चेहरे की झुर्रियाँ बता रहीं थीं
कि आत्मा पर
अनावश्यक अनिचछाओं का बोझ है ।
अपने सुंदर सलोने रूप के
तुलनात्मक अनुपात में सोचूँ
तो आत्मा अनन्त गुना सुंदर होनी चाहिये ।
मैं समझती हूँ कि
अनिचछाओं ने किया त्वचा को झुररीदार
और ह्रदय को अपवित्र।
मुझे माफ़ करना ईश्वर!
मैं उतनी पवित्र और स्वच्छ-सुंदर आत्मा
तुम्हें नहीं लौटा पाऊँगी
जैसी तुमने उस अबोध कन्या को
धरती पर भेजते हुए भेंट की थी।
-पूजानिल
अच्छी कविता !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर सारगर्भित कविता।
जवाब देंहटाएंअबोध कन्या और जानकर स्त्री सभी निर्मल हैं और जो नहीं हैं उनके पीछे परिस्थितियां ज़िम्मेदार हैं। उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन 👌
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