शुक्रवार, 27 मई 2011

संज्ञा

उदासी

आँख मूँद लेने के बाद,
नींद में दिखती है नींद,
होता है
सपनों का गणित,
होता है
बिना हथियार क़त्ल, किसी की यादों का.
और
होती है,
कवायद, मुंह अँधेरे ना उठ पाने की.
टूटते हैं
तंतु कुछ मुस्कान के.
बिखरती हैं,
साँसे संग प्राण के.
होती है
खुशियों की रवानगी.
बस
नहीं होती
उदास होना किसी की मजबूरी .

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बेचैनी

नहीं भटकती घड़ी की सुइयां कभी,
एक गति से भागते हुये.
नीला आकाश अपनी
जगह पर रहता सर्वदा स्थिर.
उँगलियों के नाखून भी
सदैव शिरा हीन, धमनी रहित.
बस,
मन बदलता रहता है करवटें.
ना एक गति,
ना स्थिरता,
और ना उदासीनता.
हमेशा कुछ नये की ललक
और सदा अकुलाहट.
दरवाजे मन के बंद करके देख लो,
बेचैनी खिड़की के रास्ते आने को बेचैन रहती है.