साथ चलना आसान न था
हम एक दूसरे को अनुभव करते हुए
कुछ दूर तक साथ चले
आखिरी बार उस शांत झील किनारे
हमने अपने आंसुओं से सुख लिखा
और
बिछड़ कर एक दूसरे की याद में रहने लगे
धूप और छाँव की तरह
अपनी अनुभूतियों का आना जाना
तरंग दर तरंग देखा हमने
और
देखा यह कि हमारा साथ कितना सुखद था!
जीवन में पीछे छूटा हुआ सुख
आगे आने का वादा कहाँ करता है!
जीवन लेकिन अपनी ही गति से चलता है।
तुम थे तो तुम्हारे नाद से मेरी सुबहें जागीं
तुम नहीं हो तो तुम्हारे ही मौन से
मेरी सांझ को रंग मिलता है।
मन के कितने मौसम बदल गए
लहरों की तरह हम बन बन कर मिट गए।
विदाई वाला अँधेरा जाता नहीं मन से,
सुनो, अब यादों से भी विदा कर दो न!
-पूजानिल