मंगलवार, 17 सितंबर 2024

गणपति और अध्यात्म


 गृहस्थ जीवन जीते हुए आध्यात्मिक यात्रा एक अलग ही धीमी गति से चलती है। इस यात्रा में जीवन के सत्य  एवं वास्तविक अनुभव हमारे लिए गुरु का कार्य करते हैं। 


अध्यात्म की राह पर चुप रहने का बेहद महत्व है। जितनी अधिक चुप्पी होगी, उतना ही अधिक स्वयं से पहचान होती जाएगी। स्वयं को पहचानने की आवश्यकता इसलिए है कि अपने मूल स्वरूप को खुली आँखों द्वारा नहीं देखा जा सकता है, अत: अपने भीतर खोजना पड़ता है, जो कि केवल मौन द्वारा ही संभव होता है। 


बहुत समय से चुप रहने का अभ्यास करती हूँ मगर मौन व्रत नहीं था। चुपचाप इस यात्रा का आनंद लेते हुए इस बार भी गणपति जी का आह्वान किया। मेरे बनाए मिट्टी के गणपति मुझे सिखा रहे हैं कि चुप बैठने का अभ्यास करती रहना। आज उनकी विदाई है, लेकिन वे अपने बड़े बड़े कानों से प्रकृति की अनमोल ध्वनियों को सुनने और सूक्ष्म नेत्रों से एकाग्रता साधने का पाठ पढ़ा कर जा रहे हैं। क़दम क़दम ही सही, यह यात्रा चलती रहेगी। 


विदा गणपति। पृथ्वी यात्रा के पश्चात् आपकी माँ से पुनः मिलने की अद्भुत घड़ी आ गई है।  कुछ दिन के सुखद सानिध्य  के लिए आपका धन्यवाद। 🙏


तस्वीर गणपति स्थापना के पहले दिन यानि गणेश चतुर्थी की।



मंगलवार, 10 सितंबर 2024

अकेले तुम और हम



क्या तुम्हें पता है कि 

-कितनी दूर तक जा कर लौट आती है मन की आवाज़? 

असीम आसमान और निस्सीम समुन्दर की तरह

अनन्त तक चली जाती है आवाज़, 

रखी रहती है गुदगुदी बनकर, 

मन की आवाज़ वही गुनगुनाहट है 

जो तुम कभी-कभी अनचाहे अपने होंठों पर ले आते हो  

न, नहीं बना अकूत को नापने का कोई यंत्र, मगर तुम जो मेरे सामने हो, मैंने सुन लिया सब कुछ तुम्हारे मन का! 

-कि किसी से बात करने के बाद कितनी बची रह जाती हैं बातें? 

एक गुच्छा भर फूल बिखर जाएँ तो बिखर जाती है ख़ुशबूदार बात, 

तुमसे की गई अथाह बातों के बाद जाने कितनी ख़ुशी बिखरी होगी, तुम्हें भी तो नहीं पता! 

फिर भी मन किया तुमसे कुछ और बात करूँ, 

लगा था कि यह तो कहा ही नहीं, जबकि सोच रखा था कि इस बार यह ज़रूर कहना है, 

 हाँ, बातें तो होंगी अनगिनत, कहे जाने के बाद भी होंगी बातें कई, जो बार बार कही जाएंगी, 

क्योंकि मन की पुलक पर सवाल उठाने का प्रश्न ही नहीं! 

-कि कितनी रातें हमने चुपचाप बिता दीं, अनमने मन को समझा पाए क्या? 

इस अबोले से न तुम राज़ी हो न मैं, फिर भी ढोए जा रहे हैं अनचाहे बोझ की तरह, 

अब समाप्त करो इस खामोश स्याह रात को, तोड़ दो चुप्पी की दीवार, 

सच कहूँ, यदि तुम वहाँ से आओ और मैं यहाँ से, तो दुगुनी गति से मिटेंगी अहंकार की दूरियाँ,  

फिर हम उन अनसुलझी गुत्थियों के ग़ुब्बारे पिन से फोड़ देंगे 

और आवाज़ की गुफ़ा में पुलकित मन के बिस्तर पर सितारों संग जगमगाएँगे! 

- पूजा अनिल