शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

मेरी माँ

मेरी माँ

मैं घिरी सघन वृक्ष लताओं से,
तुम तेजस्विनी /
अरुण्मय प्यार तुम्हारा,
स्वर्णिम,
सूर्य रश्मियों सा
छनकर,
दस्तक मेरे दिल पर देता।


तुम्हे देख रही मैं बचपन से,
कहाँ जान पाई पूरे मन से!!!


तुम आत्मसात कर लेती सबको,
अपने विशाल ह्रदय में.
करती सबके बोल अंतर्मन,
यही तुम्हारा बाल मन,
सबका मन हर लेता।

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