गुरुवार, 5 नवंबर 2009

दर्द

दर्द दुनिया से अनचाहे मिलते रहे,
हम तोहफे समझ अपनाते रहे.

हमदर्द कुछ बांटने को आये दर्द, (तो)
मुस्कुराहटों में आँसू छिपाते रहे.

मुश्किलों ने बार बार दस्तक दी,
उन्ही से दरो दीवार सजाते रहे.

जो आँसूओं पर भी लग गए पहरे,
शब्द समेटने में रातें बिताते रहे.

तन्हाइयों से फासले और कम हुए,
सन्नाटों को कहानियाँ सुनाते रहे.

जिन राहों पर कभी कांटे नहीं मिलते,
नयन उन्ही के ख्वाब दिखाते रहे .

क्यों ये ख्वाब सच नहीं हुआ करते,
ख़याल ताउम्र ये सवाल उठाते रहे.
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शब्द समेटना - कहानी अथवा कविता लेखन

7 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द दुनिया से अनचाहे मिलते रहे,
    हम तोहफे समझ अपनाते रहे.

    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  2. मुश्किलों ने बार बार दस्तक दी,
    उन्ही से दरो दीवार सजाते रहे.

    बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. hmmmmm kuch jydaa hi sad nahi hai:(:(..........aap kuch chiipa rahe ho:(:(.......nice kavita pooh dear...:):) chalo show me ur smile:):)

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  4. जो आँसूओं पर भी लग गए पहरे,
    शब्द समेटने में रातें बिताते रहे.

    हम कवियों के दिल का राज खोल दिया है आपने। मेरा तो यही मानना है कि हम अपने आँसुओं को भी जाया नहीं होने देते, हर अहसास को शब्दों को पिरो लेते हैं और पिरोने में हमेशा हीं सफल होते हैं।

    पूरी गज़ल अच्छी लगी।

    बधाई स्वीकारें!
    -विश्व दीपक

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  5. Hmm....
    kafi dard me baith kar likha hai....jo ki jhalak bhi raha hai en dard ki boondon me..

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  6. नए साल की बधाई पूजा जी,
    :)
    कविता की बात फिर कभी करेंगे....
    वैसे भी काफी उदास सी कविता है..

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  7. मनु जी,
    आपको भी नये साल की शुभकामनाएं.
    आपकी टिपण्णी का इंतज़ार रहेगा :)

    मयंक जी,
    दर्द से ज्यादा, अनुभव से लिखा है.

    दीपक जी,
    आपने इसे ग़ज़ल कह दिया!!!! क्या यह वास्तव में ग़ज़ल है?

    आपकी टिपण्णी हमेशा ही हौसला बढाती है. बहुत बहुत शुक्रिया.

    सदा जी,
    धन्यवाद.

    रूपचंद्र शास्त्री जी,
    आभार.

    आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं.

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