हम आसमान के तारों को फूल क्यों नहीं कहते?
फूलों को सितारे क्यों नहीं कहते?
हवा को पानी और
अग्नि को भूमि क्यों नहीं कहते?
कभी सोचा है कि
कितनी नवीनता से देखती है,
इस विशाल जहान को
नन्हें बालक की अविराम दृष्टि?
जिज्ञासाओं में डूबे बच्चों को
हम नये शब्दकोश रचने का
वितान क्यूँ नहीं देते?
बस, रटवा देते हैं केवल उतना सा ज्ञान,
जो हमारी थोड़ी सी इंसानी बुद्धि समेट पाई!!
क्यों?
क्योंकि हमने भी तो केवल
इतना कम ही जाना और सीखा।
बंधनों और व्यर्थ नियमों में जीना,
निरर्थक बातें सुनना,
अकारण सिर हिलाना,
समर्थन दर्ज करवाना,
बंद मस्तिष्क के साथ,
सवाल पूछने से पहले ही,
किसी के वक्तव्य पर
सहमत हो जाना,
- ख़ामोश जी कर-
बंधी चुप्पी में मर जाना।
- हमारे देखते देखते-
नन्हे बच्चे इस सुविधाजनक
अव्यवस्था को तोड़ देंगे,
अपने लिए नए शब्द और परिभाषाएँ
वे स्वयं गढ़ेंगे।
तब सितारे को धरा और
धरती को अविश्वास कहेंगे।
हवा को उम्मीद और
जल को चमत्कार कहेंगे।
नहीं! संभवतः बच्चे कहीं नहीं हों!
बच्चों के सुकोमल स्पर्श के लिए
पहले हम प्रयोगशाला का
दरवाज़ा खटखटाएँगे।
यदि बच्चा पाने में
सफल हो गए,
तो…….,
फिर से उन्हें अपना घिसा पिटा
शब्दकोश रटवाएंगे।
-पूजानिल