सोमवार, 23 मई 2022

स्पेन के तापास (Tapas)

 मद्रिद (स्पेन) के तापास (Tapas) 

अकसर जब हम स्पेन के तापास की बात करते हैं तो लोग हमसे जिज्ञासावश पूछते हैं कि क्या होते हैं ये तापास? 
हम बताते हैं कि स्ट्रीट फ़ूड की बहुत सी वैरायटी जैसे ब्रेड, स्पेनिश ऑमलेट, मीट, हैम, फ़िश, सी फ़ूड, चीज़, ऑलिव (ज़ैतून) इत्यादि की अलग अलग तरह की बनी हुई डिशेज़ होती हैं , जैसे भारत के समोसे, टिक्की, पकौड़े, चाट, दही बड़े, आदि आदि। लेकिन इस तरह बताने से हमारे मन में इन डिशेज़ का सही सही चित्र नहीं बन पाता। तो हमने सोचा क्यों न सभी जिज्ञासु लोगों के लिये तापास के असली चित्र ही ले आयें! 

तो हमने शब्दों से तो आपको बहुत बार बताया ही है, लीजिये, अब इन तापास के चित्र भी ले आये हैं। इस बार हम जब मद्रिद के एक सबसे पुराने मार्केट (मेरकादो सान मिग़ेल) में गये तो वहाँ की रौनक़ में घूम घूम कर आपके लिये तापास की ढेर सारी वैरायटी की तस्वीरें  ले आए। सबसे अच्छी बात यह कि डिसप्ले में  इन तापास के साथ में इनके स्पेनिश नाम लिखे हैं (और क्योंकि  टूरिस्ट बहुत आते हैं वहाँ इसलिये अब यही नाम अंग्रेज़ी में भी लिखे हुए मिल गए)। उम्मीद है अब आप दूर बैठे हुए भी जान जाएँगे कि स्पेनिश तापास कैसे दिखते हैं!! देखिये तो ज़रा, इनमें से कौनसा तापा आपको पसंद आ रहा है? 
फिलवक्त़ आप इन चित्रों से काम चलाइये, लेकिन जब कभी स्पेन आएँ तो इन तापास के स्वाद का आनंद ज़रूर लीजियेगा और हमें भी याद कीजियेगा। 

यह तो हम केवल एक फ़ूड मार्केट के ही चित्र लाये हैं, जो तापास वहाँ दिखे केवल वहीं हैं  लेकिन आप पूरे स्पेन में कहीं भी चले जाइये, हर जगह आपको अलग अलग तरह के तापास खाने को अवश्य मिलेंगे। यहाँ नॉन वेज वैरायटी बहुत है लेकिन वेज भी कुछ कम नहीं है। भारत के स्ट्रीट फ़ूड की तरह तीखा नहीं होगा मगर स्वादिष्ट भरपूर होगा। सबसे अच्छी बात यह कि फ़्रेश बना हुआ होगा, इस बात की गारंटी है। 

चलिये, आपके लिये घर पर ही झटपट बना कर खाने वाले एक तापा की रेसिपी बताती हूँ। यह मेरी अपनी ही ईजाद की हुई बिलकुल सरल रेसिपी है। एक फ़्रेंच ब्रेड का लोफ़ ले लें और किसी तीखी छुरी से उसके एक सेंटीमीटर जितने पतले स्लाइस कर लें। अब उस पर कुछ ऑलिव ऑयल छिड़क लें और एक ट्रे में सजाकर एक तरफ रख दें। इस बीच में हरी लाल पीली शिमला मिर्च ले कर उसे लंबा काट लें और बिलकुल कम तेल में तवे पर या नॉन स्टिक पैन में 2-3 मिनट तेज आँच पर सेक लें। अब इस पर थोडा सा नमक, काली मिर्च और थोडा सा ऑरेगेनो छिड़क दें। अब पहले से क़रीने से लगे ब्रेड स्लाइस पर ज़रा सी अदा से कलाकारी करते हुए शिमला मिर्च के हलके सिके हुए लंबे टुकड़े सजायें और तुरंत ही खाएँ खिलाएँ। यदि आपको पसंद हो तो इस पर एक मोजा़रेला चीज़ स्लाइस रख कर इस तापा का अद्भुत स्वाद लें। फ़्रेंच ब्रेड न मिले तो जो मिले वही ब्रेड ले लें। आसानी से जिस रंग की शिमला मिर्च मिले, वही लें। ऑरेगेनो न मिले तो हरा धनिया ले लें, इस तरह  स्पेनिश-भारतीय स्वाद का मज़ा एक साथ मिलेगा। 

जब तक आप स्पेन आएँ और यहाँ के तापास का वास्तविक स्वाद लें, तब तक स्पेन से पूजानिल का स्नेहिल अभिवादन। ❤️🙏🏻☺️
शुक्रिया साथ होने के लिये। 🥰🙏🏻 

-पूजानिल 


 

Chocolates

Kind of mini burger tapas 

Paella maker dishes in the paella stall



Spanish Paella - variety of Rice

Spanish Omelette- Tortilla de patata
Spanish Omelette- Tortilla de patata
 


Tortilla de patata - different tastes








Veg Arepa, cheese ball and tortilla de maiz (corn)
 


Crab Tapas




seafood salad


















Olives with a tangy taste of Orange


Olive shop


Variety of Olives 


I found it Eye-catching olive jar



cheese cheese and more cheese 



Croqueta is a most favourite typical tapa of Spain 











रविवार, 22 मई 2022

  

जब आप जागृत हैं तब आप देख सकते हैं कि संसार में दुख है किन्तु दुखी कोई नहीं है, विविध प्रकार का कर्म हो रहा है किन्तु कर्म करने वाला कोई नहीं है। 
- बुद्ध का मध्यम मार्ग 

सोमवार, 2 मई 2022

मैं खत रूहानी लिखती हूँ

 


मेरे ब्लॉग की यह सौवीं पोस्ट समर्पित है मेरे देश के नाम तथा मेरे सभी परिवारजन, दोस्तों के नाम। मैं कृतज्ञ हूँ उन सभी मित्रों और चाहने वालों के प्रति, जिन्होनें ब्लॉग्गिंग के दौर में मेरे लेखन के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की एवं  मेरे अच्छे या बुरे, हर तरह के लेखन में मेरे साथ बने रहे, मित्रता निभाई और आगे बढ़ने को प्रेरित किया। आप सभी को पूर्ण हृदय से  प्रेम भरा धन्यवाद भेजती हूँ। 

साढ़े सात हज़ार किलोमीटर की दूरी से जब मैं अपना शहर, उदयपुर, देखती हूँ तो वो बस एक छोटा सा शहर नहीं रह जाता, बल्कि वो सम्पूर्ण देश में तब्दील हो जाता है।  धरती का विस्तार मेरी दृष्टि में प्रतिबिम्बित हो कर अधिक विस्तृत हो जाता है। कदाचित मेरे शहर की बात कहते हुए मैं अपने पूरे देश की धड़कन को महसूस कर रही होती हूँ। 


मैं इस दिल की सच्ची ज़ुबानी लिखती हूँ,
मेरे देश को मैं खत रूहानी लिखती हूँ,
कोने कोने पहुंचे सन्देश इन नम आँखों का, 
मासूम बचपने सी कोरी मनमानी लिखती हूँ। 
मैं माटी की गंध यहाँ संग लाई  हूँ,
इतिहास अपने वीरों का सुना सुना इतराई हूँ, 
कभी अपने देश की निशानी बन कर लहराई हूँ, 
मैं उसी तलवार की तेज़ रवानी लिखती हूँ,
मेरे देश को खत रूहानी लिखती हूँ। 
दैवीय उपहार हमारी भारत भूमि है, 
देश विदेश में सम्मानीय यह भूमि है,
बागों में, इसके खेतों में, खिलती जो तरुणाई है, 
मैं उसे तमाम ऋतुओं की रानी लिखती हूँ, 
मेरे देश को मैं खत रूहानी लिखती हूँ। 
न चोर न डकैत, न हो देश में भ्रष्ट कोई, 
नारी का सम्मान न करे कभी नष्ट कोई, 
देश को विश्व में न करे बदनाम कोई, 
प्रार्थना यह अपनी, भावभीनी लिखती हूँ, 
मेरे देश को मैं खत रूहानी लिखती हूँ। 
चाहे मैं लाख समुन्दर पार जा बसा,
मगर देश हिन्द सदैव हृदय का ताज बना, 
है यही देश जो नसों में आनंद बन कर बहा, 
मैं अपने उसी प्रिय देश की कहानी लिखती हूँ, 
मेरे देश को मैं खत रूहानी लिखती हूँ। 
- पूजानिल 

रविवार, 1 मई 2022

माँ के लिए पत्र

 



मेरी मम्मा को समर्पित 

माँ से सीखने का क्रम तो ताउम्र चलता रहता है।  कभी रसोई में खाना बनाने का तरीका तो कभी घर में साज सज्जा का सलीका, कभी रिश्तेदारी निभाने का शिष्टाचार तो कभी सामाजिक कर्त्तव्य पूर्ण करने का परिष्कार।  

अक्सर ऐसा होता है कि मैं माँ के साथ फ़ोन पर बातें करते समय अपने परिवार, परिवेश और नैतिक शिक्षा पर बात करती रहती हूँ। वैसे तो होना यूँ चाहिए कि माँ मुझे इन सब बातों पर भाषण दे लेकिंन होता इसका ठीक विपरीत है।  मैं माँ के सामने बड़ी बड़ी ज्ञान ध्यान की बातें करती रहती हूँ और मेरी माँ बड़े मन और जतन से उन बातों को इस तरह ध्यानपूर्वक सुनती हैं  जैसे उन्हें इन सभी बातों का कोई ज्ञान ही ना हो! मैं उन से जो कुछ भी कहूं, वे कभी उसका प्रतिरोध नहीं करतीं।  और सच कहूं तो उनकी असाधारण रूप से स्नेह और सम्मान देने को एकमेक कर देने वाली यह सहज बात मुझे उनके प्रति अगाध श्रद्धा से भर देती है। 
             
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स्पेन में मई के प्रथम रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है, जैसे कि आज एक मई को मनाया जा रहा है। माँ को मातृ दिवस पर अनंत प्रेम के साथ बधाई भेज रही हूँ। मेरे पास माँ के लिए लिखा गया एक पुराना पत्र है, अब माँ तो नहीं रहीं, लेकिन उनकी याद प्रति पल जीवित रहती है, आज उन्हें लिखा मेरा यह पत्र अपने ब्लॉग पर साझा कर रही हूँ जो उनके जीते जी उन तक भेजने की कभी हिम्मत  नहीं जुटा पाई। ​

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15/09/2019 
मद्रिद 

मेरी प्यारी ममा!

कैसी हो आप?
इस समय यानि इन दिनों, मैं जब भी आप से पूछती हूँ कि ''आप कैसी हो?'', लगता है जैसे मैं कोई अपराध कर रही हूँ। 

मन से और बुद्धि से भी जानती तो हूँ ही कि आप इन दिनों अपार कष्टमय दिन बिता रही हैं। फिर भी पूछने की धृष्टता करती हूँ और स्वयं ही एक अपराध-बोध की गिरफ़्त में सहम सी जाती हूँ। 
लगभग पिछले बारह महीनों से आप कैंसर से लड़ाई लड़ रही हैं और इलाज के नाम पर  थोपी जा रही अंग्रेजी, आयुर्वेदिक या होमियोपैथी,  हर तरह की दवाइयों से दो चार होते हुए शरीर-तोड़ व्यथा से भी जूझ रही हैं। आपके भीतर जो उथल पुथल मची हुई होगी और जो दर्द आप सहन कर रही हैं, मैं वो सब कुछ आपके चेहरे पर पढ़ने की कोशिश करती हूँ। मुझे लगता है आप सारा दर्द बताती ही नहीं हैं हमें। लेकिन जो दिल से जुड़े हों, उन से छुपा लेना सरल नहीं होता, हमें पता चल ही जाती है आपकी असहनीय पीड़ा! 

मैं अपने अंतस की गहराइयों से चाहती हूँ कि आपको  इस पीड़ा से विराम मिले और आप पुनः स्वस्थ होकर सुन्दर जीवन जियें। चाहने की सीमा लेकिन  न्यूनतम  दायरा रखती है। मैं हर तरह से कोशिश करके भी आपको स्वास्थ्य देने में विफल रही हूँ और यह विफलता मुझे भी अत्यंत पीड़ा देने वाली साबित हुई है। आपको तुरंत स्वस्थ लाभ प्राप्त करने की कोशिश में  ऐसा भी हुआ कि कई बार हमने बेहद क्रूर हो कर आपको दवा निगलने के लिए मजबूर कर दिया, जिसे आप न चाहते हुए भी निगल जाती हैं। कई बार यूँ भी होता है कि बड़ी ही निर्ममता से आप इंकार कर देती हैं दवा लेने से और तब हम तीनों भाई-बहन आपकी ज़िद के आगे हतोत्साहित हो जाते हैं।   

जानती हो, मेरी कल्पना क्या कहती है? यह कहती है कि किसी तरह आपके तन में प्रवेश कर जाऊं और तुरंत बाहर निकाल लाऊँ उस उद्दण्ड कैंसर रूपी ग्रंथि को जिसने आपको भयंकर कष्ट दिया है! लेकिन दुखद है यह कि मैं ऐसा कर पाने में भी असमर्थ हूँ। 

जब मेरी सभी असमर्थता मेरे समक्ष प्रकट हो जाती हैं, मेरी आँखों के आगे भीषण उत्पात करने लगती हैं, मैं अपनी तमाम कोशिशों से निढाल हो जाती हूँ और तब मैं हार मान कर आपसे कह देती हूँ कि आप अपना बहुत ध्यान रखिये।  ( मन मैं तब यही ​विचार ​आता है कि मैं तो इस लायक भी नहीं कि आपका ध्यान रख पाऊं! )

इस समय बहुत प्यार आपको प्यारी मम्मा!​ 
आपकी गुड़िया 



गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

जीवन, बेअंत जीवन

 

जीवन है एक बड़ी नाव , 

सांस छोटी सी नैया। 

जीवन  तैरता रहता है पानी पर
स्थिर कभी, गतिमान कभी। 
दूर तक साये सा दिखता रहता है। 
फिर एक दिन धम् से ग़ायब! 
जैसे कोई चमत्कार। 


साँस आती है, जाती है, 
ओझल हो जाती है, 
पलक झपकने तक कि फुरसत नहीं देती 
कि उसे ठीक से अनुभव कर पायें।
 
जिस क्षण पकड़ में आती है, 
छटपटाहट दमदार देती है, 
मानो अगले ही पल प्राण निकल जायें। 


और वहीं ततक्षण आज़ाद हो 

विलीन हो जाती है अपने राम में! 



उसकी लीला का कोई अंत ही नहीं, 
जीवन भी बेअंत नहीं! 
- पूजानिल 

मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

मेरे प्यारे मोहन भैया





जन्म लेते ही माता पिता, दादा दादी, नाना नानी इत्यादि परिवार के 
सदस्य इकट्ठे ही लगभग प्रत्येक बच्चे को उपहार स्वरूप मिल जाते हैं। 
मेरे पिता का परिवार बड़ा था सो साथ में छह चाचाजी और तीन बुआ जी ​ 
उपहार मिले, ​ दूसरी तरफ माँ के परिवार से तीन मामाजी और तीन मौसीयाँ 
भी उपहार में मिलीं। माँ और पिताजी, दोनों ही अपने अपने 
भाई बहनों में सबसे बड़े थे। 

मैं आज बात करूँगी मुझे मिले एक अनमोल उपहार मेरे तीसरे नम्बर के 
चाचाजी यानी पिता के बाद चौथे नंबर के भाई, हम सब के प्रिय​,​ मोहन भैया की। 
जब हम छोटे थे, तब किसी ने चाचा की जगह भैया कहना सिखा दिया था, 
तब से मोहन भैया और उनसे छोटे तीन चाचाजी को हमने 
हमेशा भैया कहकर ही पुकारा। रिश्ता भी हमने सदैव उसी तरह 
भाई बहन सरीखा निभाया। हम उन्हें राखी बांधते, वे ​ आशीर्वाद स्वरुप ​
हमें गिफ़्ट या पैसा देते। ​ किस्मत से​ बचपन में ​ भरे पूरे  ​संयुक्त परिवार 
में रहने का अवसर मिला जो कि बाद में समय के साथ एकल 
 परिवार में बदल गया। लेकिन जो नहीं बदला, वह था 
हमारा आपस का प्रेम। हम चाहे कितना भी दूर रहे किन्तु 
बचपन वाला प्रेमपूर्ण ​, सौहार्द्र वाला ​व्यवहार सदा कायम रहा। 

मुझसे सत्रह साल बड़े मोहन भैया बड़े ही मनमोहक दिखते थे,
 मोहन नाम के अनुरूप ही मोह लेने वाली atyant सुन्दर सूरत और 
सीरत पाई उन्होंने। ​।जब भी उन्हें देखो तो वे मुस्कुराते हुए ही दिखते।  
पढ़ने में बेहद मन लगता था उनका तथा ईश्वर ने उन्हें कुशाग्र बुद्धि 
प्रदान की थी। कहते हैं कि छठी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण करने के 
पश्चात् उन्होंने सीधे दसवीं कक्षा की परीक्षा दी थी। घर में हम सभी उनकी 
प्रतिभा का लोहा मानते थे। उनकी हस्तलिपि भी हमेशा अद्भुत सुंदर रही। 
स्वभाव से वे जानकारी एकत्रित करने के शौकीन थे, अत: सवाल खूब 
पूछते थे। मुझे याद है ​ कि वे ​हमें भी पढ़ाई की तरफ प्रेरित करते they।

सम्पूर्ण परिवार में वे हर एक के चहेते तो थे ही, ​ उनकी सलाह प्रत्येक 
कार्य हेतु ज़रूरी थी, साथ ही यदि किसी से दोस्ती करते तो बड़े ही 
जतन और मन से दोस्ती भी निभाते थे। कभी कोई नाराज़ हो जाए 
तो बड़े प्यार से हंस कर मना लेते उसे। मिल बाँट कर हँसते हँसते 
ज़िंदगी जीने का हुनर सिखाते थे मोहन भैया। योग करने के लिए न 
सिर्फ स्वयं कदम आगे बढ़ाते बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करते। 
मेहनती इतने कि दुकान के कामकाज के अलावा प्रतिदिन समाज सेवा 
के काम के लिये भी तन मन धन से जुटे रहते। अपने परिवार के साथ 
समय बिताने में भी पूरी लगन से आगे रहते। इतना काम करने का 
नतीजा यह होता था कि कभी कभी हम सबसे बात करते करते 
ही उन्हें कहीं भी नींद आ जाती थी, फिर अचानक से उठ बैठते 
और पूछते कि जो बात चल रही थी, उसका क्या हुआ! 
उनकी इस भोली सी अदा पर हम सब हंस पड़ते थे। 

उनके किस्से परिवार तक सीमित नहीं थे। व्यापार हो, बैंकिंग हो, 
घूमना फिरना, पिकनिक, पारिवारिक भोज की व्यवस्था हो या 
समाज में जुलूस का प्रबंध करना या फिर अखबार में समाचार 
देने की व्यवस्था करना हो, प्रत्येक कार्य को ऐसी कुशलता मगर इतनी 
सहजता से कर देते कि लगता यह केवल उनके ही बस की बात थी। 
घर परिवार में किसी को कोई समस्या आ जाए तो आधी रात उठकर 
भी मदद करने को चल देते थे। वे बच्चो के साथ बच्चा बन जाते और 
बड़ी सरलता से उन्हें भी दोस्त बना लेते। ​यहाँ तक कि ​​वे जब स्वयं 
​नाना बने तो नन्हे से नाती को भी अपना दीवाना बना दिया। ​

वे जब 80 के दशक में बिज़नेस ट्रिप से सिंगापुर घूमकर लौटे तो 
हमारे लिए बड़े ही आकर्षण का केंद्र बन गए। इतनी बड़ी टी वी लाए 
वहाँ से कि उस ज़माने में कभी हमने सोची भी न थी। ​हर तरफ उनकी 
विदेश यात्रा की चर्चा होती और हम बड़ा गर्व 
अनुभव करते कि ये हमारे अपने मोहन भैया हैं। ​

​जब ​हम बड़े हुए, ​तो ​पिता जी की अनुपस्थिति में हम हर काम में 
उनकी सलाह लेते। मेरी शादी में भी उनका आशीर्वाद मिला। बाद में ​ 
मेरी ससुराल में फोन करके ​मेरा हाल चाल हमेशा लेते थे वे।
मेरे​ ​मेड्रिड आने के बाद भी मेरे निरंतर संपर्क में रहे मोहन भैया,
पत्र या ईमेल ​ भी ​लिखते थे।

​जब मैं ​मद्रिद से उदयपुर लौटती तो ऐसी प्रसन्नता से वे सुबह शाम 
मुझसे मिलने माँ के घर आते थे, कि पिता की कमी महसूस न होने देते कभी। 
मन ऐसा जुड़ा था उनसे भावनात्मक स्तर पर कि पिता और 
बेटी जैसा ही संबंध अनुभव होता है मुझे। 

तब उन दिनों में भी, जब विदेश फोन करना बडा ही खर्चीला हुआ 
करता था ​तब भी एक ​पिता की तरह जिम्मेदारी निभाते हुए मुझसे फोन 
पर बात करते रहते थे, और तब भी जब व्हाट्सएप्प जैसी सुविधा मिल 
गई​ तो भी बात हुआ करती उनसे​। ​संयोग से आखिरी बार अपने दुनिया से  
कूच करने से एक दिन पहले ही उन्होंने मुझसे बात की थी। 

मेरे पिताजी को बहुत जल्दी ईश्वर ने अपने पास बुला लिया था। 
2020 में माँ भी वहीं चलीं गईं। और अब मोहन भैया भी अपने 
भाई भाभी के संग हो लिये। गुरुवार 21 अप्रैल की शाम को मंदिर 
में प्रणाम करने को नतमस्तक हुए तो वहीं ईश्वर को समर्पित हो गए। 
आत्मा का परमात्मा में विलीन होने का इस से अच्छा क्षण क्या होगा 
कि प्रभु को स्मरण करते हुए ही प्रभु से जा मिलें! इस विदा होने से 
एक दिन पहले ही उन्होंने मुझे कॉल किया था और पौन घंटा 
क़रीब बात करते रहे। कह रहे थे कि इलाज से अब आँख की रोशनी 
लौट रही है तथा वे जल्दी ही आँखों के डॉक्टर से मिलने दिल्ली जाएँगे। 
तब यह पता भी न था कि वही उनसे अंतिम बातचीत होगी। 
अब उनकी राह में रोशनी ही रोशनी होगी, दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 
डॉक्टर के पास जो पहुँच गये हैं मेरे प्यारे भैया। हमारे पास अब उनकी 
अनन्त यादें बाकी हैं, जिनके जरिये वे हमारे साथ हर पल बने रहेंगे। 
हाँ, अपनी ढेर सारी जिज्ञासाओं के साथ वे अब वहाँ ईश्वर से खूब सवाल कर रहे होंगे। 

मेरे सबसे छोटे चाचाजी ने बताया कि मोहन भैया की दृष्टि बाधित होने 
के बाद किसी दिन वे मंदिर जा रहे थे तो किसी ने उनसे कहा कि कुछ दिखता 
तो है नहीं, आप क्या करोगे मंदिर जाकर? 
तब मोहन भैया ने बड़ी सहजता से 
मुस्कुराकर जवाब दिया कि, “ मैं नहीं देख सकता 
मगर भगवान तो मुझे देख सकते हैं न!” 
तो ऐसे थे वे धुन के पक्के और दृढ़ विश्वास से भरपूर। 

यह सब लिखते हुए ​बार बार ​आँसू उमड़ रहे हैं। 
एक और बार, पिता से बिछड़ने का दुख झेल रही हूँ। 
आपकी अपनी दो बेटियों के अलावा यह बेटी भी आपको 
खूब याद कर रही है मोहन भैया! 
मो​बेश मेरे जैसी ही स्थिति परिवार में सबकी है। 
इतने अपने हो आप मोहन भैया कि सदैव सदैव दिल में रहोगे। 
-पूजानिल​