गुरुवार, 18 जुलाई 2024

जागृति की शादी - आख़िरी किस्त

 अध्याय 4 - दार्शनिक जागृति और ओम की बातें 

18 जुलाई 1999 
अरेंज मैरिज में वर की तलाश करते समय जागृति की मम्मी ने उससे पूछा था कि उसे शादी के लिए कैसा परिवार चाहिए? जागृति ने कहा था कि ऐसा परिवार हो जहाँ सास ससुर दादा दादी से भरा पूरा परिवार हो। मम्मी ने पूछा -और? जागृति ने कहा- और कोई डिमांड नहीं है, घर में बड़े बुजुर्ग होंगे तो वे अपने आप मेरा ध्यान रखेंगे, मैं उनका ध्यान रखूँगी, वे मुझसे बेहद प्रसन्न रहेंगे, मुझे कुछ और नहीं चाहिए। आज के ज़माने में जब सब लोग बुजुर्गों से दूर भागते हैं, तब ऐसी अटपटी डिमांड भला कौन रखता है? लेकिन जागृति दार्शनिक वृत्ति वाली लड़की है, वह बुजुर्गों के सानिध्य में प्रसन्न होती है। परन्तु क़िस्मत ने उसकी इस एकमात्र डिमांड को भी ठुकरा दिया। जहाँ शादी तय हुई, वहाँ दादा दादी तो बहुत दूर की बात, सास ससुर तक नहीं मिले उसे। ओम की माँ आठ साल पहले ही स्वर्ग लोक चली गई थी और पिता उनसे भी पहले। कोई अन्य डिमांड न होने की स्थिति में जागृति को अपनी इकलौती डिमांड ख़ारिज होने से ही संतुष्ट होना पड़ा। कुछ हद तक इस कमी को पूरा करने का अवसर मिला उसे, जब विवाह के कुछ वर्षों पश्चात जागृति रेड क्रॉस वॉलिंटियर के रूप में बुजुर्गों को कम्पनी देने की निःस्वार्थ सेवा करने लगी। 

जागृति और ओम के विवाह का दिन आ गया है। तेल की, हल्दी की रस्में शुरू हो गई हैं। 
भारतीय परिवारों में कई अलग सी, अनूठी सी रस्में होती हैं, जो क्षेत्र और समाज के अनुसार विविधता से भरपूर हुआ करतीं हैं। 
17 जुलाई की रात ईश्वर को साक्षी मानकर जागृति को तेल लगाया गया। दुल्हे अथवा दुल्हन की माँ एक गुलाबी चुनरी में अपनी संतान को अपने साथ बिठाकर पूजन विधि करवाती है। यह रस्म परिवार के बेहद क़रीबी लोगों द्वारा ही की जाती है। जिसमें दुल्हे/दुल्हन के सुखद भविष्य के लिए आशीर्वाद देते हुए बड़े बुजुर्ग दुल्हे /दुल्हन के सिर पर तेल लगाते हैं फिर एक चक्की में गेहूं के दाने डाल कर पीसे जाते हैं, जो कि अपने श्रम द्वारा धन धान्य से परिपूर्ण होने का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद प्रसाद बाँटकर, पूजा इत्यादि से निपट कर पूरे परिवार को सुबह तक आराम करने के लिए कुछ समय मिल गया। 

सुबह उठते ही तेल भरे बालों को धोने की सख़्त ज़रूरत थी, अत: जागृति ने पहला काम यही किया। लेकिन स्नानागार में पूरा तालाब बन गया और पानी निकल ही नहीं रहा था। तो पहले उसे स्नानघर की पानी निकासी वाली जाली साफ़ करनी पड़ी। उफ! उसकी गाढ़ी रची मेंहदी की चिंता! और फिर यह काम आज की उसकी लिस्ट में शामिल नहीं था। लेकिन कभी-कभी नॉन लिस्टेड काम भी करने पड़ते हैं। अतः किसी तरह स्नानघर की जल निकासी को भी ठीक किया उसने। 

अब दुल्हन के सजने संवरने की बारी आई। जयपुर के सुनहरे ज़री वर्क से बने मैरून लहंगे में जागृति दुल्हन की तरह सज संवर कर तैयार हो गई। 
बारात आने पर उसकी मम्मी ने दुल्हे का स्वागत किया। द्वार पूजन और दूल्हे द्वारा पैर के अंगूठे से माटी का दिया तोड़ने की रस्में हुईं। फिर दूल्हा दुल्हन को एक दूसरे के दर्शन करने का मौक़ा दिया गया। 
फिर उन्हें फेरों के लिए ले जाया गया। वहाँ पंडित जी ने कहा कि आज का दिन तुम दोनों लक्ष्मी नारायण का स्वरूप हो, जो भी आशीर्वाद माँगने आए, उसे आशीष ज़रूर देना। इस बात ने दोनों को पहले चौंकाया, फिर उन्हें दिली खुशी दी। दुल्हा और दुल्हन दोनों ही बड़े मन से आस्तिक स्वभाव वाले हैं तो कुछ देर के लिए लक्ष्मी नारायण बनना उनके लिए सुंदर सुखद अनुभव था। जयमाला, पाणिग्रहण, फेरे, मंगलसूत्र पहनाने और सिंदूर दान के पश्चात् एक विशेष रस्म होती है जिसमें लड़की का नाम लड़के की जन्मपत्री के अनुरूप करने के लिए बदल दिया जाता है। यही वह पल था जब जागृति का नाम ओम की पत्रिका के अनुसार पूजा हो गया। वैश्विकरण के चलते नई दुल्हन के नाम परिवर्तन से कई परेशानियाँ खड़ी हो जाती हैं, अत: अब इस रस्म को असल जीवन में अपनाने की बजाय केवल रस्म अदायगी के तौर पर निभाया जाता है। हालाँकि कुछ लोग अब भी इसे संजीदगी से निभाते हैं। 
शादी के रिसेप्शन में उनकी शादी में शामिल सभी लोगों से उनकी मुलाक़ात हुई। रिसेप्शन और रात्रि भोज के बाद वे लोग ओम के घर गए।  वहाँ दुल्हा दुल्हन की आरती की गई। फिर चावल से भरे लौटे को पाँव की छुअन से गिराया और फिर एक लाल सिंदूर की थाली में पूजा ने पाँव रखे और अपने कदमों के निशान बनाकर गृहप्रवेश  किया। सब लोग फूल बरसा रहे थे। मंगल गीत गा रहे थे। 
फिर लूंण मटाएण की रस्म हुई जिसमें एक बड़े से थाल में मोटा समुद्री नमक भरा हुआ था। नई दुल्हन अपनी अँजुरी में नमक को भरती है और एक एक कर ससुराल के सभी छोटे बड़े सदस्यों के हाथ में सात बार उस नमक का लेन देन करती है। आशीर्वाद स्वरूप सभी लोग दुल्हन को पैसे अथवा गहने देते हैं। इस रिवाज के पीछे यह तथ्य है कि दुल्हन के संबंध अपनी ससुराल वालों के साथ मधुर और मज़बूत बनते हैं। फिर हँसी मज़ाक़ चलता रहा। इतने सारे रीति रिवाजों के बीच कारगिल युद्ध मस्तिष्क के किसी कोने में सुप्त हुआ बैठ गया था,  निश्चित ही यह विस्मरण की बात नहीं थी! फेरों के समय भी जागृति को स्मरण हुआ था कि देश के वीर सैनिक बॉर्डर पर लड़ रहे हैं और वे शादी जैसा बड़ा उत्सव मना रहे थे! यह सोचकर उसे ग्लानि हुई थी। 
सब रिवाज रस्मों के बाद दुल्हा दुल्हन को होटल रूम में भेज दिया गया। 

शादी की प्रथम रात्रि थी। वह रात जिसे फ़िल्मों में अजीबोग़रीब जादुई या करामात की रात की तरह प्रस्तुत किया जाता है और समाज में भी इस रात को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बनता है! उनकी सुहाग सेज गुलाब के फूलों से सजी हुई थी, वहाँ फ़ोटोग्राफ़र ने उन दोनों की कई तस्वीरें निकालीं। अब वे दोनों ही बुरी तरह थक चुके थे। दुल्हे को तो शादी की तैयारियों में लगातार चल रही भागदौड़ के कारण बुख़ार ही आ गया था। अतः उसने दवा ली और तुरंत नींद की गोद में सोने चला गया। दुल्हन भी थकी हुई थी लेकिन उसके वस्त्राभूषण निकालने और बालों में फँसे अनगिनत हेयर पिन निकालने में उसे अच्छी ख़ासी मशक़्क़त करनी पड़ी, कुछ झल्लाहट थी, लेकिन यह करना आवश्यक था, अत: वह कुछ समय पश्चात् सोई। 

दो घंटे सोने के बाद दोनों ही नींद से जाग गए। दुल्हन ने पूछा, बुख़ार उतरा? दुल्हे ने कहा, हाँ, अब बुख़ार नहीं है। फिर दुल्हे ने ही कहा, कोई भी परिस्थिति सदा के लिये नहीं रहती है इसलिए अब इस सबक़ को सदा याद रखना कि यह भी गुज़र जाएगा। दुल्हन स्वयं इस विचार पर एकमत थी अतः उसने मुस्कुराते हुए हामी भरी और कहा कि आप भी याद रखना कि हम एक दिन का झगड़ा कभी भी अगले दिन तक नहीं ले जाएँगे। यानि रात बीती बात बीती! दुल्हे को यह विचार पसंद आया। उसने भी हामी भरी। फिर भविष्य के बारे में बातें करते करते वे दोनों वापस सो गए। ऐसे दार्शनिक दुल्हा दुल्हन थे कि विवाह के पच्चीस वर्षों बाद भी वे आज तक अपने उन विचारों को निभाते हैं। 

18 जुलाई 2024
अब जब विवाह के पच्चीस वर्ष सम्पूर्ण हुए तो पूजा बन चुकी जागृति के मन का भय भी समाप्त हो गया। इस भय को जानने के लिए जागृति के अतीत में जाना होगा। यह तब की बात है जब जागृति के माता-पिता ने उनके विवाह के चौबीस वर्ष पूरे किए थे और उनके विवाह के पच्चीसवें वर्ष की शुरुआत हो रही थी। तब जागृति के पिता ने कहा कि अब वे सिल्वर जुबली समारोह रखना चाहते हैं। लेकिन जागृति ने कहा कि पच्चीस वर्ष पूरे होने पर समारोह रखा जाता है तो क्यों न एक साल बाद सिल्वर जुबली मनाई जाए? और पिताजी ने उसकी यह बात मान ली। 
लेकिन जीवन की क्षणभंगुर विधि को कौन जान पाया है भला? जागृति भी इससे अनजान थी। उनकी चौबीसवीं सालगिरह के ठीक एक महीने और सत्रह दिन पश्चात् जागृति के पिता को अचानक ही ह्रदयाघात हुआ और वे इस दुनिया से आगे की दुनिया में चल बसे। इस प्रकार जागृति के माता-पिता को पच्चीसवीं सालगिरह मनाने का कभी अवसर ही नहीं मिल पाया। जागृति के मन में एक गहरा अपराधबोध घर कर गया कि उसके कहने पर ही पिता ने सालगिरह समारोह स्थगित किया था, और उसके कारण ही उसके माता-पिता एक सुंदर जश्न मनाने से वंचित रह गए! अत: उस दिन के बाद जागृति ने कभी किसी को कोई भी कार्यक्रम स्थगित करने के लिए नहीं कहा। उसके मन में यह भय भी बैठ गया कि वह भी अपनी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह शायद न मना पाए! लेकिन कहते हैं कि अनहोनी होती नहीं इसलिए होनी टलती नहीं। पूजा और अनिल ने अपनी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह अपने परिवार और कुछ ख़ास मित्रों के साथ मनाई और इस प्रकार जागृति का वर्षों पुराना भय नष्ट हो गया। बस कमी थी तो उनके माता-पिता की, वे इस मौक़े पर उपस्थित होते तो कुछ और ही बात होती! निश्चित ही स्वर्ग से उनका आशीर्वाद पूजा अनिल को प्राप्त हुआ होगा। 
अब तक आप समझ चुके होंगे कि ओम ही अनिल है। 
-पूजा अनिल 




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