीफ कर रही थी कि हर तरह की एलर्जी का इलाज करने के लिए यह बहुत ही अच्छी डॉक्टर है। वह पहले कई बार आ चुकी थी, मैं पहली बार गई थी उसके पास। मुझे मौसमी ऐलर्जी लग रही थी, जो कि मौसम के साथ ही अपने आप ठीक भी हो गई। 

बातों बातों में उसने बताया कि वह 80 साल की है। सुनकर मुझे हैरानी हुई, क्योंकि वह अधिकतम पैंसठ- छासठ  साल की स्वस्थ, सक्षम और सजग महिला लग रही थी। मैंने कहा आप अस्सी साल के नहीं लगते हो, किस तरह इतना सुडौल और खूबसूरत बनाये रखा है खुद को? उसने कहा मैं खूब ध्यान रखती हूँ अपना। खूब पानी पीती हूँ और रोज़ ताजा बना खाना खाती हूँ। प्रतिदिन पैदल करने जाती हूँ और घर के अधिकतर काम भी अपने हाथों से करती हूँ। आगे उसने कहा आजकल लोग बहुत जल्दी अपनी त्वचा ख़राब कर बैठते हैं और उनके पास समय  भी नहीं अपना ध्यान रखने का। 
मैं उनकी बात से सहमत थी। 

प्रेरणादायक बात यह कि एक अस्सी वर्ष की महिला, खुश और तारो ताजा  दिखती बुजुर्ग स्त्री स्वयं  ही निपट अकेली हॉस्पिटल आई थी, वो भी लोकल बस में। किसी तरह की कोई शिकायत नहीं कि पति साथ नहीं आया और ना ही बच्चों से  कोई उम्मीद कि वे उसके साथ आएंगे। जबकि घर में सभी हैं, इसका ज़िक्र किया उन्होंने। 

उस से बात करके मुझे महसूस हुआ  जवान बने रहने का एक राज़ यह भी है कि स्वयं को सक्षम बनाया जाए और जहां तक संभव हो किसी और के भरोसे न रहा जाए। किसी का मोहताज होना अर्थात स्वयं को कमजोर करना। जबकि स्वयं पहल करके अपने काम करना अर्थात स्वयं को मजबूत बनाना, अपने आप को शक्ति प्रदान करना। फिर चाहे कोई भी उम्र हो आप सदैव स्वावलम्बी रहेंगे, खुश प्रसन्न रहेंगे। 
 (28 Feb 2018) Poojanil




बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

प्रेरणादायक

अनुभव -
कुछ दिन पहले मैं डॉक्टर के केबिन के बाहर अपने बुलाये जाने की प्रतीक्षा कर रही थी। मुझसे पहले ही एक बुजुर्ग महिला भी प्रतीक्षा कर रही थी। यूँ ही सामान्य सी बातें चल निकलीं उस से। वह उस डॉक्टर की तारीफ कर रही थी कि यह बहुत ही अच्छी डॉक्टर है। वह पहले कई बार आ चुकी थी, मैं पहली बार गई थी उसके पास।
बातों बातों में उसने बताया कि वह 80 साल की है। सुनकर मुझे हैरानी हुई, क्योंकि वह अधिकतम पैंसठ- छासठ साल की स्वस्थ, सक्षम और सजग महिला लग रही थी। मैंने कहा आप अस्सी साल के नहीं लगते हो, किस तरह इतना सुडौल और खूबसूरत बनाये रखा है खुद को? उसने कहा मैं खूब ध्यान रखती हूँ अपना। खूब पानी पीती हूँ और रोज़ ताजा बना खाना खाती हूँ। पैदल करने जाती हूँ और घर के काम भी करती हूँ। आगे उसने कहा आजकल लोग बहुत जल्दी अपनी त्वचा ख़राब कर बैठते हैं और उनके पास समय भी नहीं अपना ध्यान रखने का। मैं उनकी बात से सहमत थी।
प्रेरणादायक बात यह कि एक अस्सी वर्ष की महिला, खुश और तारो ताजा दिखती बुजुर्ग स्त्री स्वयं ही निपट अकेली हॉस्पिटल आई थी, वो भी लोकल बस में। किसी तरह की कोई शिकायत नहीं कि पति साथ नहीं आया और ना ही बच्चों से कोई उम्मीद कि वे उसके साथ आएंगे।
उस से बात करके मुझे महसूस हुआ जवान बने रहने का एक राज़ यह भी है कि स्वयं को सक्षम बनाया जाए और जहां तक संभव हो किसी और के भरोसे न रहा जाए। किसी का मोहताज होना अर्थात स्वयं को कमजोर करना। जबकि स्वयं पहल करके अपने काम करना अर्थात स्वयं को मजबूत बनाना, अपने आप को शक्ति प्रदान करना। फिर चाहे कोई भी उम्र हो आप सदैव स्वावलम्बी रहेंगे, खुश प्रसन्न रहेंगे।

गुरुवार, 16 जून 2011

आओ, जी लें.

जीवन को जीने की कला शायद जीवन को लम्बे समय तक जीने, हजारों अनुभवों से गुजरने और हज़ारों तरीकों से जीने के बाद भी सीखी नहीं जा सकती, और कभी यूँ भी होता है कि जीवन खुद से ही एक पल में, सब अनुभवों को दरकिनार करते हुये, बोधि होने कि स्थिति जैसे, तुरंत जीना सीखा देता है.

ख़ुशी और दुःख जीवन के साथ चलने वाले दो साथी हैं, कभी एक का साथ ज्यादा होता है कभी दुसरे का साया हमसफ़र होता है. हर कदम पर जो साथ दे, उसे हमसफ़र कह सकते हैं... हालांकि अधिकतर जीवन हमसफ़र के होते हुए भी अकेले ही बीतता है. जीने की कला यहाँ पर बहुत साथ देती है, साथी को खुश देख कर खुद खुश रहने का हौसला देती है, (उत्साह वर्धन और प्रेरणा की कमी होते हुए भी) यह इसलिए नहीं कि सामने वाले की ख़ुशी ही सब कुछ होती है, बल्कि यह इसलिए है कि हम स्वयं में ही एक ख़ुशी की स्थापना चाहते हैं. स्वयं हर पल खुश रहना चाहते हैं. साधन चाहे जो भी हो, अनंत समय तक स्वयं की खुशियों को स्थायित्व देना लक्ष्य रहता है. इस कारण हमसफ़र को ख़ुशी देते हुये स्वयं ख़ुशी पा लेना मूलतः प्रेम से मिलने वाली ख़ुशी का ही रूप है.स्वार्थ यहाँ भी है पर ना हो तो ख़ुशी कि आवश्यकता ना रहे.

कुछ साधन बुरे होते हुए भी प्रयुक्त किये जाते हैं, तब जीने की कला का क्षय होता है. शायद अपेक्षाएं इतनी अधिक रहती हैं कि उसे पूरा करने के लिये सब कुछ जायज़ प्रतीत होता है. अतीत अथवा भविष्य में किसी को पीड़ा देकर भी अपने लिये सुखमय जीवन की कामना को गलत होते हुये भी गलत इसलिए नहीं कहा जा सकता कि आखिर इंसान जीता तो अपने लिये ही है. तब यह जरूर पूछा जा सकता है कि क्या नैतिकता का प्रभाव उसे अपराध करने से रोकने और अपराध हो जाने पर अपराध बोध से भरने में असंतुलित मनः स्थिति जगाता है? अथवा नैतिकता उसने कभी जानी ही नहीं? हालांकि इस तरह मिलने वाली ख़ुशी क्षणिक है और बेचैनी, अवसाद का मूल भी है.

अगर जीवन जीने की कला की आवाज़ सुनें तो वो कहती है कि जो भी पल जियो, उसे अभी इसी क्षण में जियो. इसी पल में अर्थात इसी ही पल में, ना उस पल में जो गुज़र गया और ना उस पल में जो आने वाला है. जैसे जिस समय आप पानी पी रहे होते हैं, आप पानी की शीतलता को अपने कंठ में अनुभव कर लेना चाहते हैं. प्यास पानी के कारण नहीं बुझती, बल्कि कंठ को मिली तरावट के कारण बुझती है. तरावट की स्मृति आपको वो तरावट कभी अनुभव नहीं करा पाती ना ही तरावट का भविष्य. अगर जीवन जीने को पानी पीने की तरह मानें तो जिस समय आप पानी पी रहे हैं, उस ही समय जी रहे हैं, उसका अनुभव भी उस ही समय कीजिये, यानि उस ही पल में जी लीजिये.

अगर अभी, इस समय आपने अपने भीतर स्थापित ख़ुशी को पा लिया है, ढूंढ कर सहेज लिया है तो आने वाले पल को भी अपने हाथ में जानिये, जबकि आने वाले पल के बारे में सोचने की और चिंता करने की आवश्यकता आपको कभी नहीं होती. बस एक तैयारी की जरूरत है जो किसी भी अवांछित समय में जीवन जीने की कला की तरह साथ दे. कैसी तैयारी?? तैयारी इसी ही पल में जी पाने की :) , तैयारी इसी पल को भरपूर ख़ुशी देने की, तैयारी इस पल को समझ सकने की, तैयारी इस पल को पहचान पाने की. कि जो कुछ है वो अभी ही है, इसी ही समय है, इसी ही पल में है, ना इस पल के पहले कुछ था और ना इस पल के बाद कुछ होगा. आओ, जी लें, इस पल को.

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

उनका तजुर्बा, उनकी मुश्किल.....!!!!

कुछ दिन हुए हम अपने स्टोर रूम में कुछ काम कर रहे थे. पास में ही एक दूसरे स्टोर रूम में से कुछ ठोकने और मशीन की आवाज़ आ रही थी. हमने अंदाज़ लगाया कि जरूर कोई अपने स्टोर में आलमारी अथवा खूंटी लगाने का काम कर रहा है.

कोई 15 -20 मिनट बाद एक जवान, तगड़ा, लम्बा आदमी उस स्टोर में गया. दो आदमियों के बात करने की आवाज़ ... 2 मिनट बाद वो जवान चला गया.. उस स्टोर रूम से आवाजें आती रही... बात चीत की नहीं... काम करने की... कुछ देर बाद वो जवान फिर आया, और 2 मिनट बाद चला गया. और उसके कुछ देर बाद एक बूढ़ा व्यक्ति वहाँ से निकला. पतिदेव ने दुआ सलाम की , बात चीत चल पड़ी, पतिदेव ने पूछा "क्या काम कर रहे थे?" उन्होंने कहा, "स्टोर में चीज़ें रखने के लिये आलमारी बना रहा था", पतिदेव ने कहा, " तो आप इस उम्र में यह काम क्यों कर रहे थे?" तो उस बुजुर्ग के मुंह से निकल गया," क्या करें बेटा, जिन्दा रहने के लिये काम तो करना ही पड़ता है, और जो काम आता है तो उसका उपयोग भी करना चाहिए." वो जवान उनका बेटा है, जो आज अपने पिता को अपने साथ रखने का मुआवजा उनसे इस तरह के भारी काम करवा कर ले रहा है. पता नहीं उसने एक पल भी ठहर कर यह क्यों नहीं सोचा कि वो खुद भी अपने पिता की मदद कर दे....??? बस छोड़ दिया उन्हें अकेला..., क्योंकि पिता को इस काम का अनुभव जो ठहरा.

ऐसा आप में से कितने ही बुजुर्गों का अनुभव होगा कि आपके अनुभव की वजह से आपके बच्चे आप से बड़े प्यार से कह देते होंगे कि ," आपको तो इस बात का अथवा इस काम का अनुभव है, आप ही यह काम कर दीजिये". और क्योंकि अब आप अपने अनुभव को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते, इसलिए शरीर साथ दे अथवा ना दे, कई बार बेमन से भी वो काम कर देते हैं.

अगर बच्चों को किसी काम का अनुभव नहीं है तो कोई बात नहीं, कोई काम सीखने के लिये तो अनुभव की जरूरत नहीं होती ना? उन जवानों को चाहिए कि अपने बुजुर्गों को आदर के साथ एक कुर्सी पर बिठाएं एवं स्वयं उनके मार्गदर्शन में अपना कार्य संपन्न करें. इस तरह वो भी काम सीखेंगे और बुजुर्गों के अनुभव भी जाया नहीं होंगे.

आज कितने ही लोग अपने बुढ़ापे में अपने बच्चों के लिये काम करते हुए दिख जाते हैं.... कभी कोई नल ठीक करते हुए दिखता है तो कभी कोई दीवार रंगते हुए, कोई खाना पकाते हुए और कोई सिलाई करते हुए....एवं इसी तरह के कई काम. और यकीन जानिये इनके बच्चे इतने चतुर होते हैं कि अपने बुजुर्गों से बड़े प्यार से काम भी निकलवा लेते हैं और उन्हें अपनी मीठी बातों से हमेशा के लिये अपना गुलाम भी बनाए रखते हैं. ऐसे जवानों से पूछने का दिल करता है कि जब बच्चे पैदा करने होते हैं तब क्यों अपने बुजुर्गों से नहीं कहते कि आपको तो इस काम का अनुभव है, आप ही यह काम कर दीजिये?

उनके (बुजुर्गों के) तजुर्बे को अपनी सुस्ती के लिये इस्तेमाल ना करें. उन्हें अपना जीवन स्वछंद जीने दें और स्वयं आलस्य त्याग कर अपने कामों को अंजाम देना सीखें. उन्होंने पूरी ज़िन्दगी काम किया है अब उन्हें कुछ राहत देने के उपाय सोचें. उनका शरीर अब पहले की तरह फुर्तीला नहीं है, पर आपके शरीर की चपलता कायम है, अतः आप सब जवान लोगों से निवेदन है कि बुजुर्गों पर कोई काम छोड़ने से पहले अवश्य सोच लें कि क्या आप इस काम को करने में पूर्णतया असमर्थ है?
पुनः - उन्हें हमारी जरूरत है, उनका साथ दें.
धन्यवाद.