जीवन है एक बड़ी नाव ,
सांस छोटी सी नैया।
जीवन तैरता रहता है पानी पर,
स्थिर कभी, गतिमान कभी।
दूर तक साये सा दिखता रहता है।
फिर एक दिन धम् से ग़ायब!
जैसे कोई चमत्कार।
साँस आती है, जाती है,
ओझल हो जाती है,
पलक झपकने तक कि फुरसत नहीं देती
कि उसे ठीक से अनुभव कर पायें।
जिस क्षण पकड़ में आती है,
छटपटाहट दमदार देती है,
मानो अगले ही पल प्राण निकल जायें।
और वहीं ततक्षण आज़ाद हो
विलीन हो जाती है अपने राम में!
उसकी लीला का कोई अंत ही नहीं,
जीवन भी बेअंत नहीं!
- पूजानिल
ब्लॉग में ताला मत लगाइए जी।
जवाब देंहटाएंचर्चा में लेने में दिक्कत होती है।
नमस्कार शास्त्री जी।
हटाएंधन्यवाद आपको पेश आने वाली इस समस्या की तरफ ध्यान दिलाने के लिए। आपकी सुविधा के लिए ताला हटा दिया है, उम्मीद है अब आप आसानी से चर्चा में यह ब्लॉग पोस्ट ले पाएंगे।