गीतिका, शर्मा जी के ऑफिस में सेक्रेटरी है, शर्मा जी उसके काम से बहुत खुश रहते हैं। एक दिन शर्मा जी ने गीतिका से ५ फाइल मंगवाई , पर गलती से एक फाइल गीतिका के डेस्क में ही रह गयी और उसने ४ ही फाइल शर्मा जी तक पहुंचाई। बाद में शर्मा जी ने उस से फोन कर के बताया तो उसने देखा कि एक फाइल वहीँ रह गयी है, उसने कहा कि वो अभी लेकर आती है, तो शर्मा जी ने उसे कहा, "कोई बात नहीं, मैं पेओन भेजता हूँ, तुम चिंता मत करो। पिओन के हाथ से फाइल भिजवा देना। "
शाम को शर्मा जी घर पर बैठे थे, उनकी पत्नी बड़ी कुशलता से घर और बच्चों को संभालती है, कभी शर्मा जी को कुछ कहने का मौका नहीं मिलता। जब उनकी पत्नी रात का खाना लेकर आई तो आज वो चावल के साथ चम्मच डाल कर ले आई , शर्मा जी ठहरे कांटे से खाने वाले, जब उन्होंने चम्मच देखा तो लगे जी भर कर चिल्लाने, " तुमसे कितनी बार कहा है कि मुझे चावल के साथ काँटा दिया करो, पर तुम हो कि अपने कामों से फुर्सत मिले तब तो मेरी बात सुनोगी, इतने साल हो गए शादी को, फ़िर भी अब तक यह नहीं पता चला कि पति को कब क्या चाहिए होता है।"
पत्नी ने कहा," गलती हो गयी , आप नाराज़ मत होइए, अभी काँटा ला देती हूँ । "
अब पतिदेव बड़ी कुटिल मुस्कराहट बिखेरते हुए बोले, "तुमसे इसलिए नाराज़ होता हूँ कि तुम तो मेरी अपनी हो ना........तुम से तो मैं बहुत प्यार करता हूँ, और नाराज़ उसी से हुआ जाता है, जिस से प्यार करते हैं " और एक ठहाका लगा कर हंस दिये । पत्नी बिचारी मन मसोस कर ना चाहते हुए भी उनकी हँसी के साथ मुस्कुराने लगी, अपने प्रिय होने का फ़र्ज़ निभाने के लिए।
यह सिर्फ़ एक किस्सा बनाया है, जिसमें एक परिस्थिति को दर्शाया गया है, कि इंसान अपनों और परायों में कितना फर्क करता है। शर्मा जी अपनी सेक्रेटरी के पास पिओन भेज सकते हैं, पर उस पर झल्ला नहीं सकते , और उनकी पत्नी जो बड़े प्यार से उनकी सेवा कर रही है, उनसे मीठे बोल बोलने में कोताही करते हैं क्योंकि वो तो उनकी अपनी है ना......उस से नाराज़ होने का अधिकार तो शादी के समय ही मिल गया होगा उन्हें !!!!!
अक्सर सुना और देखा गया है कि लोग छोटी छोटी बातों पर अपनों से ही नाराज़ होते हैं, और पूछने पर बड़ी आसानी से कह देते हैं कि जिनसे प्यार और स्नेह होता है उन्हीं से ही नाराज़ हुआ जाता है, और ऐसी नाराजगी देखकर तो कोइ भी न्यौछावर हो जाए। पर क्या आप वास्तव में आप अपने प्रिय जनों को , अपने अपनों को नाराज़गी का हक देते हैं? क्या आपको नहीं लगता कि आपके प्रिय जनों की नाराजगी आपको दुःख पहुंचती है? फ़िर भी नाराज़ होते हैं???
आपके प्रिय लोगों ने आपको उनसे प्यार करने का अधिकार दिया और नाराज़ होने का अधिकार आपने स्वयं ही ले लिया !!! प्यार करना अधिकार भी हो सकता है और कर्तव्य भी, किंतु नाराज़ होना ना ही कर्तव्य और न ही अधिकार, फ़िर भी अधिकांशतः लोग इस तरह नाराजगी जताते हैं , जैसे यही प्यार करने का सच्चा स्वरुप हो, क्या प्यार को सिर्फ़ प्यार के रूप में ही नहीं जताया जा सकता? अगर अपने किसी प्रिय से कोई भूल हुई है तो उसे सुधारने के लिये प्यार को अपनाने से पीछे हटने की जगह आप प्यार को ही हथियार बनाइए ( नाराजगी को नहीं )। इस से आपको बेहतर नतीजे मिलेंगे और अनावश्यक नाराजगी से भी राहत मिलेगी, आपको भी और आपके अपनों को भी । आप भी प्रसन्न और आपके प्रिय भी ।
क्या आप इस बदलाव के लिए तैयार हैं? यदि हाँ, तो यह संदेश अपने प्रिय जनों तक अवश्य पहुंचाएं।
शाम को शर्मा जी घर पर बैठे थे, उनकी पत्नी बड़ी कुशलता से घर और बच्चों को संभालती है, कभी शर्मा जी को कुछ कहने का मौका नहीं मिलता। जब उनकी पत्नी रात का खाना लेकर आई तो आज वो चावल के साथ चम्मच डाल कर ले आई , शर्मा जी ठहरे कांटे से खाने वाले, जब उन्होंने चम्मच देखा तो लगे जी भर कर चिल्लाने, " तुमसे कितनी बार कहा है कि मुझे चावल के साथ काँटा दिया करो, पर तुम हो कि अपने कामों से फुर्सत मिले तब तो मेरी बात सुनोगी, इतने साल हो गए शादी को, फ़िर भी अब तक यह नहीं पता चला कि पति को कब क्या चाहिए होता है।"
पत्नी ने कहा," गलती हो गयी , आप नाराज़ मत होइए, अभी काँटा ला देती हूँ । "
अब पतिदेव बड़ी कुटिल मुस्कराहट बिखेरते हुए बोले, "तुमसे इसलिए नाराज़ होता हूँ कि तुम तो मेरी अपनी हो ना........तुम से तो मैं बहुत प्यार करता हूँ, और नाराज़ उसी से हुआ जाता है, जिस से प्यार करते हैं " और एक ठहाका लगा कर हंस दिये । पत्नी बिचारी मन मसोस कर ना चाहते हुए भी उनकी हँसी के साथ मुस्कुराने लगी, अपने प्रिय होने का फ़र्ज़ निभाने के लिए।
यह सिर्फ़ एक किस्सा बनाया है, जिसमें एक परिस्थिति को दर्शाया गया है, कि इंसान अपनों और परायों में कितना फर्क करता है। शर्मा जी अपनी सेक्रेटरी के पास पिओन भेज सकते हैं, पर उस पर झल्ला नहीं सकते , और उनकी पत्नी जो बड़े प्यार से उनकी सेवा कर रही है, उनसे मीठे बोल बोलने में कोताही करते हैं क्योंकि वो तो उनकी अपनी है ना......उस से नाराज़ होने का अधिकार तो शादी के समय ही मिल गया होगा उन्हें !!!!!
अक्सर सुना और देखा गया है कि लोग छोटी छोटी बातों पर अपनों से ही नाराज़ होते हैं, और पूछने पर बड़ी आसानी से कह देते हैं कि जिनसे प्यार और स्नेह होता है उन्हीं से ही नाराज़ हुआ जाता है, और ऐसी नाराजगी देखकर तो कोइ भी न्यौछावर हो जाए। पर क्या आप वास्तव में आप अपने प्रिय जनों को , अपने अपनों को नाराज़गी का हक देते हैं? क्या आपको नहीं लगता कि आपके प्रिय जनों की नाराजगी आपको दुःख पहुंचती है? फ़िर भी नाराज़ होते हैं???
आपके प्रिय लोगों ने आपको उनसे प्यार करने का अधिकार दिया और नाराज़ होने का अधिकार आपने स्वयं ही ले लिया !!! प्यार करना अधिकार भी हो सकता है और कर्तव्य भी, किंतु नाराज़ होना ना ही कर्तव्य और न ही अधिकार, फ़िर भी अधिकांशतः लोग इस तरह नाराजगी जताते हैं , जैसे यही प्यार करने का सच्चा स्वरुप हो, क्या प्यार को सिर्फ़ प्यार के रूप में ही नहीं जताया जा सकता? अगर अपने किसी प्रिय से कोई भूल हुई है तो उसे सुधारने के लिये प्यार को अपनाने से पीछे हटने की जगह आप प्यार को ही हथियार बनाइए ( नाराजगी को नहीं )। इस से आपको बेहतर नतीजे मिलेंगे और अनावश्यक नाराजगी से भी राहत मिलेगी, आपको भी और आपके अपनों को भी । आप भी प्रसन्न और आपके प्रिय भी ।
क्या आप इस बदलाव के लिए तैयार हैं? यदि हाँ, तो यह संदेश अपने प्रिय जनों तक अवश्य पहुंचाएं।
अंत में उठाये गए प्रश्न शाश्वत यक्ष प्रश्न हैं |
जवाब देंहटाएंसामान्यतः आप पाएंगे कि लोग अधिकार अपने पास रख कर कर्त्तव्यों का झुनझुना औरों को थमा देते हैं \ विशेष रूप से पति पत्नी के मध्य केवल हमे देश में ही नहीं यूरोप अमेरिका जैसे विकसित देशों तक में परुष ,मानसिकता ऐसी ही है ,अगर वहां स्त्री अधिकार पा रही है तो अपने संघर्षों से छीन कर ले रही है पुरुष सहर्ष नहीं देते हैं
aapka prashn aur prashn me nihit samaj ko sandesh atyant saamyik aur sateek toh hain hi, anukaraneey bhiu hain ..
जवाब देंहटाएंaapka aalekh umdaa hai
badhaai !
या फिर घर की मुर्गी दाल बराबर?
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख ...सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंबात तो आपने लाख टके की कही है !
इसमें सुखी परिवार और सुखी समाज का सूत्र निहित है !
कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
लगता है कि शुभेच्छा का भी प्रमाण माँगा जा रहा है।
इसकी वजह से प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है !
तरीका :-
डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स
आज की आवाज
aapne bahut sahi baat kahi .blog pe swagat hai .badhai ho .
जवाब देंहटाएंअरे भाई नाराज़ होना गलत नहीं है पर जल्दी मान जाना चाहिए
जवाब देंहटाएंशर्मा जी...
जवाब देंहटाएंबेचारे पति के पति ही रहे...
आशिक ना बन सके..
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंswagat hai !
जवाब देंहटाएंबाहर की दुनिया के सामने भई इमेज़ और इंप्रेशन का सवाल होता है, और घर के लोग तो अपने गुलाम हैं, निर्भर..
जवाब देंहटाएंउनका साथ अब नियति है..वहां इमेज़ और इंप्रेशन का कोई प्रश्न ही नहीं उठता...
यही हालात हैं...
लेकिन आदर्शों की बात से ज्यादा चीज़ों,परिस्थितियों और अपनी जिम्मेदारी को महसूस करने और समझने की और तदअनुरूप व्यवहार करने की है...
बधाई और शुभकामनाएं...
narajagi bhee dikhani chahiye. begano ko narajagi se kya fark padane wala hai, unki bala se koi naraj ho to ho.narayan narayan
जवाब देंहटाएंसभी साथियों का आभार और स्वागत है.
जवाब देंहटाएं@ नारदमुनि - बेगानों को नाराजगी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा पर क्योंकि अपनों को नाराजगी से फर्क पढता है इसलिए उन्हें ब्लेकमेल किया जा सकता है ? क्या आपको ऐसा ठीक लगता है?
हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
जवाब देंहटाएंacha svlikhit lekh hai aapkaa..........bahuut badiya .ati uttam........sahi kaha aapnai jo aapka aankh ka taara ho ya jissai aap apna samjhai ya pyaar ho ussi pe aap apna aakrosh ho yaa pyaar dikhaa skte ho.......:):)
जवाब देंहटाएंसुन्दर। शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंaap ne jo bhi likha wo 100% sahi hai...yah mansikta aap sab mai arthat purush or nari mai saman rup se dekh sakte hai
जवाब देंहटाएंtum sach mai bahut accha likhati ho
जवाब देंहटाएंitane saal tak tumne bataya kiyo nahi
ab ise chodna nahi.. keep it up
शुक्रिया संगीता जी, अरविन्द जी और राजेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंआपका भी एक बूँद पर स्वागत है.
बहुत अच्छा लगा तनुजा कि तुम भी यहाँ आई और मेरा हौसला बढाया. आगे भी ऐसे ही लिखते रहने की कोशिश करुँगी. :)