दिन गुदगुदाने के होते तो
मैं सुनहरी धूप सी दिखती,
संवरने सजने के जो होते दिन तो
मुझमे सभी नदियों की छाया उमड़ आतीं,
उदासी के दिनों में हर मौसम बर्खास्त होकर
मैं सिर्फ और सिर्फ रिम झिम बूंदों सी रोती,
जब सर्दी से अकड़ते हों तन, डूबते हों मन
तो मैं गर्मास भरा कहवा का प्याला होती,
मगर
हर मौसम के मध्य तेज आंधी तूफ़ान होकर
दिलों पर दस्तक देना मेरी मीठी शरारत होती
-पूजानिल
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