रविवार, 31 अक्तूबर 2010

प्यार....!!!

निश्छल, सरल, मासूम प्यार की तस्वीर तुमको दिखलाऊं,
पर राधा- कान्हा के प्रेम को सशरीर कहाँ से ले आऊं??



मैं कहूं, सांस की उर्जा में , कुदरत का प्यार समाया है,
तुम साँसों के जरिये प्यार जताने, निकट चले आते हो...

मैं कहूं, मुस्काती आँखों में , ईश्वर ने प्यार बसाया है,
तुम कहो, जाम का प्याला इन्हें, पीने को ललचाते हो...

मैं चाहूं शाश्वत सत्य सा प्यार, मेरी प्रार्थना है खामोशी,
तुम रूप की पूजा करने वाले, क्षणिक मिलन से पाओ ख़ुशी....

विकसित इस मस्तिष्क पटल में, भोलापन कैसे लाऊँ???
यदि तुम बालक बन जाओ, तुम्हे प्यार का मतलब समझाऊं ...

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया... मैंने भी इस विषय पर लिखा था, पर मेरी सोच और नजरिया थोडा-सा अलग था...
    बहुत प्यारी-सी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  2. विकसित इस मस्तिष्क पटल में, भोलापन कैसे लाऊँ???
    यदि तुम बालक बन जाओ, तुम्हे प्यार का मतलब समझाऊं ...
    --
    यह कविता तो अद्भुत है!

    जवाब देंहटाएं
  3. एक शे'र याद आया है बार बार ..कविता को पढ़कर..


    खुदा जब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
    कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई...

    सान्सारिक प्रेम और ईश्वरीय प्रेम...दोनों को शायद तौलती सी कविता...या शायद ना भी तौलती सी..
    पर बहुत अच्छी लगी...कमेन्ट करने में काफी वक़्त लगा...

    :)
    :)

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद पूजा जी,
    आपकी रचना पढ़ना चाहूंगी .

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी.

    जवाब देंहटाएं
  6. आभार बिमलेश,
    बहुत अच्छा लगा कि आपने कमेन्ट लिखा.

    जवाब देंहटाएं
  7. मनु जी,
    कविता का विश्लेषण करके आप मुझे हमेशा नया दृष्टिकोण देते हैं. बहुत बहुत बहुत धन्यवाद :)

    जवाब देंहटाएं
  8. मैं चाहूं शाश्वत सत्य सा प्यार, मेरी प्रार्थना है खामोशी,
    तुम रूप की पूजा करने वाले, क्षणिक मिलन से पाओ ख़ुशी..

    अद्भुत ..
    "माया महा ठगिनी हम जानी"
    कबीर की तरह निश्चल तुम्हारी पंक्तियाँ ...

    देर लगी आने में हमको शुक्र है,फिर भी आये तो ....(सॉरी फॉर लेट टिप्पणी)

    जवाब देंहटाएं
  9. शुक्रिया नीलम जी,
    देरी की कोई बात नहीं, मुझे ख़ुशी है कि आपने पढ़ा, कमेन्ट लिखा :)

    जवाब देंहटाएं