जब मैं स्पेन आई थी, तब शुरुआत के दिनों की बात है। मैंने देखा कि सड़क पर किसी ने अपने घर का फर्नीचर निकाल कर रख दिया था। फर्नीचर एकदम नया सा था, सुंदर था, अच्छी लकड़ी का बना हुआ था और कहीं खरोंच तक नहीं आई थी।
मुझे हैरानी हुई कि इतना सुंदर फर्नीचर क्यों सड़क पर पड़ा था!!! अपने भारत 🇮🇳 देश में तो बनियान को भी पूरी तरह उपयोग करके फिर फेंका जाता था! तो यह तो अच्छा ख़ासा सजावटी फर्नीचर था! और मेरे लिए एकदम नई बात थी यह!!!
मैंने अपने पति से पूछा कि यह क्या माजरा है?
तो उन्होंने बताया कि स्पेन में ऐसा चलन है कि जब भी लोगों का मन करता है कि वे अपने घर को नए रूप में सजाना चाहते हैं तब वे घर की पुरानी चीजें निकाल कर घर के बाहर रख देते हैं और अपने घरों में नई चीजें ले आते हैं। यह चलन इतना आम था कि किसी के लिए कोई अनोखी बात नहीं थी। अक्सर सड़कों पर फर्नीचर दिख ही जाता था।
उस फर्नीचर को उठाने के लिए एक सरकारी ट्रक किसी नियत दिन पर आती थी और फिर उस फर्नीचर को नष्ट कर दिया जाता था।
मैं अब तक “था” का प्रयोग करके लिख रही हूँ, क्योंकि अब यह चलन बहुत कम हो गया है। लोग अब भी अपने फर्नीचर निकाल कर बाहर रखते हैं लेकिन अधिकतर टूटा फूटा या बेकार पड़ा फर्नीचर।
यह परिवर्तन क्यों हुआ? क्या ये लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हो गए हैं कि लकड़ी के जरिए पेड़ों को काटने से बचा रहे हैं?
मुख्यतः प्रवासी जनसंख्या बढ़ने से उस स्पेनिश मानसिकता पर रोकथाम लग गई। दूसरे, 2008 के फ़ाइनेंशियल क्राइसिस ने भी लोगों में सजगता बढ़ाई कि संसाधनों का अनावश्यक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
मज़े की बात यह है कि स्पेन में लकड़ी उत्पादन अब भी बहुत ज़्यादा होता है। लेकिन अधिकतर वृक्ष संरक्षित क्षेत्र में जितने पेड़ काटे जाते हैं, उतने ही नए पेड़ पुन: लगाए जाते हैं। इस से पेड़ों की कटाई के बावजूद पेड़ों की कमी नहीं होती।
अब क्या परिवर्तन हुआ है?
बाज़ारवादी संस्कृति को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है, चीज़ें ख़रीदने के लिए कई तरह की योजनाएं बनाई जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं पब्लिसिटी। इस से लोग बिना ज़रूरत के भी कुछ न कुछ सामान ख़रीदते हैं और अंततः जिसकी वजह से पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सभी ऐसा करते हैं की भेड़चाल में सारी दुनिया लगी हुई है, लेकिन इस भेड़ चाल पर तब तक रोक नहीं लगाई जा सकती है जब तक कि “यह वस्तु मुझे भी चाहिए“ की प्रवृत्ति नहीं बदल जाती! निश्चित ही हर एक वस्तु की आवश्यकता हमें नहीं होती है, कई बार केवल देखा-देखी में चीजें ख़रीद ली जाती हैं और कभी प्रयोग तक नहीं की जाती हैं।
यह प्रवृत्ति बाज़ारवाद की देन है और उसी मानसिकता पर रोक लगाने की ज़रूरत है।
विश्व पर्यावरण दिवस पर इस बार केवल इतना सा आग्रह करना है कि आप संसाधनों का दुरुपयोग न करें। किसी की नक़ल में अपने घर को दुनिया भर की चीज़ों से न भर दें ताकि बाद में वे ही चीज़ें सड़कों पर न पड़ी रहें! आवश्यकता और इच्छा के बीच अंतर को समझें और अपने पर्यावरण की रक्षा में सहयोग करें।
इसके लिए प्रकृति भी आपको धन्यवाद कहेगी!
-पूजा अनिल