मेरे देश में राजनीतिक उठापटक का दौर जारी है
आरोप प्रति आरोप का दौर भी तारी है
उधर सीमा पर गतिविधि भारी है
इधर किसानों की अपनी परेशानी है
बच्चों के भविष्य के पीछे को कोई हाथ धोकर पड़ा है
किसी ने एक दम हाथ हैं छुड़ा लिए
अमीरों को फ़ुरसत नहीं दिखावे से
गरीबों को रोज़ की रोटी जुटाने से
मध्यम वर्ग सोशल नेटवर्क की गिरफ्त में उलझा है
मोबाइल के फॉरवर्ड गेम में किसी का मन रमता है
इतनी आपाधापी में कौन किसकी सुने
हर किसी ने बेतरह कान हैं ढक लिए
बहरहाल, किसको कहूँ यह सब, सबकी ही गर्दन झुकी है
मैं कहती हूँ सब अनदेखा कर पूजा, तेरी ही दृष्टि बुरी है ।
-पूजा अनिल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-06-2018) को "मन को करो विरक्त" ( चर्चा अंक 3014) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत आभार राधा जी।
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