रविवार, 7 जुलाई 2024

बेटी से गुलज़ार है घर

 एक गुलाबी कमरा 

सूनेपन की दहलीज़ पर खड़ा, 

गिनता था दिन और घड़ियाँ, 

सूँझता था आती जाती परछाईयाँ, 

सुनता रहता था, 

घर में पसरी ख़ामोश उदासियाँ, 

कहीं कोई हँसी सुनाई देती तो, 

भर जाता उम्मीद से, 

कि अब वो दिन दूर नहीं, 

जब बिस्तर पर सीधी सपाट बिछी चादर पर 

सिलवटों का रूआब होगा, 

बिखरे होंगे कपड़े, किताबें और 

बिखरेगी सतरंगी मुस्कुराहट। 

एक गुलाबी कमरा, 

प्रतीक्षा के अंतिम छोर पर टिका, 

लाल पर्दे के पीछे अपनी सिसक छुपाकर, 

करता है स्वागत चमकीली धूप का, 

खोलता है खिड़की के पल्ले, 

ताज़ा हवा के झोंके से 

करता है गुदगुदी अठखेलियाँ, 

घर भर में गूंजती चहक से जान गया है, 

कि बेटी घर लौट आई है, 

घर के साथ ही साथ 

एक गुलाबी कमरा भी गुलज़ार हो गया है। 

-पूजा अनिल

7 टिप्‍पणियां:

  1. याद आती है ममा की बात सुना कर के जा रही घर

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  2. बहुत खूब।
    सही कहा, बेटियां तो घर की जान होती है।

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  3. बहुत ही सुंदर रचना लिखी गयी है ।
    प्रिय हिन्दी

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