मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

एक हाथ दूरी

तुम्हारा एक हाथ जितना दूर हो जाना
मेरे लिये सदियों की दूरी हो जाना हुआ करता ,
तुम जब अपने नाराज़ होने की बात कहते,
इन मीन सी आँखों से बरसता जल,
जानते हुये भी कि जल बिन नहीं रह पाती मीन ,
मैं सूख जाने को तैयार रहती,
तुम और उदास हो जाया करते , मैं और सूख जाती....
क्यारियों में दम तोड़ते पादप और निढाल पड़ी "मैं" ,
एक साथ प्रार्थना में संलग्न हुआ करते,
जाने कैसे हम दोनों की प्रार्थना एक साथ स्वीकार हुआ करती!!
तुम्हें याद आता कि आज शाम क्यारी में पानी डालना भूल गये हो...
उसे याद आता कि "मैं" सूख रही हूँ,
और मुझे जीवन दान मिल जाता.
मेरा खिला चेहरा और तुम्हारा हमेशा का सवाल, "अब क्या हुआ?"
क्यारी और मुझे एक साथ सींचने के लिये
एक हाथ दूरी का मिटना जरूरी हो जाता.
बाहर की वर्षा में भीगती क्यारी
और
भीतर हम दोनों प्यार की वर्षा में खोए खोए
किया करते .....
हाथ भर की दूरियों को सदा दूर रखने का वादा .

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

valentine day special - प्रेम की भाषा

महिमा मधुर स्वर में कुछ गुनगुनाते हुये रसोई में खाना पका रही थी, तभी उसका 7 साल का बेटा शोभित वहाँ आया और बड़े प्यार से उसे बताने लगा, " माँ, माँ, मुझे किसी से प्यार हो गया है."
महिमा को यह सुनकर बड़ी हंसी आई, पर उसने हंसी रोक कर बड़े प्यार से अपने बेटे से पूछा," अच्छा जी! किस से प्यार हो गया है आपको?"
अब शोभित थोडा असमंजस में आ गया, कुछ सोचते हुये उसने कहा,"यही तय नहीं कर पा रहा हूँ....!!! मुझे पेड़ पर फुदकने वाली चिड़िया भी प्यारी लग रही है और भाग भाग कर सताने वाली गिल्लू गिलहरी भी , अपनी बगिया का लाल गुलाब भी और ऋतू की बगिया की तितली भी...!!" कहते कहते वो कुछ सोचने की मुद्रा में खड़ा हो गया.
तब महिमा ने उस से फिर एक सवाल पूछा,"अच्छा बताओ तो, तुम्हे इन सब से प्यार क्यों हो गया है?"
शोभित ने बहुत खुश होते हुये कहा," हाँ माँ, यह मुझे पता है कि मुझे इन सब से प्यार क्यों हो गया है..."
"क्यों हो गया है जी, बताइए.!!!! माँ ने हैरानी से पूछा.
"क्योंकि वो जो फुदकने वाली चिड़िया है ना.. माँ, गुस्सा ना होना,(उसने एक छोटी सी सांस ली ), जब उसके घोंसले में छोटे छोटे बच्चे थे, तब वो दाना लेने नहीं जा सकती थी, तब मैं चुपके से आपकी रसोई से चावल उठा कर उसे दे आता था, सॉरी माँ.(उसने सर झुका कर कहा) पर अब वो मेरी दोस्त हो गई है और मुझे अपने नन्हे बच्चों से भी खेलने देती है." अब उसकी आँखें दमक रही थी.
महिमा बहुत ध्यान से उसकी बात सुन रही थी, शोभित ने उसकी तन्द्रा तोड़ी , "नाराज़ हो क्या माँ? "
"अरे नहीं बेटा, तुमने बहुत अच्छा काम किया है, मैं तो तुमसे बहुत खुश हूँ. तुमने एक नेक काम किया है."
शोभित मुस्कुरा दिया और उतावला होकर कहने लगा," और वो जो गिलहरी है ना, जो आगे आगे भागती रहती है, उसके साथ मैं खूब आँख मिचौनी खेलता हूँ, कभी वो छुप जाती है और कभी मैं, बड़ा मज़ा आता है मुझे उसके साथ."
महिमा ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर कहा,"अच्छा...!"
"हाँ माँ, और पता हैं अपनी बगिया का लाल गुलाब कितनी खुशबू देता है...!! माँ, ऐसा लगता है कि उसे कभी भी तोडा ना जाये, ताकि वो ऐसे ही खुशबु बिखेरता रहे और हम उसे देख मुस्कुराते रहें और ऋतू की बगिया की रंग बिरंगी तितली आकर उसके साथ खेलती रहे. अब तुम्ही कहो माँ, मुझे इनमें से किस से प्यार हुआ है?"
"ओहो! यह तो बड़ी मुश्किल है , पर मुझे तो लगता है कि तुम्हे इन सब से प्यार है." महिमा ने आश्चर्य और निश्चय के साथ कहा.
शोभित ने बहुत खुश होते हुये कहा,"बिलकुल सही माँ, तुम्हे कैसे सब पता चल जाता है?"
माँ ने उसे प्यार से गले लगाते हुये कहा कि," जैसे तुम और तुम्हारी दीदी दोनों मुझे प्यारे हो, वैसे ही यह सब तुम्हे प्यारे हैं. है ना?"
"हाँ माँ." शोभित बहुत खुश था.
"प्रकृति से प्यार अपने आप से प्यार करना होता है शोभित, जब तुम इन सबका ध्यान रखोगे तो यह सब भी तुम्हारा ध्यान रखेंगे. इसलिए हमेशा इस प्यार को और बढ़ने देना. हो सके तो अपने दोस्तों में भी यह प्यार फैलाना."

माँ से समर्थन पाकर शोभित स्वयं को सबसे खुशनसीब जान पुनः प्रकृति के साथ खेल में रम गया. महिमा प्रसन्नचित्त अपने बच्चे को अनेकानेक आशीर्वाद दे रही थी.