आजकल हम कपड़े ख़रीदने जाते हैं तो किसी किसी स्टोर में उस पर एक टिकट लगी होती है कि कपड़े में कितना रिसाइक्ल्ड मटैरियल प्रयोग किया गया है। (जैसे यहाँ पर चित्र में देख सकते हैं कि कोई १००% और कोई ९६%।) कपड़े को रिसाइकल करने से उसके कुछ गुण परिवर्तित हो जाते है।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि दुनिया में रोज़ नए कपड़े पहनने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और उसका नतीजा यह हुआ है कि इतना अधिक कपड़ा उत्पादन हो रहा है कि अब हमारी धरती इस कपड़ा बाज़ार को संभाल नहीं पा रही है। क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में इतने सारे कपड़ों का आख़िरी अंजाम क्या होता होगा ? अधिकतर कपड़ा कचरे के डिब्बे में पहुँच जाता है। बाक़ी का कपड़ा रिसाइकल किया जाता है।
कपड़ा उत्पादन के लिए एशियाई देशों पर उसमें भी भारतीय उप-महाद्वीप में कपड़े बनाने के लिए यूरोप और अमेरिका आश्रित हैं।इसमें कपड़ा बुनाई से लेकर वस्त्र निर्माण भी शामिल है। यह उन कंपनियों के लिए लाभदायक सौदा है क्योंकि भारत में मुख्यतः लेबर कम दाम पर मिलने और दूसरी तरफ़ उनके देश में बने हुए पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के सख्त क़ानून से बचने के लिए आसान रास्ता है। स्पष्ट है कि भारत में ये क़ानून अब तक प्रभावी नहीं हैं। और श्रमिक वर्ग को अभी भी कोई उचित दाम नहीं दिया जाता है।
दुनिया में एक तरफ़ निरंतर फलता फूलता कपड़ा उद्योग है और दूसरी तरफ़ पहले से बने हुए, पहने हुए प्रयोग किये जा चुके कपड़े को दूसरा जीवन देने के लिए कुछ विकल्प सामने आ रहे हैं। जैसे कि कुछ कपड़ा बेचने वाले ब्रांडेड शोरूम आपसे पुराने वस्त्र उन्हें दान देने की पब्लिसिटी करते हैं और उसके बदले उनके शोरूम पर कुछ डिस्काउंट भी देते हैं। वे कपड़ा बनाने वाली कंपनियाँ ही दान में प्राप्त कपड़ों को रिसाइकल करके पुनः अपने स्टोर पर बेच रही हैं। इसी के तहत यूरोप में आजकल एक मुहीम चल रही है वस्त्रों की तरह-तरह से रिसाइक्लिंग की -
1. विभिन्न वेब पोर्टल और एप्प पर आपके वस्त्र किसी और को बेच दें एवं आप किसी अन्य के वस्त्र ख़रीद कर धारण करें। इसमें अमीर गरीब हर तरह के लोग स्वतंत्र रूप से हिस्सा लेते हैं।
2. आप अपने इस्तेमाल किए हुए कपड़े किसी कंपनी को दान कर दें, वह कंपनी इन कपड़ों को गला पिघला कर नए वस्त्र बना कर पुनः विक्रय के लिए बाज़ार में ले आएगी। इन रिसाइकल किए कपड़ों की विशेषता यह है कि एक तो इसकी धुलाई के लिए विशेष जतन नहीं करने पड़ते और दूसरे इन्हें इस्तरी करने की आवश्यकता नहीं होती। यानि साबुन पानी और बिजली की सीधे तौर पर बचत।
3.आप अपने परिवार या किसी अन्य व्यक्ति को स्वेच्छा से, बिना किसी उम्मीद के, अपने कपड़े दे दें ताकि वे इन कपड़ों को पहन सके। एक तरह से इसे समाज सेवा मान लें। (भारत में यह विधि हमेशा से प्रयोग होती रही है)। इस तरह के कपड़े अदल बदल और दान हेतु कई शहरों के फ़ेसबुक पेज भी बने हुए हैं जिनके एडमिन तय करते हैं कि दान में प्राप्त कपड़े किसे दिए जाएँ।
सोचने वाली बात यह है कि क्या वाक़ई हमें इतने कपड़ों की आवश्यकता होती है जितने हम लगातार ख़रीदते रहते हैं? क्या ऐसा हो सकता है कि आप बिना किसी शर्म के अपने कपड़े रिपीट कर पाएँ? मध्यवर्गीय समाज अक्सर उच्च वर्ग की कॉपी/नकल करने का प्रयास करता है। तो क्या यह ज़िम्मेदारी जब उच्च वर्ग उठाएगा तब ही समाज में अंतहीन वस्त्र क्रय करने पर रोक लगेगी या मध्य वर्ग इसमें पहल करेगा? क्या प्रकृति की पूजा करने वाला भारतीय समाज चेतेगा कि कम से कम इस प्रकार प्रकृति को हानि नहीं पहुँचाई जाए?
निश्चित ही कुछ लोग सवाल उठाएँगे कि मैं स्वयं प्रकृति संरक्षण हेतु कपड़ों के साथ क्या करती हूँ? तो मैं बताती हूँ कि मैं अपने कपड़े बहुत सारे अवसरों पर बिना हिचक रिपीट करती हूँ, मेरे सोशल मीडिया चित्र इसके गवाह हैं। बच्चों के छोटे कपड़े दान कर देती हूँ। फ़ेसबुक पेज इसके गवाह हैं। कई बार कपड़ों के बीच अदला बदली भी कर लेते हैं। मैं, बाज़ारवादी संस्कृति के विरूद्ध, तब तक कपड़े नहीं ख़रीदती जब तक आवश्यकता न हो!
अब आप बताइए कि आप क्या सुझाव दे सकते हैं!
-पूजा अनिल
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