रुकना और ठहरना वहाँ
जहां से लौटने का रास्ता ना सूझे
तो प्रगति की ओर बढ़ाना कदम
पार कर चुके तुम पड़ाव उत्कृष्टता का
सुख भटकाव का अब रहे भोग
मंज़िल छूना ही नियति तुम्हारी
फिर रुकने का श्रम व्यर्थ की लकीर है
दो बातों में एक कहानी गढ़ी
एक, पलक में छुपी
वो सारी फड़कन जो
घर से निकने से पहले चेता गई तुम्हे
दूसरे, जीभ पर निवास करती
वो सारी हिचकियाँ जो
पुकार पुकार यहाँ प्रियतम लाई तुम्हे
तन पर ओढ़ लेना सदैव वस्त्र नहीं
धरती वसंत की श्रृंगारित दुल्हन
आदिकाल से मोहती
धरा स्वरूपा अश्रृंगारित स्त्री
इसी स्त्री पर ठहरे और रुके अनंत समय से तुम
यही आनंद की माहवार
यही तुम्हारी सजग तन्मयता
स्पर्श का अर्थ ऊँगली छूकर लौट जाना नहीं
मेरी उँगलियों से मिली अनंत राहें तुम्हे
रुकना और ठहरना वहाँ
मंज़िल के चिन्ह तुम्हारी कथा कहें जहां
लगभग ढाई साल बाद ब्लॉग पर कुछ पोस्ट करना पुनः खोये हुए प्रेम से मिल जाने सा आनंद दे रहा। आशा है आप सभी का साथ उत्साह वर्धन करेगा। धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंvery nice pooja,keep it up
जवाब देंहटाएंvery nice pooja,keep it up
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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