साथ चलना आसान न था
हम एक दूसरे को अनुभव करते हुए
कुछ दूर तक साथ चले
आखिरी बार उस शांत झील किनारे
हमने अपने आंसुओं से सुख लिखा
और
बिछड़ कर एक दूसरे की याद में रहने लगे
धूप और छाँव की तरह
अपनी अनुभूतियों का आना जाना
तरंग दर तरंग देखा हमने
और
देखा यह कि हमारा साथ कितना सुखद था!
जीवन में पीछे छूटा हुआ सुख
आगे आने का वादा कहाँ करता है!
जीवन लेकिन अपनी ही गति से चलता है।
तुम थे तो तुम्हारे नाद से मेरी सुबहें जागीं
तुम नहीं हो तो तुम्हारे ही मौन से
मेरी सांझ को रंग मिलता है।
मन के कितने मौसम बदल गए
लहरों की तरह हम बन बन कर मिट गए।
विदाई वाला अँधेरा जाता नहीं मन से,
सुनो, अब यादों से भी विदा कर दो न!
-पूजानिल
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंपत्रकारिता दिवस की बधाई हो।
बहुत शुक्रिया Shastri ji.
हटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया Raja Kumarendra ji.
हटाएंसुंदर भावाभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया Rekha Ji.
हटाएंबहुत शुक्रिया Ravindra ji.
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत सृजन.
जवाब देंहटाएंसादर
आदरणीया पूजा अनिल जी, बहुत सुन्दर भावों से भरी रचना ! आपने विम्ब भी बहुत अच्छे सजाये हैं ! हार्दिक साधुवाद ! --ब्रजेन्द्र नाथ
जवाब देंहटाएंअनुभव साथ का या यादों का ... जब तक उनकी हैं ... क्या एक ही बात नहीं ... बहुत गहरी रचना है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंBhut khub bhut khub
जवाब देंहटाएंhttps://designerdeekeshsahu.blogspot.com/?m=1
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