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रविवार, 7 जुलाई 2024

बेटी से गुलज़ार है घर

 एक गुलाबी कमरा 

सूनेपन की दहलीज़ पर खड़ा, 

गिनता था दिन और घड़ियाँ, 

सूँझता था आती जाती परछाईयाँ, 

सुनता रहता था, 

घर में पसरी ख़ामोश उदासियाँ, 

कहीं कोई हँसी सुनाई देती तो, 

भर जाता उम्मीद से, 

कि अब वो दिन दूर नहीं, 

जब बिस्तर पर सीधी सपाट बिछी चादर पर 

सिलवटों का रूआब होगा, 

बिखरे होंगे कपड़े, किताबें और 

बिखरेगी सतरंगी मुस्कुराहट। 

एक गुलाबी कमरा, 

प्रतीक्षा के अंतिम छोर पर टिका, 

लाल पर्दे के पीछे अपनी सिसक छुपाकर, 

करता है स्वागत चमकीली धूप का, 

खोलता है खिड़की के पल्ले, 

ताज़ा हवा के झोंके से 

करता है गुदगुदी अठखेलियाँ, 

घर भर में गूंजती चहक से जान गया है, 

कि बेटी घर लौट आई है, 

घर के साथ ही साथ 

एक गुलाबी कमरा भी गुलज़ार हो गया है। 

-पूजा अनिल

बुधवार, 6 मार्च 2024

जीवन जीना मत टालो


 इन पुरानी हो चुकी 

झर्झर दहलीजों के पीछे, 

कभी ज़िंदगी से लबरेज़ 

गुनगुनाहटें गूँजती होंगी! 

कच्चे आटे की महक 

और पके आम की ख़ुशबू 

सरसरातीं होंगी! 

देखो, आज यह सब 

कैसे ख़ामोश हैं! 

मानो, कह रहे हों कि 

रोटी की दौड़ दौड़ते, 

टुकड़ों में समय का 

मटका फूट जाएगा। 

पल दो पल में ही, 

सदा सलामत रहने का 

यह भ्रम टूट जाएगा। 

मेरे सूखे दर्द की चौखट पर,

मौन पड़ी जलधार का,

यह इशारा है कि आज 

जीवन जी लो क्योंकि 

जीवन ख़त्म होने के बाद,

कोई आशिक़,

वह माशूक़ तराना,

लौटा न पाएगा! 

-पूजा अनिल

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

नित उन्नत ज्ञान

 हम आसमान के तारों को फूल क्यों नहीं कहते?

फूलों को  सितारे क्यों नहीं कहते? 

हवा को पानी और 

अग्नि को भूमि क्यों नहीं कहते? 

कभी सोचा है कि 

कितनी नवीनता से देखती है,

इस विशाल जहान को

नन्हें बालक की अविराम दृष्टि?

जिज्ञासाओं में डूबे बच्चों को

हम नये शब्दकोश रचने का 

वितान क्यूँ नहीं देते? 

बस, रटवा देते हैं केवल उतना सा ज्ञान, 

जो हमारी थोड़ी सी इंसानी बुद्धि समेट पाई!! 

क्यों? 

क्योंकि हमने भी तो केवल 

इतना कम ही जाना और सीखा। 

बंधनों और व्यर्थ नियमों में जीना, 

निरर्थक बातें सुनना,

अकारण सिर हिलाना, 

समर्थन दर्ज करवाना, 

बंद मस्तिष्क के साथ, 

सवाल पूछने से पहले ही, 

किसी के वक्तव्य पर 

सहमत हो जाना, 

- ख़ामोश जी कर- 

बंधी चुप्पी में मर जाना। 

- हमारे देखते देखते- 

नन्हे बच्चे इस सुविधाजनक 

अव्यवस्था को तोड़ देंगे, 

अपने लिए नए शब्द और परिभाषाएँ 

वे स्वयं गढ़ेंगे। 

तब सितारे को धरा और 

धरती को अविश्वास कहेंगे। 

हवा को उम्मीद और 

जल को चमत्कार कहेंगे। 

नहीं! संभवतः बच्चे कहीं नहीं हों! 

बच्चों के सुकोमल स्पर्श के लिए 

पहले हम प्रयोगशाला का 

दरवाज़ा खटखटाएँगे।

यदि बच्चा पाने में 

सफल हो गए, 

तो……., 

फिर से उन्हें अपना घिसा पिटा 

शब्दकोश रटवाएंगे। 

-पूजानिल

बुधवार, 19 जुलाई 2023

उम्र से बढ़कर

 इन्सान

बड़ा होता है, 

बड़ी होती हैं 

उसकी उम्मीदें, 

छोटी हो जाती है 

मासूमियत।

- पूजा अनिल

रविवार, 9 अप्रैल 2023

Small poem

 हाँ, मैंने तो पेट भर लिया अपना ही ग़म खाकर,

भूखे तुम भी रहना मत, खौफ़ खुदा का खा लेना।

-पूजा अनिल 

बुधवार, 15 मार्च 2023

मनप्रिया

जब सोच लो पूरी तरह 

दुनिया को इस छोर से उस छोर तक, 

तब भीतर के सारे झंझावात 

लहराते समुन्दर बन जाएँगे, 

आँखों से बरसेंगे बचे खुचे बादल 

और अचानक ही साफ़ हो जाएगा, 

सब तरफ़, सब कुछ, 

सोनार धूप खिलने लगेगी,

उस पल में ये सुनहरी भोर सी लड़की 

मन में रहस्यमय मुस्कुरा देगी,

कहेगी, ओ! मन के ओटे पर झूमती,

घूंघर श्यामा बनसखी! 

सौम्य अधखुले नेत्रों वाली,

आत्मविस्तृत कंठमणि!

मैं जन्मों से पहचानती हूँ जिसे

हाँ, वही तो हो तुम छन छन ध्वनि ! 

-पूजा अनिल