सोमवार, 25 जून 2018

सबकी गरदन झुकी है

मेरे देश में राजनीतिक उठापटक का दौर जारी है 
आरोप प्रति आरोप का दौर भी तारी है 
उधर सीमा पर गतिविधि भारी है 
इधर किसानों की अपनी परेशानी है 
बच्चों के भविष्य के पीछे को कोई हाथ धोकर पड़ा है 
किसी ने एक दम हाथ हैं छुड़ा लिए  
अमीरों को फ़ुरसत नहीं दिखावे से 
गरीबों को रोज़ की रोटी जुटाने से 
मध्यम वर्ग सोशल नेटवर्क की गिरफ्त में उलझा है 
मोबाइल के फॉरवर्ड गेम में किसी का मन रमता है 
इतनी आपाधापी में कौन किसकी सुने 
हर किसी ने बेतरह कान हैं ढक लिए  
बहरहाल, किसको कहूँ यह सब, सबकी ही गर्दन झुकी है 
मैं कहती हूँ सब अनदेखा कर पूजा, तेरी ही दृष्टि बुरी है ।
-पूजा अनिल 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-06-2018) को "मन को करो विरक्त" ( चर्चा अंक 3014) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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