सोमवार, 15 जुलाई 2024

कारगिल युद्ध और जागृति की शादी

 

अध्याय १- 15 जुलाई 1999 - विवाह के पहले फ़ंक्शन में जागृति की अनुपस्थिति 

ठीक पच्चीस साल पहले यानी साल 1999 और महीना जुलाई का। जम्मू कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में युद्ध चल रहा था। पाकिस्तान ने भारतीय सीमा में घुसपैठ करके भारत में युद्ध की परिस्थिति पैदा कर दी थी। 3 मई 1999 से आरम्भ हुआ यह युद्ध जुलाई 1999 में अपने चरम पर था। पूरे देश के समाचारों में इस युद्ध की चर्चा हो रही थी। चारों तरफ़ टाइट सिक्योरिटी रहने लगी थी। भारत की तीनों सेनाओं ने एकजुट होकर इस युद्ध में भागीदारी की। भारतीय सेना के जवानों ने हार न मानने का प्रण ले रखा था। वे जी जान लगा कर देश की रक्षा में जुटे हुए थे। 

ऐसे भयानक युद्ध के माहौल में एक और घटना घट रही थी। और वो यह कि जागृति की शादी होने वाली थी। जिस तरह युद्ध टाला नहीं जा सकता था, ठीक उसी तरह जागृति की शादी भी टाली नहीं जा सकती थी। जागृति के घर के सामने ही सैनिक छावनी थी। वहाँ होने वाली रोज़ की सैन्य गतिविधियों से इतना तो स्पष्ट था कि स्थिति गंभीर है। इधर जागृति के घर में भी शादी की तैयारी ज़ोर शोर से चलती रही। यानि जागृति के विवाह के प्रति भी पूरी गंभीरता थी। 

12 जुलाई 1999 को राजस्थान राज्य के उदयपुर शहर से जागृति अपने परिवार के साथ सड़क यात्रा द्वारा एक मिनीबस में पुणे की तरफ़ निकल गई। पुणे में भी सैन्य छावनी है। वहाँ भी कमोबेश उदयपुर जैसी ही स्थिति थी। ख़ैर… राम राम करके यात्रा आरम्भ हो चुकी थी और 12 जुलाई की रात गुजरात राज्य के बड़ौदा शहर में गुज़ार कर अगली सुबह तड़के वहाँ से आगे की यात्रा तय करनी थी। किन्तु बड़ौदा में जागृति की चाची के मायके में रात्रि भोजन के दौरान हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि बड़ौदा में भी सैन्य छावनी है और कारगिल युद्ध के तनाव के कारण किसी भी समय शहर बंद करने की सूचना दी गई थी। अतः शहर की सीमा पर आवाजाही की रोक लगने से पहले ही वहाँ से चल देना चाहिए।  इस अंदेशे को अनदेखा नहीं किया जा सकता था। सो भोजन के पश्चात् तुरंत पुणे की तरफ़ चल दिए। 
जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे, वैसे वैसे शहर की सीमा, राज्य की सीमा… बंद किए जाने की बात सुनाई दे रही थी। हाई एलर्ट जारी होने की संभावना थी, कहीं रूकने का प्रश्न ही नहीं था। गाड़ी चालक भी थक चुका था लेकिन रूकने जैसी स्थिति न होने के कारण बिचारे ने गाड़ी चलाने का जोखिम उठाया। 
लेकिन ज़रा सोचिए, आज से 25 वर्ष पहले सड़क मार्ग द्वारा यात्रा करना, वो भी लगभग 1000 किलोमीटर दूर की यात्रा, उस पर मानसून का मौसम और युद्ध का माहौल, आप समझ सकते हैं कि कितनी कठिनाई भरी यात्रा रही होगी! कहीं रूकने का ठिकाना नहीं था। साथ ले ज़ाया गया भोजन बड़ा सहारा था। समस्या वाशरूम की भी थी। तेज बारिश में कहीं रूकने की जगह ही नहीं दिखती थी। ऐसे में एक अच्छी बात यह हुई कि गुजरात की सीमा पार हो गई और अब महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश कर लिया था। कम से कम सीमा पर रोक लेने का भय समाप्त हो गया था। 
15 जुलाई को बहराणा (विशेष विधि से झूलेलाल भगवान को समर्पित भजन पूजन) में भाग लेने के लिए जागृति के परिवार को 14 जुलाई को पुणे पहुँच जाना था। जागृति के ससुराल पक्ष ने यह साझा आयोजन किया था। लेकिन हाय री क़िस्मत! दो दिन पहले से ही ऐसा मदमस्त होकर मानसून बरसा कि बंबई (अब मुम्बई) - पुणे मार्ग, लैंडस्लाइड के कारण बंद हो गया। पुणे तो दूर, वे लोग पुणे के सबर्ब में भी प्रवेश न कर पाए। 14 के साथ 15 जुलाई भी बीत गई! जागृति के परिवार में युद्ध के जैसा भयंकर तनाव फैल गया था। और जागृति के ससुराल में डबल तनाव कि जागृति के परिवार के लोग बहराणा में आए ही नहीं, कहीं दुल्हन को इस विवाह से इनकार तो नहीं!! बहराणे में आने वाले मेहमान भी कम नहीं थे… वे जागृति के ससुराल वालों से ऐसे ऐसे सवाल कर रहे थे मानो जागृति और उसके परिवार की अनुपस्थिति के लिए जागृति के ससुराल वाले ही ज़िम्मेदार हों! ससुराल वाले भी जागृति की अनुपस्थिति से हैरान परेशान थे ही। लेकिन किसी तरह सब्र रखे हुए थे। 
ग़ज़ब तनावपूर्ण स्थिति थी, जिसमें न कोई ओर छोर दिखता था और न ही मिलन की कोई डोर! 
एक तरफ़ नॉन स्टॉप बरसात, दूसरी तरफ़ फुल्ली स्टॉपड ट्रैफ़िक, तीसरी तरफ़ लैंड स्लाइड और चौथी तरफ़ कारगिल युद्ध। ऐसा चौतरफ़ा हमला जागृति के विवाह में ही होना था!!! करें तो क्या करें? विवाह स्थल तक जाएँ तो कैसे जाएँ? प्रथम दिवस के वैवाहिक उत्सव में तो सम्मिलित न हो पाए लेकिन 16 जुलाई को सगाई की रस्म होनी थी, यह रस्म दुल्हन के बिना नहीं हो सकती, यदि तब तक भी नहीं पहुँचे तो क्या होगा? ऐसी मुश्किल घड़ी में केवल ईश्वर का ही सहारा था। जागृति के परिवार के सब लोग अपने अपने तरीक़े से ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि “राम तू, महान तू, आई बला को टाल तू, मुश्किल घड़ी से निकाल तू!” जो प्रार्थना बहराणे में की जाती, वे प्रार्थना के स्वर उस मिनी बस में गूंज रहे थे। 
-पूजा अनिल 

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