कुछ दिन हुए हम अपने स्टोर रूम में कुछ काम कर रहे थे. पास में ही एक दूसरे स्टोर रूम में से कुछ ठोकने और मशीन की आवाज़ आ रही थी. हमने अंदाज़ लगाया कि जरूर कोई अपने स्टोर में आलमारी अथवा खूंटी लगाने का काम कर रहा है.
कोई 15 -20 मिनट बाद एक जवान, तगड़ा, लम्बा आदमी उस स्टोर में गया. दो आदमियों के बात करने की आवाज़ ... 2 मिनट बाद वो जवान चला गया.. उस स्टोर रूम से आवाजें आती रही... बात चीत की नहीं... काम करने की... कुछ देर बाद वो जवान फिर आया, और 2 मिनट बाद चला गया. और उसके कुछ देर बाद एक बूढ़ा व्यक्ति वहाँ से निकला. पतिदेव ने दुआ सलाम की , बात चीत चल पड़ी, पतिदेव ने पूछा "क्या काम कर रहे थे?" उन्होंने कहा, "स्टोर में चीज़ें रखने के लिये आलमारी बना रहा था", पतिदेव ने कहा, " तो आप इस उम्र में यह काम क्यों कर रहे थे?" तो उस बुजुर्ग के मुंह से निकल गया," क्या करें बेटा, जिन्दा रहने के लिये काम तो करना ही पड़ता है, और जो काम आता है तो उसका उपयोग भी करना चाहिए." वो जवान उनका बेटा है, जो आज अपने पिता को अपने साथ रखने का मुआवजा उनसे इस तरह के भारी काम करवा कर ले रहा है. पता नहीं उसने एक पल भी ठहर कर यह क्यों नहीं सोचा कि वो खुद भी अपने पिता की मदद कर दे....??? बस छोड़ दिया उन्हें अकेला..., क्योंकि पिता को इस काम का अनुभव जो ठहरा.
ऐसा आप में से कितने ही बुजुर्गों का अनुभव होगा कि आपके अनुभव की वजह से आपके बच्चे आप से बड़े प्यार से कह देते होंगे कि ," आपको तो इस बात का अथवा इस काम का अनुभव है, आप ही यह काम कर दीजिये". और क्योंकि अब आप अपने अनुभव को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते, इसलिए शरीर साथ दे अथवा ना दे, कई बार बेमन से भी वो काम कर देते हैं.
अगर बच्चों को किसी काम का अनुभव नहीं है तो कोई बात नहीं, कोई काम सीखने के लिये तो अनुभव की जरूरत नहीं होती ना? उन जवानों को चाहिए कि अपने बुजुर्गों को आदर के साथ एक कुर्सी पर बिठाएं एवं स्वयं उनके मार्गदर्शन में अपना कार्य संपन्न करें. इस तरह वो भी काम सीखेंगे और बुजुर्गों के अनुभव भी जाया नहीं होंगे.
आज कितने ही लोग अपने बुढ़ापे में अपने बच्चों के लिये काम करते हुए दिख जाते हैं.... कभी कोई नल ठीक करते हुए दिखता है तो कभी कोई दीवार रंगते हुए, कोई खाना पकाते हुए और कोई सिलाई करते हुए....एवं इसी तरह के कई काम. और यकीन जानिये इनके बच्चे इतने चतुर होते हैं कि अपने बुजुर्गों से बड़े प्यार से काम भी निकलवा लेते हैं और उन्हें अपनी मीठी बातों से हमेशा के लिये अपना गुलाम भी बनाए रखते हैं. ऐसे जवानों से पूछने का दिल करता है कि जब बच्चे पैदा करने होते हैं तब क्यों अपने बुजुर्गों से नहीं कहते कि आपको तो इस काम का अनुभव है, आप ही यह काम कर दीजिये?
उनके (बुजुर्गों के) तजुर्बे को अपनी सुस्ती के लिये इस्तेमाल ना करें. उन्हें अपना जीवन स्वछंद जीने दें और स्वयं आलस्य त्याग कर अपने कामों को अंजाम देना सीखें. उन्होंने पूरी ज़िन्दगी काम किया है अब उन्हें कुछ राहत देने के उपाय सोचें. उनका शरीर अब पहले की तरह फुर्तीला नहीं है, पर आपके शरीर की चपलता कायम है, अतः आप सब जवान लोगों से निवेदन है कि बुजुर्गों पर कोई काम छोड़ने से पहले अवश्य सोच लें कि क्या आप इस काम को करने में पूर्णतया असमर्थ है?
पुनः - उन्हें हमारी जरूरत है, उनका साथ दें.
धन्यवाद.
उदाहारण थोड़ा गलत है मेरी नज़र में रचना लिखने का उद्देश्य बिलकुल सही
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं...बच्चे समझें तो बेहतर!
जवाब देंहटाएंbahuut hi pyaara lekh likha hai mumaa...... likhte rahiye good keep it up..........:)
जवाब देंहटाएंसोद्देश्य लेखन के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख। सही बात है। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुनील कुमार जी, समीर लाल जी, क्षितिज जी, डॉ. शास्त्री जी एवं निर्मला कपिला जी. आप सभी का हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा पूजा जी..
जवाब देंहटाएंहम से भी ऐसा हो जाता है कभी कभी...पर कसूर हम से ज़्यादा हमारे पिता का होता है..
जाने क्यूँ..वो आज भी हमें एकदम नवजात जैसा समझते हैं.....उनकी बात ही अलग है पूजा जी...
हम खाना खाते वक़्त अगर हरी मिर्ची मांग लें..और उनके कान में पड़ जाए कि ख़त्म है..तो बिना कोई बात किये..बिना किसी से कुछ भी कहे...चुपचाप बाज़ार को दौड़ पड़ते हैं..और ताज़ा मिर्ची लाकर थाली में रख देते हैं.....
उनसे कितना तो कह चुके हैं..कि बिना हरी मिर्च के भी खाना खाया जा सकता है...ये एक बिलकुल गैरजरूरी चीज है...
पर आज तक उन्हें नहीं समझा सके..
hum bhi usi tajurbe waale banenge ,aur apni mushkilen khud hi badhaayenge .manushya ko jab sab kuch tayaagne ki taraf badhna chaahiye tab unka moh kuch jyaada hi badhne lagta hai ,aur wahin se mushkilen badhni shuru ho jaati hai,dono
जवाब देंहटाएंhi doshi hain aaj ki aur kal ki peedhi .
arrey haan sunil ji ki bat se sahmat hoon pori tarah ....................par ab wo udaaharan chhip gaya hai kahin .hahahahahhahahhahahahah
जवाब देंहटाएंanyway gud post .............
मनु जी,
जवाब देंहटाएंमाता पिता के लिए बच्चे हमेशा छोटे ही होते हैं, चाहे उम्र में जितने भी बड़े हो जाएँ| आपके पिता का आपके प्रति प्रेम है, आप इसके लिए उन्हें कसूरवार मत ठहराइए | बच्चे की तरह निश्छल और निर्मल मन रखिये, यही उनके लिए बेशकीमती तोहफा होगा|
वो तो हमारे लिए हमेशा से सब कुछ करते आये हैं, अब हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम उन्हें सारे सुख दे पायें, जिनके वो हक़दार हैं|
धन्यवाद मनु जी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीलम जी,
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप... उम्र बढ़ने के साथ साथ उम्र खतम हो जाने का डर वस्तुओं और लोगों के प्रति मोह बड़ा देता है.
सच में एक बहुत बड़ी बात की ओर ध्यान ले गईं आप... शुक्रिया...
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