मेरी डायरी से अंश-
''संस्मरण - माँ की रोटी''
बात जनवरी 2018 की है। अमूमन जनवरी महीने में मेरी भारत यात्रा होती नहीं है, लेकिन उस साल किसी कारण जनवरी के महीने में एक सप्ताह के लिए मैं अकेली ही भारत गई थी। मेरी फ्लाइट उदयपुर पहुंची देर शाम को। एयरपोर्ट से निकल शहर की सड़कों पर कुछ नए, कुछ पुराने दृश्य देखती हुई मैं जब भाई के साथ घर पहुंची तो माँ दरवाजे पर ही प्रतीक्षा करती खड़ीं थीं। वे लगभग दौड़ कर नजदीक आईं और ख़ुशी की आवाज़ में ''गुड़िया'' कहते हुए मुझे गले लगा लिया। यह जो दृश्य था, जब भी मैं भारत जाती और माँ के घर पहुँचती तब हर बार कमोबेश ऐसा ही हुआ करता था। यहाँ तक कि मुझे भ्रम होता था कि मैं राम हूँ और माँ अहिल्या बनी वहीं सदियों से मूर्तिवत मेरी प्रतीक्षा करती रहती हैं कि कब मैं पहुँचूँ और कब वे मुझे गले लगा कर अपनी तपस्या को पूर्ण होते देखें! । इसके विपरीत, सच कहती हूँ, दरवाजे पर माँ के मुख से मेरे नाम की पुकार सुन लेना और उनका मुझे गले लगा लेना - ''इतना'' हो जाना ही मेरी भारत यात्रा को सफल बनाने के लिए पर्याप्त था (अब ऐसा दृश्य पुनः कभी नहीं होगा)!
घर में प्रवेश करते ही माँ के साथ बातों का पिटारा खुल गया था, बहन भी वहाँ आ गई थी, हम सब एक साथ मिल गए तो खाने पीने का ध्यान ही नहीं रहा। बहुत सी बातें करते करते अँधेरा होने लगा था। माँ ने कहा कि ''अब देर हो गई है, बातें तो चलती रहेंगी, पहले कुछ खा लो!'' तब मैं उठ कर जल्दी से गरम पानी से नहा आई। (उदयपुर में सर्दी रहती है जनवरी महीने में, तब गरम पानी से नहाना ही रुचिकर लगता है )
इस बीच माँ ने गरमा गरम चपाती बना दी। दूसरी तरफ कड़ाही में आलू भिंडी बनाने को रख दिए। मगर माँ के हाथ से बनी चपाती की खुशबू और करीब दो दिन की हवाई यात्रा की थकान ने इस बीच भूख पूरी तरह जागृत कर दी थी। और मैंने माँ से कहा कि ''आप तो बस कोरी चपाती ही खिला दो जल्दी से।'' यह बताना बहुत ज़रूरी है कि उनकी कोरी चपाती का भी एक अलग ही रस लगता है मुझे, (बिना नमक की उनकी रोटी ऐसी कि हर तरफ से एक समान पकी हुई, न सख्त और न ही नरम, तिस पर एकदम रसीला स्वाद) और हमें इतनी पसंद थी वह कि बहुत बार ऐसा होता था कि हम भाई बहन उनके हाथ की बनी चपाती बिना सब्जी के ही खा जाते थे। संभवतः किसी को यह बात अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत हो किन्तु पूर्णतः सत्य है यह और यह बात केवल मैं ही नहीं कहती बल्कि जिन लोगों ने भी मेरी माँ के हाथ की बनी चपाती खाई है वे सभी गवाही देंगे कि मेरी माँ के हाथों से बनी चपाती का पूरी दुनिया में कोई सानी नहीं। मैंने दुनिया भर का खाना खाया है लेकिन माँ के हाथ की चपाती जैसा स्वाद आज तक कहीं नहीं मिला है। मैंने उनसे ही सीखा है किन्तु मैं ठीक वैसा नहीं बना पाती। पता नहीं कैसे बनाती थीं वे कि सादी चपाती का स्वाद भी छप्पन भोग पर भारी पड़ता था!! (अब हमें ऐसा स्वाद भी पुनः कभी नहीं मिलेगा)!
खैर, मेरे कहने पर माँ सादी चपाती ही ले आई। मैं भी पालथी मार कर जम कर बैठ गई। वे आकर मेरे पास बैठीं, थाली से रोटी का निवाला/ कौर तोड़ कर उन्होंने मुझे अपने हाथों से खिलाना शुरू कर दिया (अब इतने बड़े हो चुके बच्चे को कौन इतना प्रेम करेगा कि अपने ही हाथ से
खाना खिलाये!)
! पहला निवाला मुख में लेते ही जो स्वाद आया कि तृप्ति का भाव उमड़ आया और भावनाओं के अतिरेक में आँखों में आँसूं तैर आये। मैं अपने आँसूँ रोक नहीं पा रही थी और माँ का प्यार भी छलकता जा रहा था। मेरा मन इतना भर आया कि भीगे नेत्रों की ख़ामोशी में मैंने भी रोटी का निवाला तोड़ कर माँ को खिलाना शुरू कर दिया। माँ कहती रहीं कि तू तो खा ले पहले, लेकिन रुंधे गले से मैंने कहा कि आप भी तो खा कर देखो कि कितनी स्वादिष्ट रोटी है! माँ बेटी के आंसुओं से भीगी वो रात भी पूरी तरह भीग गई होगी! बस, निःशब्द उस स्वाद को जी रहे थे हम! (अब ऐसा मिलन भी पुनः कभी नहीं होगा)
रोटी का रसीला स्वाद हो गईं,
हर दिन की अब याद हो गईं,
माँ कल तक बस मेरी माँ थीं,
भू, जल, नभ, आकाश हो गईं!
-पूजा अनिल
Sach mai mamma kisi roti chhcpan bhog par bhari thi
जवाब देंहटाएं❤️😘
हटाएंBeautiful. Gudiya Di aapne bahut hi achaa likha hai. Hume bhi massi ki bahut yaad aagayi! 🥺
हटाएंSach mai mamma kisi roti chhcpan bhog par bhari thi
जवाब देंहटाएंआप बहुत ही सौभाग्यशाली हैं कि आपको मां की हाथ की बनी हुई रोटी मिलती थी। मेरे हिस्से में तो वो भी नसीब नहीं हुई कभी भी।
जवाब देंहटाएंआह!
जवाब देंहटाएंकितना कुछ याद दिला दिया तुम्हारी स्मृतियों में...
माँ के जैसा फिर कभी कुछ नहीं मिलता!
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जवाब देंहटाएंअत्यंत हृदयस्पर्शी संस्मरण पूजा जी । माँ की पावन स्मृति को सादर नमन । विनम्र श्रद्धांजलि ।
जवाब देंहटाएंअन्तर्मन को छूने वाला संस्मरण
जवाब देंहटाएंमेरी माँ भी सादे परांठे इतने स्वादिष्ठ बनाती थी किआज तक वो स्वाद नहींमिल।
बत्ती के स्टोव पर डालडा घी में बने पराठे अहा
मुझे भी मां की हाथ की वह रोटियां याद आ गई पोस्ट पढखर,
जवाब देंहटाएंसाढे 7 महीने हुए आज उनको
बहुत ही दिल से निकली पोस्ट
कुछ भी नहीं कहा जा रहा है !!!
जवाब देंहटाएंहर बेटी की व्यथा यही है पूजा !!! माँ के साथ मायका भी चला जाता है !
जवाब देंहटाएंकितनी बैचेन होती थी माँ जब तक बेटी घर न पहुँच जाये और विदा करते समय पेड़ से टिकी तब तक निहारती थी जब तक आँखों से ओझल न हो जाऊँ !!!
वैसा प्यार और इंतज़ार इस जन्म में अब कहाँ ...!
नमन माँ की स्मृति को 🙏
हृदयस्पर्शी संस्मरण पूजा जी🙏
जवाब देंहटाएंमार्मिक चित्रण 🙏
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