रविवार, 2 जुलाई 2017

सुनो दोस्त

    हम बिछड़ बिखर कर आज मिले हैं 
    ज्यूं सदियों जन्मों के बाद मिले हैं 
    हम नाम और शक्ल बदल जाने की 
    मियाद गुजरने  पश्चात् मिले हैं।  

    सुनो दोस्त,
    कुछ तुम अपनी आज सुनाना 
    और कुछ सबकी सुन लेना 
    बिछड़ कर मिलने की कसक और ख़ुशी 
    चुप चुप आँखों में चुन लेना 
    कुछ नम होंगी आँख तुम्हारी 
    कुछ होंठों पे मुस्कान खिलेगी 
    मेरी मुस्कान फिर तुम रख लेना 
    अपने आंसू मुझे तोहफे में देना।

    सुनो दोस्त, 
    जाने कितना जीवन बाक़ी है, 
    जाने कितना साथ है अपना, 
    मेरी मान, आज इस पल में 
    तुम बेहिचक गले से लग जाना,  
    जीवन की इस ढलती संध्या में 
    जब स्मृति दीप बुझने लगेंगे  
    जब नज़रों से भ्रम होने लगेगा 
    जब हाथों का कम्पन्न चरम पर होगा 
    तब हमारा ह्रदय आलिंगन ही 
    जीने का सबल सहारा होगा।   
    
    
    सुनो दोस्त,
    वो दिन हुए अब स्मृति में कैद 
    हैं साथ बीते पलों का मेला  
    बचपन के दिन और दिन स्कूल के 
    ले आये हैं आज यादों का रेला, 
    कुछेक तस्वीरें मेरी तुम्हारी 
    पुराने सामानों में हैं रखी 
    हुए पुराने अब हम और तुम भी  
    इस से पहले कि तस्वीर बनें हम 
    थोड़ा खुले आकाश में उड़ लें, 
    चलो, जी भर हम आज बतिया लें। 
    सुनो दोस्त....
   -पूजा अनिल 


4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-07-2016) को "मिट गयी सारी तपन" (चर्चा अंक-2654) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. क्या बात बहुत खूब
    आज सुबह से ही बहुत सरे ब्लॉग पढ़े और यही पाया की ब्लॉगिंग का जूनून लौट आया है बहुत बहुत आभार
    ब्लॉग जगत जिंदाबाद।

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