जब तक मुझे विश्वास था
कि तुम्हारी दो आँखें मुझे देख रही हैं ,
मैं कहता रहा तुमसे
अपना ध्यान रखा करो
और खुश रहा करो ,
बहुत स्वार्थी था मैं,
कभी शुक्रिया ना कह पाया.
तुम्हे यह जताता रहा
कि मुझे फ़िक्र है तुम्हारी
और तुम मेरा ध्यान रखती रही .
आज जब तुम चली गयी
कभी ना लौटने के लिए
तो सत्तर साल में पहली बार
तन्हा होने का एहसास हुआ
कि आदत हो चली थी मुझको
उन दो आंखों की,
जो प्रतीक्षा किया करती थी ,
मेरे घर लौट आने तक.
और मैं करता रहा वादा
तुम्हे ज़िन्दगी भर खुशियाँ देने का
और बटोरता रहा
खुशियाँ
जो तुम मुझे देती रही,
आज फ़िर ,
तुम्हारी यादों के खजाने में से
कुछ खुशियाँ चुराई हैं मैंने ,
और निकल पड़ा हूँ
मुस्कान बांटने ,
अपने जैसों के बीच .
तुम्हारी यादों के खजाने में से
जवाब देंहटाएंकुछ खुशियाँ चुराई हैं मैंने ,
और निकल पड़ा हूँ
मुस्कान बांटने ,
अपने जैसों के बीच .
बहुत ही सुन्दर रचना है..........ये पंक्तियाँ एक हसीन ख्वाब जैसे लगते है ........इसके लिये बहुत बहुत बधाई
bahut khoob.
जवाब देंहटाएंहृदय की भावनाओं को आपने उड़ेल दिया है इस रचना में।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत स्वार्थी था मैं,
जवाब देंहटाएंकभी शुक्रिया ना कह पाया.
तुम्हे यह जताता रहा
कि मुझे फ़िक्र है तुम्हारी
और तुम मेरा ध्यान रखती रही .
ये लाइनें बहुत ही अच्छी लगी पूजा जी..
hmm achi kavita likhi hai aapne.... thnx for sharing it wid us:):)
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लगी ये रचना...बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएं"...और मैं करता रहा वादा
जवाब देंहटाएंतुम्हे ज़िन्दगी भर खुशियाँ देने का
और बटोरता रहा
खुशियाँ
जो तुम मुझे देती रही,
आज फ़िर ,
तुम्हारी यादों के खजाने में से
कुछ खुशियाँ चुराई हैं मैंने ,
और निकल पड़ा हूँ
मुस्कान बांटने ,
अपने जैसों के बीच...."
बहुत अच्छी रचना.
आज अनायास आपके ब्लाग पर आ गया
जवाब देंहटाएंसारी कविताएँ पढ़ीं
बहुत अच्छा लिखती हैं आप
इस कविता ने कमेंट लिखने के लिए मजबूर कर दिया।
नई कविता का इंतजार रहेगा।
सादर
देवेन्द्र पाण्डेय।
ओम जी, अमिताभ जी, श्यामल सुमन जी, प्रसन्न वदन जी, मनु जी, mr. hulk , सुलभ जी, एवं देवेन्द्र जी.......
जवाब देंहटाएंसभी साथियों का हौसला बढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,
Wah....intersting hai...kahi pe nigahein kahi pe nishana
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