शुक्रवार, 27 मई 2011

संज्ञा

उदासी

आँख मूँद लेने के बाद,
नींद में दिखती है नींद,
होता है
सपनों का गणित,
होता है
बिना हथियार क़त्ल, किसी की यादों का.
और
होती है,
कवायद, मुंह अँधेरे ना उठ पाने की.
टूटते हैं
तंतु कुछ मुस्कान के.
बिखरती हैं,
साँसे संग प्राण के.
होती है
खुशियों की रवानगी.
बस
नहीं होती
उदास होना किसी की मजबूरी .

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बेचैनी

नहीं भटकती घड़ी की सुइयां कभी,
एक गति से भागते हुये.
नीला आकाश अपनी
जगह पर रहता सर्वदा स्थिर.
उँगलियों के नाखून भी
सदैव शिरा हीन, धमनी रहित.
बस,
मन बदलता रहता है करवटें.
ना एक गति,
ना स्थिरता,
और ना उदासीनता.
हमेशा कुछ नये की ललक
और सदा अकुलाहट.
दरवाजे मन के बंद करके देख लो,
बेचैनी खिड़की के रास्ते आने को बेचैन रहती है.






4 टिप्‍पणियां:

  1. bahoot khoob ...............really great feel touched our heart .......

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  2. पहली कविता पढ़ते ही अपनी एक बहुत पुरानी रचना याद हो आई आज..

    जख्म करे सौ अहले दुनिया आ मिल कर तस्कीन करें
    जलता सूरज आ निगले तब तक ये सुबह रंगीन करें..
    इस रात और दिन के अफ़साने में खो जाओ, खो जाने दो
    इस नीम उजाले ने दिन भर कितने अंदाज़ बदलने हैं....

    और दूसरी कविता....

    बहुत कुछ ...नहीं नहीं...सिर्फ औ सिर्फ खुद को सोचने पर विवश करती है...लाइफ कितनी आउट ऑफ़ फ़ार्म हो चली है..

    बहरहाल...दोनों बेहतरीन कविताओं के लिए बहुत बहुत बधाई आपको...

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  3. यही जीवन है..कभी बेचैनी...कभी उदासीनता...बहुत सुंदर रचनायें.

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  4. मन कभी स्थिर हो ही नहीं सकता. हो जाए तो मन मन न कहलाएगा.
    घुघूती बासूती

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