मंगलवार, 11 अगस्त 2009

जश्न ए आज़ादी

जब भी स्वतंत्रता दिवस मनाने का समय आता है, हमारा मन खराब हो जाता है. आप सब जानना चाहेंगे कि ऐसा क्यों? क्या हम हमेशा गुलाम रहना चाहते हैं? नहीं जनाब, ऐसी कोई बात नहीं है. हमें भी अपनी आज़ादी से बड़ा प्रेम है.
अब बात यह है कि बचपन से ही स्वतंत्रता दिवस को बड़े ही नपे तुले ढंग से मनाये जाते देखा. झंडारोहण , शहीदों को श्रद्धांजलि, परेड और लड्डू बांटना. और उस पर यह कि छुट्टी का दिन है, सभी अपनी स्वतंत्रता को अपने ढंग से मनाना चाहते हैं, इसलिए बड़ी जल्दी में इस सारे आयोजन को समाप्त किया जाता है, किसी ने अपने परिवार के साथ पिकनिक का कार्यक्रम रखा है और किसी ने दोस्तों के साथ, अब तय किया हुआ है तो जाना तो होगा ही... आज़ादी मिले तो छः दशक से भी ज्यादा हो गये हैं, अब क्या फर्क पढता है कि, हम उसके जश्न में शामिल हों या ना हों.... अब ना तो हम गुलाम हैं और ना ही शहीदों वाले जज्बात हैं !!!!!!!!!!!! क्या फर्क पढता है कि हम अपनी आज़ादी के जश्न को परेड करके मनाएँ या पिकनिक करके.....महत्तवपूर्ण यह है कि हम आजाद तो हैं ना....!!!!!!!!! फिर कैसी पाबन्दी????
दिल चीर चीर हो जाता है जब आज़ादी के मतवालों के नाम कोई देशभक्ति गीत बजता है, जब कोई उन बीते हुए दिनों को याद करते हैं . हमारा जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ था, पर हमने गुलामी के बारे में, गुलाम भारत पर हुए जुल्मों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा और सुना तो है ना.... खून में उबाल लाने के लिए उतना ही काफी है, इतनी बर्बरता, इतनी अमानवीयता क्यों किसी को झेलनी पढ़े? जब ईश्वर ने सभी इंसान सामान बनाए हैं तो किसी भी इंसान को दूसरे पर जुल्म करने का अधिकार नहीं मिलता.
किन्तु समस्या यही है कि इंसान अपने विचारों से गुलाम है, जब तक विचार स्वाधीन नहीं होते, तब तक किसी भी तरह की स्वाधीनता की बात करना बेमानी है. और यही हमें मथता रहता है. इसलिए प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस पर हम संकल्प करते हैं कि हम अपने विचारों को गुलाम नहीं होने देंगे. हमारे विचार पराधीन नहीं होंगे . गुलाम भारत के स्वाधीनता संग्राम में तो भाग नहीं लिया, पर स्वाधीन भारत के इस स्वतंत्रता अभियान को हम जरूर अमली जामा पहनाएंगे.
वास्तव में हमारे लिये स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने से अधिक महत्त्वपूर्ण अपनी स्वाधीनता को कायम रखना है और प्रत्येक स्वाधीनता दिवस हमें उसकी याद दिलाता है कि आज़ादी के दीवाने किस कदर अपनी जान पर खेल कर भी देश को आजाद करवाना कहते थे. बस वही जूनून,वही जोश..... हमें होश देता है और हम अपने वचन को और प्रतिबद्धता से निभाने का संकल्प कर लेते हैं.

जय हिंद

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