गृहस्थ जीवन जीते हुए आध्यात्मिक यात्रा एक अलग ही धीमी गति से चलती है। इस यात्रा में जीवन के सत्य एवं वास्तविक अनुभव हमारे लिए गुरु का कार्य करते हैं।
अध्यात्म की राह पर चुप रहने का बेहद महत्व है। जितनी अधिक चुप्पी होगी, उतना ही अधिक स्वयं से पहचान होती जाएगी। स्वयं को पहचानने की आवश्यकता इसलिए है कि अपने मूल स्वरूप को खुली आँखों द्वारा नहीं देखा जा सकता है, अत: अपने भीतर खोजना पड़ता है, जो कि केवल मौन द्वारा ही संभव होता है।
बहुत समय से चुप रहने का अभ्यास करती हूँ मगर मौन व्रत नहीं था। चुपचाप इस यात्रा का आनंद लेते हुए इस बार भी गणपति जी का आह्वान किया। मेरे बनाए मिट्टी के गणपति मुझे सिखा रहे हैं कि चुप बैठने का अभ्यास करती रहना। आज उनकी विदाई है, लेकिन वे अपने बड़े बड़े कानों से प्रकृति की अनमोल ध्वनियों को सुनने और सूक्ष्म नेत्रों से एकाग्रता साधने का पाठ पढ़ा कर जा रहे हैं। क़दम क़दम ही सही, यह यात्रा चलती रहेगी।
विदा गणपति। पृथ्वी यात्रा के पश्चात् आपकी माँ से पुनः मिलने की अद्भुत घड़ी आ गई है। कुछ दिन के सुखद सानिध्य के लिए आपका धन्यवाद। 🙏
तस्वीर गणपति स्थापना के पहले दिन यानि गणेश चतुर्थी की।