रविवार, 1 मई 2022

माँ के लिए पत्र

 



मेरी मम्मा को समर्पित 

माँ से सीखने का क्रम तो ताउम्र चलता रहता है।  कभी रसोई में खाना बनाने का तरीका तो कभी घर में साज सज्जा का सलीका, कभी रिश्तेदारी निभाने का शिष्टाचार तो कभी सामाजिक कर्त्तव्य पूर्ण करने का परिष्कार।  

अक्सर ऐसा होता है कि मैं माँ के साथ फ़ोन पर बातें करते समय अपने परिवार, परिवेश और नैतिक शिक्षा पर बात करती रहती हूँ। वैसे तो होना यूँ चाहिए कि माँ मुझे इन सब बातों पर भाषण दे लेकिंन होता इसका ठीक विपरीत है।  मैं माँ के सामने बड़ी बड़ी ज्ञान ध्यान की बातें करती रहती हूँ और मेरी माँ बड़े मन और जतन से उन बातों को इस तरह ध्यानपूर्वक सुनती हैं  जैसे उन्हें इन सभी बातों का कोई ज्ञान ही ना हो! मैं उन से जो कुछ भी कहूं, वे कभी उसका प्रतिरोध नहीं करतीं।  और सच कहूं तो उनकी असाधारण रूप से स्नेह और सम्मान देने को एकमेक कर देने वाली यह सहज बात मुझे उनके प्रति अगाध श्रद्धा से भर देती है। 
             
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स्पेन में मई के प्रथम रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है, जैसे कि आज एक मई को मनाया जा रहा है। माँ को मातृ दिवस पर अनंत प्रेम के साथ बधाई भेज रही हूँ। मेरे पास माँ के लिए लिखा गया एक पुराना पत्र है, अब माँ तो नहीं रहीं, लेकिन उनकी याद प्रति पल जीवित रहती है, आज उन्हें लिखा मेरा यह पत्र अपने ब्लॉग पर साझा कर रही हूँ जो उनके जीते जी उन तक भेजने की कभी हिम्मत  नहीं जुटा पाई। ​

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15/09/2019 
मद्रिद 

मेरी प्यारी ममा!

कैसी हो आप?
इस समय यानि इन दिनों, मैं जब भी आप से पूछती हूँ कि ''आप कैसी हो?'', लगता है जैसे मैं कोई अपराध कर रही हूँ। 

मन से और बुद्धि से भी जानती तो हूँ ही कि आप इन दिनों अपार कष्टमय दिन बिता रही हैं। फिर भी पूछने की धृष्टता करती हूँ और स्वयं ही एक अपराध-बोध की गिरफ़्त में सहम सी जाती हूँ। 
लगभग पिछले बारह महीनों से आप कैंसर से लड़ाई लड़ रही हैं और इलाज के नाम पर  थोपी जा रही अंग्रेजी, आयुर्वेदिक या होमियोपैथी,  हर तरह की दवाइयों से दो चार होते हुए शरीर-तोड़ व्यथा से भी जूझ रही हैं। आपके भीतर जो उथल पुथल मची हुई होगी और जो दर्द आप सहन कर रही हैं, मैं वो सब कुछ आपके चेहरे पर पढ़ने की कोशिश करती हूँ। मुझे लगता है आप सारा दर्द बताती ही नहीं हैं हमें। लेकिन जो दिल से जुड़े हों, उन से छुपा लेना सरल नहीं होता, हमें पता चल ही जाती है आपकी असहनीय पीड़ा! 

मैं अपने अंतस की गहराइयों से चाहती हूँ कि आपको  इस पीड़ा से विराम मिले और आप पुनः स्वस्थ होकर सुन्दर जीवन जियें। चाहने की सीमा लेकिन  न्यूनतम  दायरा रखती है। मैं हर तरह से कोशिश करके भी आपको स्वास्थ्य देने में विफल रही हूँ और यह विफलता मुझे भी अत्यंत पीड़ा देने वाली साबित हुई है। आपको तुरंत स्वस्थ लाभ प्राप्त करने की कोशिश में  ऐसा भी हुआ कि कई बार हमने बेहद क्रूर हो कर आपको दवा निगलने के लिए मजबूर कर दिया, जिसे आप न चाहते हुए भी निगल जाती हैं। कई बार यूँ भी होता है कि बड़ी ही निर्ममता से आप इंकार कर देती हैं दवा लेने से और तब हम तीनों भाई-बहन आपकी ज़िद के आगे हतोत्साहित हो जाते हैं।   

जानती हो, मेरी कल्पना क्या कहती है? यह कहती है कि किसी तरह आपके तन में प्रवेश कर जाऊं और तुरंत बाहर निकाल लाऊँ उस उद्दण्ड कैंसर रूपी ग्रंथि को जिसने आपको भयंकर कष्ट दिया है! लेकिन दुखद है यह कि मैं ऐसा कर पाने में भी असमर्थ हूँ। 

जब मेरी सभी असमर्थता मेरे समक्ष प्रकट हो जाती हैं, मेरी आँखों के आगे भीषण उत्पात करने लगती हैं, मैं अपनी तमाम कोशिशों से निढाल हो जाती हूँ और तब मैं हार मान कर आपसे कह देती हूँ कि आप अपना बहुत ध्यान रखिये।  ( मन मैं तब यही ​विचार ​आता है कि मैं तो इस लायक भी नहीं कि आपका ध्यान रख पाऊं! )

इस समय बहुत प्यार आपको प्यारी मम्मा!​ 
आपकी गुड़िया 



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