सोमवार, 4 अक्टूबर 2010

तलाश

1. ज़िन्दगी भर जिसे
तलाशता रहा मैं...
आँखों की कोर में
भीगी
वो ख़ुशी
मुझे कभी दिखी नहीं।

2. ढलता हुआ सूरज
रोशन कर रहा था,
मेरे अस्तित्व को
और मैं...
खुद को ढूंढ़ रही थी
अपनी ही परछाई में।

3. क्षण-प्रतिक्षण
अपनों के साथ में,
ढूँढ़ा किये दोस्ती को,
मगर नज़र से छिपा रहा...
पल-पल साथ रहा जो मन।

हिंद युग्म में प्रकाशित क्षणिकाएं.

9 टिप्‍पणियां:

  1. पहले पढ चुकी हूँ मगर बार बार पढने वाली रचनायें है। बधाई।
    कृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें
    http://veeranchalgatha.blogspot.com/
    धन्यवाद।

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  2. सुंदर प्रस्तुति....

    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

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  3. धन्यवाद डॉ.शास्त्री जी,
    कृपया अपना आशीर्वाद बनाए रखें.

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  4. शुक्रिया निर्मला कपिला जी.

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  5. आभार संजय जी|
    आपको भी नवरात्रि की शुभकामनाएं|

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  6. ढलता हुआ सूरज...
    ...मेरे अस्तित्व को...

    और मैं खुद को ढूंढ रही थी...
    अपनी ही परछाई में...

    सबसे अह्छी क्षणिका लगी.....

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