नया जन्म लेना
नीको, नीको!!! उठो न जल्दी!
- क्या हो गया लोली? क्यों सुबह सुबह शोर कर रही हो डिअर? - नीकोलास ने आँख जबरन खोलते हुए हैरानी से पूछा।
- यहाँ आओ न! हम मम्मी-पापा बनने वाले हैं, देखो तो!! - लोलीता ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए ख़ुशी में चिल्ला कर कहा।
- क्या? - नीको को बात पसंद नहीं आई।
- हाँ यार, सुनो ना, पॉजिटिव है रिजल्ट! - लेकिन लोलीता की ख़ुशी का अंत न था।
- तुमने इस बार भी कंट्रासेप्टिव नहीं लिया न? - नीकोलास का स्वर बुझा बुझा था।
- नीको, तुम जानते हो न, मुझे अब एक बच्चा चाहिए। - लोली के स्वर में दृढ़ता थी।
- तुम पागल हो गई हो लोला! - अब तक छुपा हुआ नीको का गुस्सा अब शब्दों में झलक आया।
- मैं नहीं, तुम पागल हो गए हो नीको, हर बार इनकार कर देते हो! -इतनी सी झिड़कियों से लोली का मिजाज़ भी बदल गया और दोनों के बीच गुस्सा अब तक़रार पर उतर आया।
- तो और नहीं तो क्या करूँ? तुम जॉब में बिजी हो, मेरा भी अभी अभी प्रमोशन हुआ है, मैं खुद नए, प्रोजेक्ट में लगा हूँ, बच्चे को कौन संभालेगा? कुछ तो प्रैक्टिकल सोचो!
- देखो, दस साल पहले यह बात कहते अगर तुम तो मैं सोच में पड़ जाती, पर अब मुझे सत्रह साल से ज़्यादा हो गए यार इसी जॉब में! छह महीने मेटरनिटी लीव भी आराम से मिल जाएगी और बच्चे को समय देने की भी कोई दिक़्क़त नहीं होगी!
- तुम तो दस साल पहले भी बच्चा चाहती थी, वो तो मैंने ही रोक लिया था तुम्हे!
- तो तुम क्या चाहते हो? अबो्र्ट कर दूँ इसे भी?
- मेरी उम्र ही क्या है अभी!! तैंतीस साल में मेरे लिए अभी अपना कैरिएर बनाने का समय है यार, तुम समझती क्यों नहीं?
- और मेरी उम्र? तुम्हें नहीं मालूम कि इस साल जून में चालीस की हो जाउंगी मैं? क्या तुमने नहीं देखा कि पूरी जवानी काम किया है मैंने? यह घर मैंने अपनी मेहनत की कमाई से बनाया है. यह कार लिए जो तुम शान से घूमते हो, वो भी मैंने अपनी कमाई से ली है, साल में जो चार यूरोप ट्रिप करते हो तुम मेरे साथ, उसका सारा खर्च भी मैं ही उठाती हूँ. आधा जीवन समर्पित कर दिया तुम्हारे लिए मैंने, और अब जब मैं एक ख़ुशी चाहती हूँ, तो तुम मुझे हज़ार बहाने दे रहे हो!
- ऐसी बात नहीं करिन्यो! मैं बस थोड़ा सा समय और चाहता हूँ।
- अच्छा! तुम्हें समय चाहिए? पर मैं कहाँ से लाऊँ समय? अपनी गायनेक से मिली थी मैं, उसका भी कहना है कि अब हाई टाइम है!
- तुम साल दो साल नहीं रुक सकती मेरी जान? फिर तुम जैसा कहोगी, वैसा ही करूँगा मैं। पक्का! तब तक मेरा एल्बम भी रिलीज़ हो जायेगा यार! - नीकोलास कुछ शांत स्वर पर उतर आया।
- नहीं रुक सकती, बिलकुल नहीं। तुम्हारे साल दो साल के चक्कर में पहले ही मैं दो एबॉर्शन करवा चुकी हूँ नीको! अब और नहीं। तुम चाहो तो अपनी अलग दुनिया बसा सकते हो। मैं अकेली ही अपना बच्चा पालने में पूरी तरह समर्थ हूँ, समझे?
- तुम सच में पागल हो गई हो लोला, एक बच्चे के पीछे, जो अब तक इस दुनिया में आया भी नहीं, उसके लिए तुम मुझे छोड़ने को तैयार हो? जबकि हम चौदह साल से एक दूसरे को जानते हैं और एक दूसरे के साथ हैं!!
- तुम यह बात क्यों नहीं समझते कि बच्चा एक भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता है? बच्चे की हंसी किलकारी घर में एक अनोखी ख़ुशी भर देती है। बच्चा माँ और पिता को और नजदीक लाने का जरिया बनता है। बच्चा दो परिवारों को जोड़ने का सेतु बनता है! और सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि बच्चों से ही मानव वंश आगे प्रसारित होगा!!
- मैं कब इस सब से इंकार करता हूँ मेरी जान? बस थोड़ा वक़्त ही तो मांग रहा हूँ तुमसे!
- मैंने तो अपना पूरा वक़्त दिया है तुम्हे निकोलास। याद है, जब तुमने यूनिवर्सिटी की पढाई शुरू की, तभी से तुम मेरे साथ आकर रह रहे हो, मैंने इस सारे वर्षों में तुम्हारी हर एक ज़रूरत पूरी की। पढाई पूरी होने तक मैंने तुम्हारे लिए सारी सुख सुविधा जुटाई, यहां तक कि तुम्हे नौकरी दिलवाने के पीछे मेरे कितने ही कॉन्टेक्ट्स तुम्हारे काम आये, तुम्हारे प्रमोशन के लिए भी मैंने अपने सीनियर्स से सिफारिश करवाई। यह सब क्या तुम्हे समय देना नहीं था? बोलो?
- अब यह सब गिनवा कर तुम मुझ पर एहसान जता रही हो? कसैलेपन और अपराधबोध से भर उठा नीको।
- बिलकुल! एहसान किया है मैंने तुम पर। याद करो वो दिन, जब लगातार मिलती नाकामी से दुखी थे तुम और निराश हो चुके तुम्हारे माँ बाप ने तुम्हे घर से निकाल दिया था और तुम अपना एक बैकपैक और गिटार लिए पब में दोस्तों के सामने रो रहे थे। जब कोई तुम्हे शरण देने को तैयार नहीं था, तब तुम्हे उठा कर अपने साथ ले आई थी मैं। उस अप्रिय क्षण को कैसे भूल सकते हो तुम? साथ ही उस पल तुम पर की गई कृपा को कैसे भूल सकते हो तुम? - लोली का अहंकार उभर आया उस क्षण में।
- मुझे नहीं मालूम था कि एक दिन तुम उस एहसान को इस तरह जताओगी, वर्ना मैं कभी तुम्हारे साथ नहीं आया होता! - गहराता अपराधबोध अब क्रोध में परिवर्तित हो रहा था।
- हद्द है यार! किसी ने तुम्हारा जीवन संवारने के पीछे अपना जीवन समर्पण कर दिया और तुम उसे ही ताना मार रहे हो? - अहंकार और संवेदना की सीमायें गड्ड मड्ड हो गईं।
- अच्छा!! तो तुम्हे यह लगता है कि तुम न होती तो मैं अब तक सड़कों पर भीख मांग रहा होता? कोई ग़लतफ़हमी मत रखो, मैं अच्छे से अपनी काबिलियत पहचानता हूँ और तुम्हारे बिना भी अपना जीवन जी सकता हूँ, समझी?
- ओह्ह रियली? तुम आज ही अपना सामान यहां से ले जा सकते हो आलसी निकोलास! और सुनो, पलट कर कभी मुझे अपना मुंह मत दिखाना, एहसान फरामोश! - विरले ही लोलिता किसी से इस तरह नाराज़ होती थी।
नीकोलास भी इस समय की बहस से तंग आ गया और उसने ताव में अपना सामान बांधना शुरू किया, साथ ही दोनों की बड़-बड़ चलती रही। दोनों की सुबह इस बहस में बर्बाद हो चुकी थी। शनिवार सुबह थी, अतः दोनों को ही ऑफिस नहीं जाना था। सामान बाँध जैसे ही नीकोलास ने कार की चाबी उठाई, लोला ने गुस्से में उसे चाबी वहीँ रखने का आदेश दे दिया।
बात सच भी थी, घर भी लोला का था, कार भी उसी की। नीकोलास के पास कुछेक नक़ल की हुई धुनों और उसकी सुस्ती के अलावा अपना कहने को कुछ भी न था। इतनी मेहनत करने की उसने कभी फ़िक्र ही नहीं की थी कि अपने लिए कुछ जोड़ सके। सारे ऐशो आराम हासिल थे उसे लोला के साथ। उसे तो बस गिटारिस्ट बनने की धुन सवार थी। सो उसने एक म्यूजिक ग्रुप ज्वाइन कर रख था। पर उस ग्रुप के साथ उसका जेब खर्च भी नहीं निकलता था। तब लोला ने ही उसे एक म्यूजिक स्कूल में जॉब दिलवा दी थी।
मेड्रिड के सरकारी महकमे में उच्च पदस्थ लोला अपने सरल स्वभाव और मेहनती गुणों के कारण सभी के लिए सम्मानीय हैसियत रखती थी।
वर्षों पहले किसी पब-बार में उसकी नीकोलास से दोस्ती हुई थी, और फिर दोस्ती प्रेम में बदल गई। उम्र का अंतर उनके प्रेम के बीच कभी बाधा नहीं बना। हाँ, लोला एक बच्चा हमेशा से चाहती थी, जिसे नाकामयाब नीकोलास हमेशा टालता रहा था। लेकिन इस बार लोला उम्र के जिस पड़ाव पर खड़ी थी, वहाँ से वह कोई और समझौता करने को तैयार न थी और दूसरी तरफ नीकोलास अपने आप को स्थापित करने के हर संभव प्रयास में बच्चे की जिम्मेदारी उठाने को कतई तैयार न था।
गुस्से में नीकोलास घर से निकल तो गया, पर अब जाये तो जाये कहाँ? कोई भी तो ठिकाना नहीं था उसका। कुछ देर यूँ ही गली में इधर उधर भटकने के बाद और अपनी ही सोच पर पछता कर, खुद को दो चार गालियाँ दे कर वो पुनः घर लौट आया। दरवाजा खुला था, जैसा वह छोड़ कर निकला था, बिलकुल वैसे का वैसा ही। उसे हैरानी हुई कि लोली ने बंद क्यों न किया दरवाजा? जल्दी से अंदर गया वो। भीतर वाश रूम में लुढ़की हुई थी रक्त से सनी लोला, कमजोर और लगभग बेहोश सी।
हैरान परेशान उसने तुरंत 112 पर कॉल करके एम्बुलेंस बुलाई, लोला को हॉस्पिटल ले जाया गया। सुबह के तनाव और बहस ने लोला की मानसिक स्थिति को गहरे अवसाद में धकेल दिया था। इसी अवसाद में उसका पुनः एबॉर्शन हो चुका था। इतने सारे एबॉर्शन के बाद माँ बनने के लिए अब लोला को एक नया जन्म लेना होगा! चाहतों की ज़मीन बेहद भुरभुरी होती है। उसमें धंसते जाओ तो बाहर निकलना असंभव ही हो जाता है। अक्सर चाहतों की लाशें उसी ज़मीन के नीचे दफ़न हुई मिलती हैं।
इधर निकोलास अपने ख्वाब पूरा करने के लिए कहीं नई नौकरी तलाश रहा था। उड़ान लम्बी थी, पंख छोटे! काश कि नामुमकिन ख्वाबों के पंख ईश्वर ने कुछ और बड़े बनाये होते!
- पूजा अनिल
नामुमकिन ख्वाबो के पर ईश्वर ना ही देता तो बेकार की जद्दोजहज ही नही होती। कभी रिश्तो की जमीन पुख्ता करने के लिए ऐसे परो को कुतर देना चाहिए
जवाब देंहटाएंओह! दुःखद अंत... ऐसी चाहत अवसाद के सिवा और क्या दे सकती है। काश लोलिता का हृदय भी मज़बूत होता। ऐसे प्रेम का त्याग ही सही उपाय होना था।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी....
दिल के आंतरिक पटल को छूने वाली हृदयविदारक कहानी, मार्मिक एवं अच्छी कहानी लेखन के लिए डॉ• राहुल शुक्ल साहिल, प्रयागराज उ•प्र• की ओर से आ• पूजा अनिल जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं| कहानी का द्वितीय भाग लेखन भी हो सकता है जिसमें निकोलस की कर्मठता और सक्रियता का आधार लोलिता बनती है, लोलिता की प्रेरणाओं से निकोलस में आश्चर्यजनक परिवर्तन होते हैं|
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