ये जिंदगी का फ़लसफ़ा बड़ी अजीब शय है बाबू मोशाय!
जीने की बात पर मरना याद आता है,
ठहाकों के बीच रोना याद आता है,
जमीन पर चलते हुए आसमान याद आता है,
खुद को भूलो तो खुदा याद आता है,
गुनगुनाओ तो दिल का हाल जुबां पर खिसक आता है,
कॉफी पीते हुए वो अपना सा दोस्त याद आता है ,
किताब पढ़ते हुए लिखने वाले का अक्स दिख जाता है,
फूलों के साथ बैठो तो सुकून ओ क़रार आ जाता है,
चिट्ठी लिखने से पहले पाने वाले का न भूलने वाला चेहरा याद आता है,
दिल खोलकर रख दो तो कोई दिलफरेब याद आता है,
मोहब्बत की बात करो तो केवल ग़म याद आता है,
हम कब के गुज़र गए होते अगर जिंदगी के ये हसीन ओ अजीब एहसास न होते!
- पूजा अनिल
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