निश्छल, सरल, मासूम प्यार की तस्वीर तुमको दिखलाऊं,
पर राधा- कान्हा के प्रेम को सशरीर कहाँ से ले आऊं??
मैं कहूं, सांस की उर्जा में , कुदरत का प्यार समाया है,
तुम साँसों के जरिये प्यार जताने, निकट चले आते हो...
मैं कहूं, मुस्काती आँखों में , ईश्वर ने प्यार बसाया है,
तुम कहो, जाम का प्याला इन्हें, पीने को ललचाते हो...
मैं चाहूं शाश्वत सत्य सा प्यार, मेरी प्रार्थना है खामोशी,
तुम रूप की पूजा करने वाले, क्षणिक मिलन से पाओ ख़ुशी....
विकसित इस मस्तिष्क पटल में, भोलापन कैसे लाऊँ???
यदि तुम बालक बन जाओ, तुम्हे प्यार का मतलब समझाऊं ...
रविवार, 31 अक्टूबर 2010
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
एक शेर
कल अपनी डायरी में रखे हुए, बरसों पहले लिखे हुए कुछ पुराने पन्ने मिले. उनमें एक छोटा सा शेर लिखा था, आज आपके सामने रख रही हूँ.
उम्मीद इन्तज़ार को लंबा किये रही,
खत्म इंतज़ार हुआ, जब गोर-ए-दफ्न हुए |
उन दिनों उर्दू के कुछ शब्द सीखे थे, उन्ही में से एक शब्द था गोर -कब्र , शायद इसे ही प्रयोग करने के लिए शेर लिखा था.
क्या यह शेर सही है? जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी.
धन्यवाद.
रचना काल - 1995
उम्मीद इन्तज़ार को लंबा किये रही,
खत्म इंतज़ार हुआ, जब गोर-ए-दफ्न हुए |
उन दिनों उर्दू के कुछ शब्द सीखे थे, उन्ही में से एक शब्द था गोर -कब्र , शायद इसे ही प्रयोग करने के लिए शेर लिखा था.
क्या यह शेर सही है? जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी.
धन्यवाद.
रचना काल - 1995
शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010
विदाई
शब्दों को शक्लें नहीं दिखती
शब्द तो बस एहसास होते हैं.
तुम थी तो शब्द मचलते थे इस घर में
तुम नहीं तो मौन बिखरा है यहाँ ...!!!
कभी कभी तुम्हारे शब्द ,
गूंजते हैं मेरे कानों में,
और.... मेरे कदम चल देते हैं,
उन्हें चुन कर दिल भर लेने को ...
पर यहाँ...
बिखरी मिलती है ख़ामोशी....!!!
तुम्हारे कमरे में
तुम्हारी तस्वीर से
बतियाती हूँ मैं
पूछती हूँ तुमसे, "क्या अपनी ससुराल में भी यूँ ही चंचल रहती हो तुम?"
तब हथेली पर महसूसती हूँ कुछ नन्ही धडकनें
और....
समझ नहीं पाती कि ये तुम्हारे आंसूं हैं या मेरे...!!!
शब्द तो बस एहसास होते हैं.
तुम थी तो शब्द मचलते थे इस घर में
तुम नहीं तो मौन बिखरा है यहाँ ...!!!
कभी कभी तुम्हारे शब्द ,
गूंजते हैं मेरे कानों में,
और.... मेरे कदम चल देते हैं,
उन्हें चुन कर दिल भर लेने को ...
पर यहाँ...
बिखरी मिलती है ख़ामोशी....!!!
तुम्हारे कमरे में
तुम्हारी तस्वीर से
बतियाती हूँ मैं
पूछती हूँ तुमसे, "क्या अपनी ससुराल में भी यूँ ही चंचल रहती हो तुम?"
तब हथेली पर महसूसती हूँ कुछ नन्ही धडकनें
और....
समझ नहीं पाती कि ये तुम्हारे आंसूं हैं या मेरे...!!!
सोमवार, 4 अक्टूबर 2010
तलाश
1. ज़िन्दगी भर जिसे
तलाशता रहा मैं...
आँखों की कोर में
भीगी
वो ख़ुशी
मुझे कभी दिखी नहीं।
2. ढलता हुआ सूरज
रोशन कर रहा था,
मेरे अस्तित्व को
और मैं...
खुद को ढूंढ़ रही थी
अपनी ही परछाई में।
3. क्षण-प्रतिक्षण
अपनों के साथ में,
ढूँढ़ा किये दोस्ती को,
मगर नज़र से छिपा रहा...
पल-पल साथ रहा जो मन।
हिंद युग्म में प्रकाशित क्षणिकाएं.
तलाशता रहा मैं...
आँखों की कोर में
भीगी
वो ख़ुशी
मुझे कभी दिखी नहीं।
2. ढलता हुआ सूरज
रोशन कर रहा था,
मेरे अस्तित्व को
और मैं...
खुद को ढूंढ़ रही थी
अपनी ही परछाई में।
3. क्षण-प्रतिक्षण
अपनों के साथ में,
ढूँढ़ा किये दोस्ती को,
मगर नज़र से छिपा रहा...
पल-पल साथ रहा जो मन।
हिंद युग्म में प्रकाशित क्षणिकाएं.
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
उनका तजुर्बा, उनकी मुश्किल.....!!!!
कुछ दिन हुए हम अपने स्टोर रूम में कुछ काम कर रहे थे. पास में ही एक दूसरे स्टोर रूम में से कुछ ठोकने और मशीन की आवाज़ आ रही थी. हमने अंदाज़ लगाया कि जरूर कोई अपने स्टोर में आलमारी अथवा खूंटी लगाने का काम कर रहा है.
कोई 15 -20 मिनट बाद एक जवान, तगड़ा, लम्बा आदमी उस स्टोर में गया. दो आदमियों के बात करने की आवाज़ ... 2 मिनट बाद वो जवान चला गया.. उस स्टोर रूम से आवाजें आती रही... बात चीत की नहीं... काम करने की... कुछ देर बाद वो जवान फिर आया, और 2 मिनट बाद चला गया. और उसके कुछ देर बाद एक बूढ़ा व्यक्ति वहाँ से निकला. पतिदेव ने दुआ सलाम की , बात चीत चल पड़ी, पतिदेव ने पूछा "क्या काम कर रहे थे?" उन्होंने कहा, "स्टोर में चीज़ें रखने के लिये आलमारी बना रहा था", पतिदेव ने कहा, " तो आप इस उम्र में यह काम क्यों कर रहे थे?" तो उस बुजुर्ग के मुंह से निकल गया," क्या करें बेटा, जिन्दा रहने के लिये काम तो करना ही पड़ता है, और जो काम आता है तो उसका उपयोग भी करना चाहिए." वो जवान उनका बेटा है, जो आज अपने पिता को अपने साथ रखने का मुआवजा उनसे इस तरह के भारी काम करवा कर ले रहा है. पता नहीं उसने एक पल भी ठहर कर यह क्यों नहीं सोचा कि वो खुद भी अपने पिता की मदद कर दे....??? बस छोड़ दिया उन्हें अकेला..., क्योंकि पिता को इस काम का अनुभव जो ठहरा.
ऐसा आप में से कितने ही बुजुर्गों का अनुभव होगा कि आपके अनुभव की वजह से आपके बच्चे आप से बड़े प्यार से कह देते होंगे कि ," आपको तो इस बात का अथवा इस काम का अनुभव है, आप ही यह काम कर दीजिये". और क्योंकि अब आप अपने अनुभव को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते, इसलिए शरीर साथ दे अथवा ना दे, कई बार बेमन से भी वो काम कर देते हैं.
अगर बच्चों को किसी काम का अनुभव नहीं है तो कोई बात नहीं, कोई काम सीखने के लिये तो अनुभव की जरूरत नहीं होती ना? उन जवानों को चाहिए कि अपने बुजुर्गों को आदर के साथ एक कुर्सी पर बिठाएं एवं स्वयं उनके मार्गदर्शन में अपना कार्य संपन्न करें. इस तरह वो भी काम सीखेंगे और बुजुर्गों के अनुभव भी जाया नहीं होंगे.
आज कितने ही लोग अपने बुढ़ापे में अपने बच्चों के लिये काम करते हुए दिख जाते हैं.... कभी कोई नल ठीक करते हुए दिखता है तो कभी कोई दीवार रंगते हुए, कोई खाना पकाते हुए और कोई सिलाई करते हुए....एवं इसी तरह के कई काम. और यकीन जानिये इनके बच्चे इतने चतुर होते हैं कि अपने बुजुर्गों से बड़े प्यार से काम भी निकलवा लेते हैं और उन्हें अपनी मीठी बातों से हमेशा के लिये अपना गुलाम भी बनाए रखते हैं. ऐसे जवानों से पूछने का दिल करता है कि जब बच्चे पैदा करने होते हैं तब क्यों अपने बुजुर्गों से नहीं कहते कि आपको तो इस काम का अनुभव है, आप ही यह काम कर दीजिये?
उनके (बुजुर्गों के) तजुर्बे को अपनी सुस्ती के लिये इस्तेमाल ना करें. उन्हें अपना जीवन स्वछंद जीने दें और स्वयं आलस्य त्याग कर अपने कामों को अंजाम देना सीखें. उन्होंने पूरी ज़िन्दगी काम किया है अब उन्हें कुछ राहत देने के उपाय सोचें. उनका शरीर अब पहले की तरह फुर्तीला नहीं है, पर आपके शरीर की चपलता कायम है, अतः आप सब जवान लोगों से निवेदन है कि बुजुर्गों पर कोई काम छोड़ने से पहले अवश्य सोच लें कि क्या आप इस काम को करने में पूर्णतया असमर्थ है?
पुनः - उन्हें हमारी जरूरत है, उनका साथ दें.
धन्यवाद.
कोई 15 -20 मिनट बाद एक जवान, तगड़ा, लम्बा आदमी उस स्टोर में गया. दो आदमियों के बात करने की आवाज़ ... 2 मिनट बाद वो जवान चला गया.. उस स्टोर रूम से आवाजें आती रही... बात चीत की नहीं... काम करने की... कुछ देर बाद वो जवान फिर आया, और 2 मिनट बाद चला गया. और उसके कुछ देर बाद एक बूढ़ा व्यक्ति वहाँ से निकला. पतिदेव ने दुआ सलाम की , बात चीत चल पड़ी, पतिदेव ने पूछा "क्या काम कर रहे थे?" उन्होंने कहा, "स्टोर में चीज़ें रखने के लिये आलमारी बना रहा था", पतिदेव ने कहा, " तो आप इस उम्र में यह काम क्यों कर रहे थे?" तो उस बुजुर्ग के मुंह से निकल गया," क्या करें बेटा, जिन्दा रहने के लिये काम तो करना ही पड़ता है, और जो काम आता है तो उसका उपयोग भी करना चाहिए." वो जवान उनका बेटा है, जो आज अपने पिता को अपने साथ रखने का मुआवजा उनसे इस तरह के भारी काम करवा कर ले रहा है. पता नहीं उसने एक पल भी ठहर कर यह क्यों नहीं सोचा कि वो खुद भी अपने पिता की मदद कर दे....??? बस छोड़ दिया उन्हें अकेला..., क्योंकि पिता को इस काम का अनुभव जो ठहरा.
ऐसा आप में से कितने ही बुजुर्गों का अनुभव होगा कि आपके अनुभव की वजह से आपके बच्चे आप से बड़े प्यार से कह देते होंगे कि ," आपको तो इस बात का अथवा इस काम का अनुभव है, आप ही यह काम कर दीजिये". और क्योंकि अब आप अपने अनुभव को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते, इसलिए शरीर साथ दे अथवा ना दे, कई बार बेमन से भी वो काम कर देते हैं.
अगर बच्चों को किसी काम का अनुभव नहीं है तो कोई बात नहीं, कोई काम सीखने के लिये तो अनुभव की जरूरत नहीं होती ना? उन जवानों को चाहिए कि अपने बुजुर्गों को आदर के साथ एक कुर्सी पर बिठाएं एवं स्वयं उनके मार्गदर्शन में अपना कार्य संपन्न करें. इस तरह वो भी काम सीखेंगे और बुजुर्गों के अनुभव भी जाया नहीं होंगे.
आज कितने ही लोग अपने बुढ़ापे में अपने बच्चों के लिये काम करते हुए दिख जाते हैं.... कभी कोई नल ठीक करते हुए दिखता है तो कभी कोई दीवार रंगते हुए, कोई खाना पकाते हुए और कोई सिलाई करते हुए....एवं इसी तरह के कई काम. और यकीन जानिये इनके बच्चे इतने चतुर होते हैं कि अपने बुजुर्गों से बड़े प्यार से काम भी निकलवा लेते हैं और उन्हें अपनी मीठी बातों से हमेशा के लिये अपना गुलाम भी बनाए रखते हैं. ऐसे जवानों से पूछने का दिल करता है कि जब बच्चे पैदा करने होते हैं तब क्यों अपने बुजुर्गों से नहीं कहते कि आपको तो इस काम का अनुभव है, आप ही यह काम कर दीजिये?
उनके (बुजुर्गों के) तजुर्बे को अपनी सुस्ती के लिये इस्तेमाल ना करें. उन्हें अपना जीवन स्वछंद जीने दें और स्वयं आलस्य त्याग कर अपने कामों को अंजाम देना सीखें. उन्होंने पूरी ज़िन्दगी काम किया है अब उन्हें कुछ राहत देने के उपाय सोचें. उनका शरीर अब पहले की तरह फुर्तीला नहीं है, पर आपके शरीर की चपलता कायम है, अतः आप सब जवान लोगों से निवेदन है कि बुजुर्गों पर कोई काम छोड़ने से पहले अवश्य सोच लें कि क्या आप इस काम को करने में पूर्णतया असमर्थ है?
पुनः - उन्हें हमारी जरूरत है, उनका साथ दें.
धन्यवाद.
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अनुभव,
उनका तजुर्बा,
उनकी मुश्किल,
उन्हें हमारी जरूरत है,
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