1. ज़िन्दगी भर जिसे
तलाशता रहा मैं...
आँखों की कोर में
भीगी
वो ख़ुशी
मुझे कभी दिखी नहीं।
2. ढलता हुआ सूरज
रोशन कर रहा था,
मेरे अस्तित्व को
और मैं...
खुद को ढूंढ़ रही थी
अपनी ही परछाई में।
3. क्षण-प्रतिक्षण
अपनों के साथ में,
ढूँढ़ा किये दोस्ती को,
मगर नज़र से छिपा रहा...
पल-पल साथ रहा जो मन।
हिंद युग्म में प्रकाशित क्षणिकाएं.
तीनों शब्द-चित्र बहुत बढ़िया हैं!
जवाब देंहटाएंपहले पढ चुकी हूँ मगर बार बार पढने वाली रचनायें है। बधाई।
जवाब देंहटाएंकृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
धन्यवाद।
bahut khoob pooja ................
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
धन्यवाद डॉ.शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंकृपया अपना आशीर्वाद बनाए रखें.
शुक्रिया निर्मला कपिला जी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नीलम जी |
जवाब देंहटाएंआभार संजय जी|
जवाब देंहटाएंआपको भी नवरात्रि की शुभकामनाएं|
ढलता हुआ सूरज...
जवाब देंहटाएं...मेरे अस्तित्व को...
और मैं खुद को ढूंढ रही थी...
अपनी ही परछाई में...
सबसे अह्छी क्षणिका लगी.....