जब सोच लो पूरी तरह
दुनिया को इस छोर से उस छोर तक,
तब भीतर के सारे झंझावात
लहराते समुन्दर बन जाएँगे,
आँखों से बरसेंगे बचे खुचे बादल
और अचानक ही साफ़ हो जाएगा,
सब तरफ़, सब कुछ,
सोनार धूप खिलने लगेगी,
उस पल में ये सुनहरी भोर सी लड़की
मन में रहस्यमय मुस्कुरा देगी,
कहेगी, ओ! मन के ओटे पर झूमती,
घूंघर श्यामा बनसखी!
सौम्य अधखुले नेत्रों वाली,
आत्मविस्तृत कंठमणि!
मैं जन्मों से पहचानती हूँ जिसे
हाँ, वही तो हो तुम छन छन ध्वनि !
-पूजा अनिल
घूंघर श्यामा बनसखी!
जवाब देंहटाएंसौम्य अधखुले नेत्रों वाली,
आत्मविस्तृत कंठमणि!
मैं जन्मों से पहचानती हूँ जिसे
हाँ, वही तो हो तुम छन छन ध्वनि !
.. उम्दा प्रस्तुति
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है।
जवाब देंहटाएंजय हिन्द जय भारत
वाह! खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्द शिल्प
जवाब देंहटाएंयही आत्मज्ञान है . सुन्दर रचना
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