कल अपनी डायरी में रखे हुए, बरसों पहले लिखे हुए कुछ पुराने पन्ने मिले. उनमें एक छोटा सा शेर लिखा था, आज आपके सामने रख रही हूँ.
उम्मीद इन्तज़ार को लंबा किये रही,
खत्म इंतज़ार हुआ, जब गोर-ए-दफ्न हुए |
उन दिनों उर्दू के कुछ शब्द सीखे थे, उन्ही में से एक शब्द था गोर -कब्र , शायद इसे ही प्रयोग करने के लिए शेर लिखा था.
क्या यह शेर सही है? जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी.
धन्यवाद.
रचना काल - 1995
:)
जवाब देंहटाएंhamne urdu nahin sikhi ji...
जवाब देंहटाएंpar kuchh khatak rahaa hai.....
सुन्दर रचना!
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मंगलवार के साप्ताहिक काव्य मंच पर इसकी चर्चा लगा दी है!
http://charchamanch.blogspot.com/
शुक्रिया मनु जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर इसे लाने का आभार.
Beautiful knitting of thoughts in words.
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