मंगलवार, 10 सितंबर 2019

इच्छाधारी

इच्छाधारी 
कितने तो करुण स्वर में वे, पूछते हैं
हाल मन का 
अथाह प्रेम भरे वे, करते हैं दावा 
सच्ची दोस्ती का 
छोटी से छोटी बात आप की,  
रखते हैं वे याद 
किसी तरह अंतस की गन्दगी, 
छुपा लेते हैं शब्दों से, 
बस भूल जाते हैं, 
कि 
सत्य के पास, 
छिपने के ठिकाने कम होते हैं।  


1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (12-09-2019) को      "शतदल-सा संसार सलोना"   (चर्चा अंक- 3456)     पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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