शुक्रवार, 4 मई 2018

जाने ज़िन्दगी


कोई तोड़ मरोड़ कर पढ़ाया गया इतिहास नहीं 
बेहद सुनियोजित पावन मंत्रोच्चार है ज़िन्दगी। 

दो पटरियों पर रेंगती भाप वाली रेल नहीं 
खुली हवाओं का बहान तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी। 

परदे में छुपकर वार करने की राजनीति नहीं 
सुबह की मुलायम धूप  का विस्तार है ज़िन्दगी। 

दोस्ती के संदेश में रचा दुश्मनी का मायाजाल नहीं 
शिशुवत मुस्कान का पवित्र त्यौहार है ज़िन्दगी। 




4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-05-2018) को "उच्चारण ही बनेंगे अब वेदों की ऋचाएँ" (चर्चा अंक-2962) (चर्चा अंक-1956) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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