बुधवार, 29 जुलाई 2009

मृत्यु

घनघोर अंधेरे में
खो सी गयी थी कहीं ,
बैचेन आँखे
थक कर
सो ही गयीं थी यहीं .

राह सूझती ना थी कोई ,
सफर का साथी नहीं कोई .

अकेले कहाँ तक ले जाती
ये हमदर्द राहें !!!

तभी नज़र आई
इक
किरण उजाले की ,

उसे थाम लेने की देर थी बस....
पर,
इंतज़ार ,
किसी और को
था मेरा ,

मेरे गुजर जाने की देर थी बस ....
छंट गया सारा
अँधेरा !!!

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